यूजीसी के ड्राफ्ट पाठ्यक्रम, ‘प्राचीन और अवैज्ञानिक’ बताया , स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने किया विरोध

UGC News: स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा हाल ही में नौ विषयों के लिए जारी किए गए ड्राफ्ट लर्निंग आउटकम्स-बेस्ड करिकुलम फ्रेमवर्क (एलओसीएफ) को ‘प्राचीन’ और ‘अवैज्ञानिक’ करार देते हुए तीखा विरोध जताया है। एसएफआई का आरोप है कि यह पाठ्यक्रम ढांचा शिक्षा के भगवाकरण को बढ़ावा देता है और इसमें पक्षपातपूर्ण सामग्री शामिल है, जो छात्रों को गुमराह करने वाली है। संगठन ने 27 अगस्त 2025 को यूजीसी के कार्यालयों और क्षेत्रीय केंद्रों पर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। इसके साथ ही, 25 और 26 अगस्त को केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालय परिसरों में इस ड्राफ्ट को जलाने की योजना बनाई गई है।

यूजीसी ने हाल ही में नौ विषयों—मानवशास्त्र, रसायन विज्ञान, वाणिज्य, अर्थशास्त्र, भूगोल, गृह विज्ञान, गणित, शारीरिक शिक्षा और राजनीति विज्ञान—के लिए ड्राफ्ट एलओसीएफ जारी किया है। इस पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान प्रणाली (इंडियन नॉलेज सिस्टम्स) को शामिल करने पर जोर दिया गया है। उदाहरण के लिए, रसायन विज्ञान के पाठ्यक्रम में सरस्वती की स्तुति के साथ शुरुआत की गई है, जबकि वाणिज्य में कौटिल्य के अर्थशास्त्र को पढ़ाने का सुझाव दिया गया है। राजनीति विज्ञान में विनायक दामोदर सावरकर, दीन दयाल उपाध्याय, बी.आर. आंबेडकर, महात्मा गांधी, बसवेश्वर और तिरुवल्लुवर जैसे नेताओं और विचारकों पर अलग-अलग पेपर प्रस्तावित किए गए हैं। मानवशास्त्र के पाठ्यक्रम में चारक, सुश्रुत, बुद्ध और महावीर जैसे प्राचीन भारतीय विचारकों के दृष्टिकोण को शामिल किया गया है, जिसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत शिक्षा के ‘भारतीयकरण’ और ‘औपनिवेशिकता से मुक्ति’ के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

एसएफआई ने इस ड्राफ्ट की आलोचना करते हुए कहा कि यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण को कमजोर करता है और शिक्षा को एक खास विचारधारा की ओर ले जाता है। संगठन के नेता आदर्श एम. ने कहा, “यह पाठ्यक्रम छात्रों को तार्किक और वैज्ञानिक सोच से दूर ले जाएगा। इसमें शामिल सामग्री पक्षपातपूर्ण है और इसका उद्देश्य एक विशेष विचारधारा को थोपना है।” एसएफआई ने इसे ‘शिक्षा का भगवाकरण’ करार देते हुए दावा किया कि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के नाम पर लागू किया जा रहा है, जो शिक्षा की गुणवत्ता और स्वायत्तता को नुकसान पहुंचा सकता है।

वहीं, यूजीसी ने इस ड्राफ्ट को लचीला और नवाचार को बढ़ावा देने वाला बताया है। यूजीसी सचिव मनीष जोशी ने कहा कि यह पाठ्यक्रम विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के लिए एक मार्गदर्शक दस्तावेज के रूप में काम करेगा और इसमें हितधारकों से 20 सितंबर तक सुझाव मांगे गए हैं। हालांकि, विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों, जैसे तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक, ने भी इस पाठ्यक्रम के खिलाफ आवाज उठाई है। इन राज्यों का कहना है कि यह पाठ्यक्रम संघीय ढांचे और राज्य विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता के खिलाफ है।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रोफेसर हरीश एस. वानखेड़े ने चिंता जताते हुए कहा, “विश्वविद्यालयों को वैचारिक युद्ध का मैदान बनाया जा रहा है। यह पाठ्यक्रम एक खास विचारधारा को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में स्थापित करने की कोशिश है, जो शिक्षा की स्वतंत्रता और विविधता के खिलाफ है।” दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजेश झा ने भी कहा कि शिक्षकों के पाठ्यक्रम तैयार करने के अधिकार को छीना जा रहा है, जो शिक्षा की गुणवत्ता के लिए हानिकारक है।

एसएफआई ने मांग की है कि यूजीसी इस ड्राफ्ट को वापस ले और इसे तैयार करने की प्रक्रिया में शिक्षकों, छात्रों और अन्य हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श करे। संगठन ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो विरोध प्रदर्शन और तेज किए जाएंगे।

यह विवाद शिक्षा के क्षेत्र में चल रही व्यापक बहस का हिस्सा है, जहां एक तरफ भारतीय ज्ञान प्रणाली को बढ़ावा देने की बात की जा रही है, वहीं दूसरी तरफ वैज्ञानिक और तार्किक शिक्षा को प्राथमिकता देने की मांग उठ रही है।

यह भी पढ़ें: 130वें संविधान संशोधन, जुआरोधी विधेयक पर विपक्ष के रुख की भाजपा ने की आलोचना

यहां से शेयर करें