दक्षिण भारत में दो भगदड़ें: एक मौत पर अल्लू अर्जुन की गिरफ्तारी, क्यो 41 मौतों पर थलापति पर एफआईआर नहीं?

Chennai/Hyderabad News: दक्षिण भारत में हाल की दो भगदड़ घटनाओं ने न केवल मनोरंजन और राजनीति जगत को हिला दिया है, बल्कि कानूनी जवाबदेही के सवाल भी खड़े कर दिए हैं। एक ओर तेलुगु सुपरस्टार अल्लू अर्जुन को उनकी फिल्म ‘पुष्पा 2: द रूल’ के प्रीमियर के दौरान हुई एक मौत के लिए गिरफ्तार किया गया, वहीं तमिल सुपरस्टार और अब राजनीतिज्ञ जोसेफ विजय (थलापति विजय) की पार्टी तमिलागा वेट्ट्री कझागम (टीवीके) के रैली में 41 लोगों की मौत के बावजूद उनका नाम प्राथमिकी (FIR) में शामिल नहीं किया गया। विशेषज्ञों का मानना है कि यह अंतर राजनीतिक प्रभाव और कानूनी प्रक्रिया की असमानता को एक बार फिर से उजागर किया है।

अल्लू अर्जुन मामला
4 दिसंबर 2024 को हैदराबाद के संध्या थिएटर में ‘पुष्पा 2’ के प्रीमियर शो के दौरान भगदड़ मच गई। अल्लू अर्जुन के अचानक पहुंचने से उमड़ आई भीड़ में 28 वर्षीय रेवती की मौत हो गई, जबकि उनके नाबालिग बेटे को गंभीर चोटें आईं। पुलिस ने थिएटर प्रबंधन और अल्लू अर्जुन के खिलाफ FIR दर्ज की, जिसमें लापरवाही और भीड़ प्रबंधन की कमी का आरोप लगाया गया। 13 दिसंबर को अल्लू अर्जुन को गिरफ्तार कर लिया गया और 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया, हालांकि बाद में उन्हें अंतरिम जमानत मिल गई।

पीड़ित के पति भास्कर ने बाद में कहा कि वे अल्लू अर्जुन को जिम्मेदार नहीं मानते और केस वापस लेना चाहते हैं। फिर भी, तेलंगाना हाईकोर्ट में FIR रद्द करने की याचिका लंबित है। इस घटना ने सिनेमा हॉल्स में सुरक्षा मानकों पर बहस छेड़ दी।

विजय की टीवीके रैली और 41 मौतें

दूसरी ओर, 27 सितंबर 2025 को तमिलनाडु के करूर जिले के वेलुसाम्यपुरम में टीवीके की राज्यव्यापी राजनीतिक यात्रा के दौरान भगदड़ में 41 लोगों की जान चली गई। मरने वालों में 9-10 बच्चे, 17-18 महिलाएं और बाकी पुरुष शामिल हैं, जबकि 80-100 से अधिक लोग घायल हुए। घटना विजय के वाहन के देरी से पहुंचने (अनुमति 3 बजे से शाम 10 बजे तक थी, लेकिन वे रात 7 बजे पहुंचे) के कारण हुई। 25,000 से अधिक समर्थकों की भीड़ में अफरा-तफरी मच गई, जिससे लोग वाहनों के नीचे दब गए।

करूर टाउन पुलिस ने FIR दर्ज की, जिसमें टीवीके के आयोजकों जैसे महेंद्रन (पहला आरोपी), मथियाजगन (करूर वेस्ट जिला सचिव), और चुनाव महासचिव आधाव अर्जुन का नाम लिया गया। आरोप है कि आयोजकों ने जानबूझकर विजय का आगमन चार घंटे लेट कराया ताकि राजनीतिक ताकत दिखाई जा सके, जिससे ट्रैफिक बाधित हुआ और सुरक्षा उल्लंघन हुआ। मथियाजगन को गिरफ्तार कर 15 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। लेकिन विजय का नाम FIR में कहीं नहीं है।

तमिलनाडु सरकार ने रिटायर्ड जज अरुणा जगदीशान की अगुवाई में जांच आयोग गठित किया है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने प्रत्येक मृतक के परिवार को 10 लाख और घायलों को 1 लाख रुपये की सहायता घोषित की। विजय ने वीडियो संदेश में दुख जताते हुए कहा, “मेरा दिल टूट गया है,” और टीवीके ने सीबीआई जांच की मांग की।

क्यों है यह दोहरा मापदंड? राजनीति बनाम सिनेमा
ये दोनों घटनाएं दक्षिण भारत में भीड़ प्रबंधन की लापरवाही को उजागर करती हैं, लेकिन कानूनी कार्रवाई में स्पष्ट अंतर है। विशेषज्ञों के अनुसार, अल्लू अर्जुन मात्र अभिनेता होने के नाते ‘सॉफ्ट टारगेट’ थे, जबकि विजय अब राजनीतिज्ञ हैं। एनडीटीवी की एक राय में कहा गया कि “राजनीतिज्ञों को हमेशा तरजीह मिलती है; यह राजनीतिक निर्णय है, कानूनी नहीं।” बेंगलुरु में आरसीबी उत्सव की भगदड़ (11 मौतें) में भी अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

बीजेपी नेता के अनामलाई ने करूर में घायलों से मुलाकात कर 1 लाख रुपये की सहायता की घोषणा की और सीबीआई जांच की मांग की। डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा, “कोई भी नेता हो, रैली के लिए शर्तें माननी होंगी।” सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ी है, जहां अल्लू अर्जुन के समर्थक पूछ रहे हैं, “एक मौत पर जेल, 41 पर चुप्पी?”

आगे की राह: सबक और सुधार
ये घटनाएं सिनेमा प्रीमियर और राजनीतिक रैलियों में सुरक्षा प्रोटोकॉल सख्त करने की मांग उठा रही हैं। तमिलनाडु पुलिस ने इनकार किया कि करूर में पुलिस बल अपर्याप्त था, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि 500 पुलिसकर्मी तैनात थे। विशेषज्ञ थरासु श्याम कहते हैं, “टीवीके का संकट प्रबंधन इसकी राजनीतिक छवि तय करेगा।”

जांच रिपोर्ट का इंतजार है, लेकिन सवाल बरकरार है: क्या कानून सबके लिए बराबर है? दक्षिण भारत की यह त्रासदी हमें याद दिलाती है कि उत्साह की आड़ में जानें न जाएं।

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