एबीसी न्यूज/वॉशिंगटन पोस्ट/इप्सोस पोल में यह बात सामने आई है कि महंगाई बढ़ने के बीच 7 में से 10 अमेरिकी इस साल किराने पर पिछले साल से ज्यादा खर्च कर रहे हैं।
यह पोल 24 से 28 अक्टूबर 2025 तक इप्सोस के नॉलेजपैनल के जरिए ऑनलाइन आयोजित किया गया, जिसमें 2,725 वयस्क अमेरिकियों ने हिस्सा लिया। सर्वेक्षण का मार्जिन ऑफ एरर 1.9 प्रतिशत है। परिणामों से साफ है कि ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत अप्रैल 2025 से शुरू हुए टैरिफ (जिनमें चीन, कनाडा, मैक्सिको और यूरोपीय संघ पर 10 से 50 प्रतिशत तक शुल्क शामिल हैं) ने उपभोक्ता मूल्यों को 2.3 प्रतिशत तक बढ़ा दिया है। येल बजट लैब के अनुमान के अनुसार, औसत अमेरिकी परिवार को सालाना 3,800 डॉलर (करीब 3.2 लाख रुपये) का अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है।
बढ़ते खर्च का बोझ: सभी वर्ग प्रभावित
सर्वे में 70 प्रतिशत अमेरिकियों ने बताया कि किराने के सामान पर खर्च बढ़ा है, जबकि 60 प्रतिशत ने उपयोगिताओं पर ज्यादा खर्च का जिक्र किया। स्वास्थ्य सेवा, आवास और पेट्रोल पर भी 40 प्रतिशत से अधिक लोगों ने वृद्धि दर्ज की। यह असर सभी राजनीतिक दलों पर पड़ा है: डेमोक्रेट्स में 89 प्रतिशत, स्वतंत्रों में 73 प्रतिशत और रिपब्लिकन्स में भी 52 प्रतिशत ने किराने के बढ़ते दामों की शिकायत की। महिलाएं पुरुषों की तुलना में हर श्रेणी में ज्यादा प्रभावित बताई गईं।
टैक्स फाउंडेशन के विश्लेषण के मुताबिक, ये टैरिफ हर अमेरिकी परिवार पर औसतन 1,300 डॉलर का अतिरिक्त कर बोझ हैं, जो 2026 में 1,600 डॉलर तक पहुंच सकता है। एसएंडपी ग्लोबल की रिपोर्ट कहती है कि 2025 में कंपनियों को कुल 1.2 ट्रिलियन डॉलर का अतिरिक्त खर्च झेलना पड़ेगा, जिसमें से दो-तिहाई (900 बिलियन डॉलर) उपभोक्ताओं पर आ गया है। पेन व्हार्टन बजट मॉडल के अनुसार, ये नीतियां जीडीपी को 8 प्रतिशत और मजदूरी को 7 प्रतिशत कम कर सकती हैं, जिससे मध्यम वर्ग का परिवार जीवनभर में 58,000 डॉलर का नुकसान झेलेगा।
ट्रंप प्रशासन का दावा है कि टैरिफ अमेरिकी विनिर्माण को बढ़ावा देंगे और राजस्व में 5.2 ट्रिलियन डॉलर का इजाफा करेंगे। व्हाइट हाउस के अनुसार, ये कदम विदेशी व्यापार असंतुलन को ठीक करेंगे और अमेरिकी उत्पादों को प्रोत्साहन देंगे। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह ‘टर्बुलेंस टैक्स’ साबित हो रहा है, जो निवेश को 4.4 प्रतिशत घटा रहा है और छोटे कारोबारों को प्रति माह 90,000 डॉलर का नुकसान पहुंचा रहा है।
टैरिफ पर अमेरिकी असंतोष: 65% नापसंद
सर्वे में 65 प्रतिशत अमेरिकियों ने ट्रंप की टैरिफ नीति की आलोचना की, जिसमें डेमोक्रेट्स (96%), स्वतंत्र (72%) और रिपब्लिकन्स (29%) शामिल हैं। 60 प्रतिशत से अधिक का मानना है कि टैरिफ महंगाई, अमेरिकी अर्थव्यवस्था और लक्षित देशों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। 55 प्रतिशत ने कहा कि यह उनके परिवार की वित्तीय स्थिति को चोट पहुंचा रहा है। विनिर्माण कंपनियों (45%) और नौकरी चाहने वालों (42%) पर भी बुरा असर पड़ा है।
रिपब्लिकन्स में 56 प्रतिशत का मानना है कि टैरिफ अमेरिकी कंपनियों की मदद कर रहे हैं, लेकिन स्वतंत्रों में 68 प्रतिशत महंगाई बढ़ने की बात मानते हैं। सोशल मीडिया पर बहस तेज है: एक्स (पूर्व ट्विटर) पर कुछ यूजर्स ट्रंप की तारीफ कर रहे हैं कि सीमा सुरक्षित हुई और स्टॉक मार्केट ऊपर है, जबकि अन्य चेतावनी दे रहे हैं कि अप्रैल से महंगाई दर 2.31% से बढ़कर 3.01% हो गई है। एक पोस्ट में कहा गया, “टैरिफ ने अमेरिकियों पर ही टैक्स लगाया, महंगाई क्यों बढ़ी?”
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई: नीति पर सवाल
ट्रंप ने इमरजेंसी पावर्स का इस्तेमाल कर टैरिफ लगाए, जिसकी बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। निचली अदालत ने कहा कि इसका आर्थिक प्रभाव इतना बड़ा है कि कांग्रेस की मंजूरी जरूरी है। ओईसीडी की रिपोर्ट के अनुसार, ये टैरिफ वैश्विक विकास को 0.5 प्रतिशत घटा देंगे, अमेरिकी विकास 1.8% पर सिमट जाएगा। चीन का विकास 4.4% रह जाएगा।
भारत पर असर: निर्यात प्रभावित, लेकिन नई रणनीति कारगर
भारत के संदर्भ में, ट्रंप ने अगस्त 2025 में भारतीय उत्पादों पर 25% से बढ़ाकर 50% टैरिफ लगाया, जिसका असर फार्मा, ज्वेलरी, स्टील, एल्यूमीनियम और टेक्सटाइल पर पड़ा। बीबीसी हिंदी के अनुसार, अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, लेकिन भारत की नई निर्यात रणनीति ने नुकसान कम किया।
हिंदुस्तान के अनुसार, सितंबर में अमेरिका को निर्यात प्रभावित हुआ, लेकिन वैश्विक बाजारों में विविधीकरण से भारत की अर्थव्यवस्था पर असर नगण्य रहा। आजतक ने सुझाव दिया कि भारतीय उपभोक्ता अमेरिकी ब्रांड्स का बहिष्कार करें।
विशेषज्ञों का कहना है कि टैरिफ युद्ध वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को बाधित कर रहा है। ट्रंप का कहना है कि यह ‘अमेरिका को मजबूत’ बनाएगा, लेकिन उपभोक्ता संघर्ष कर रहे हैं। आने वाले महीनों में छुट्टियों के मौसम में कीमतें और बढ़ सकती हैं, जैसा कि सीएनबीसी ने चेताया है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था की दिशा अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगी।

