Nepal Gen-Z Protest News: पिछले चार सालों में भारत के पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता की लहर ने न केवल क्षेत्रीय समीकरणों को बदला है, बल्कि भारत की कूटनीति और सुरक्षा नीतियों के लिए भी नए सवाल खड़े किए हैं। नेपाल में हाल ही में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ शुरू हुए Gen-Z आंदोलनों ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया। यह घटना भारत के पड़ोसी देशों—श्रीलंका, बांग्लादेश, और अब नेपाल—में पिछले चार वर्षों में हुए तख्तापलट की शृंखला में ताजा कड़ी है। इन आंदोलनों में युवाओं की भूमिका ने सत्ता परिवर्तन को नई गति दी है। आइए, इस स्थिति को भारत के संदर्भ में समझते हैं और इसके निहितार्थों पर नजर डालते हैं।
नेपाल में क्या हुआ?
नेपाल में 2025 में सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध और भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुआ Gen-Z आंदोलन इतना उग्र हो गया कि प्रदर्शनकारियों ने संसद, सुप्रीम कोर्ट, और राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल के निजी आवास तक पर कब्जा कर लिया। कई मंत्रियों के घरों में आगजनी की गई, और पांच मंत्रियों समेत विपक्षी दलों के 20 से अधिक सांसदों ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया। इस जनाक्रोश का परिणाम यह हुआ कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी। हालांकि सोशल मीडिया बैन हटा लिया गया, लेकिन प्रदर्शनकारी अब भी संसद भंग करने और नए सिरे से चुनाव की मांग कर रहे हैं। यह आंदोलन न केवल नेपाल की राजनीति को हिला के रख दिया है, बल्कि भारत के लिए भी नई चुनौतियां खड़ी कर रहा है।
चार साल, तीन पड़ोसी देश, और तख्तापलट की कहानी
नेपाल से पहले, भारत के दो अन्य पड़ोसी देशों—श्रीलंका और बांग्लादेश—में भी जन आंदोलनों ने सत्ता को उखाड़ फेंका है।
1. श्रीलंका (2022): श्रीलंका में आर्थिक संकट ने जनता का धैर्य तोड़ दिया। ईंधन, दवाइयों, और रोजमर्रा की वस्तुओं की कमी के बीच लाखों लोग सड़कों पर उतर आए। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन और संसद पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को मालदीव भागना पड़ा और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को इस्तीफा देना पड़ा। इस आंदोलन को ‘अरगलाया’ (संघर्ष) के नाम से जाना गया, जिसने श्रीलंका की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया।
2. बांग्लादेश (2024): बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में 30% आरक्षण के खिलाफ शुरू हुआ छात्र आंदोलन जल्द ही भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध में बदल गया। ढाका की सड़कों पर लाखों युवाओं का सैलाब उमड़ पड़ा, और हिंसक झड़पों में 300 से अधिक लोग मारे गए। अंततः, प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़कर भारत भागना पड़ा, और सेना ने अंतरिम सरकार का गठन किया।
3. नेपाल (2025): नेपाल में सोशल मीडिया बैन ने युवाओं को सड़कों पर ला दिया। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, और भाई-भतीजावाद के खिलाफ यह आंदोलन इतना तेज हुआ कि सरकार को घुटने टेकने पड़े। प्रदर्शनकारियों ने न केवल सरकारी इमारतों पर कब्जा किया, बल्कि नेताओं को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा और राष्ट्रपति भवन को आग के हवाले कर दिया।
भारत के लिए इसका क्या अर्थ?
इन तख्तापलटों का भारत पर कई स्तरों पर प्रभाव पड़ रहा है:
1. सीमा सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता: नेपाल, श्रीलंका, और बांग्लादेश भारत के निकटतम पड़ोसी हैं। नेपाल और बांग्लादेश के साथ भारत की खुली सीमाएं हैं, जिसके कारण इन देशों में अस्थिरता सीधे तौर पर भारत की सुरक्षा को प्रभावित करती है। नेपाल में अशांति से सीमा पार आतंकवाद, तस्करी, और अवैध घुसपैठ का खतरा बढ़ सकता है।
2. कूटनीतिक चुनौतियां: भारत ने हमेशा अपने पड़ोस में स्थिरता को प्राथमिकता दी है। बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार भारत के साथ मधुर संबंध रखती थी, लेकिन उनकी सत्ता का पतन और अंतरिम सरकार का गठन भारत के लिए कूटनीतिक अनिश्चितता ला सकता है। नेपाल में भी, जहां भारत का सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव मजबूत है, नई सरकार के रुख पर भारत की नजर रहेगी।
3. युवा आंदोलनों का उभार: इन तीनों देशों में युवाओं की अगुवाई में हुए आंदोलनों ने दिखाया है कि Gen-Z और मिलेनियल्स अब सत्ता के खिलाफ अपनी आवाज को और मुखर कर रहे हैं। भारत में भी युवा बेरोजगारी, महंगाई, और सामाजिक असमानता जैसे मुद्दों पर सवाल उठाते हैं। इन पड़ोसी देशों के आंदोलनों से प्रेरित होकर भारत में भी युवा आंदोलनों का जोर बढ़ सकता है।
4. चीन का बढ़ता प्रभाव: इन तख्तापलटों के बीच, चीन का क्षेत्र में बढ़ता प्रभाव भारत के लिए चिंता का विषय है। नेपाल और श्रीलंका में चीन पहले से ही बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के जरिए अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। अस्थिरता के इस दौर में, यदि नई सरकारें चीन की ओर झुकती हैं, तो यह भारत की सामरिक स्थिति को कमजोर कर सकता है।
भारत की भूमिका और भविष्य
भारत के लिए यह समय अपने पड़ोस में कूटनीतिक और सामरिक रणनीति को मजबूत करने का है। नेपाल में भारत को तटस्थ रहते हुए लोकतांत्रिक प्रक्रिया का समर्थन करना होगा, ताकि वहां स्थिरता बहाल हो। बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के साथ भारत को नए सिरे से संबंध स्थापित करने की जरूरत है। श्रीलंका में भारत पहले से ही आर्थिक मदद के जरिए अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है, जिसे और बढ़ाया जा सकता है। साथ ही, भारत को अपने आंतरिक युवा मुद्दों—जैसे बेरोजगारी और शिक्षा—पर ध्यान देना होगा, ताकि पड़ोसी देशों की तरह यहां भी असंतोष की लहर न उठे।
निष्कर्ष
पिछले चार सालों में नेपाल, श्रीलंका, और बांग्लादेश में हुए तख्तापलट न केवल इन देशों की आंतरिक समस्याओं को उजागर किया हैं, बल्कि भारत के लिए भी एक चेतावनी हैं। युवा शक्ति, सोशल मीडिया, और जनाक्रोश ने सत्ता को चुनौती देने की नई ताकत दिखाई है। भारत को अपने पड़ोस में स्थिरता बनाए रखने और अपनी कूटनीतिक स्थिति को मजबूत करने के लिए सतर्क और सक्रिय रहना होगा।
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