ट्रंप ने आगे कहा कि यदि भारत रूस से तेल खरीद बंद करता है, तो रूस-यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने में आसानी होगी। उन्होंने जोर देकर कहा, “युद्ध खत्म होने के बाद भारत फिर से रूस से तेल खरीद सकता है।” यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल आयात को लेकर 50% तक टैरिफ बढ़ा दिया है। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि भारत का रूसी तेल खरीदना मॉस्को की युद्ध मशीनरी को फंड कर रहा है। लेकिन भारत ने हमेशा इसे अपनी ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक बाजार स्थिरता का हिस्सा बताया है।
भारत की प्रतिक्रिया: राष्ट्रीय हित पहले, कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं
विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने स्पष्ट किया कि ट्रंप का दावा एकतरफा है और भारत की ऊर्जा नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने हाल ही में कहा था, “चाहे रूसी तेल हो या कोई और, हम दरें, लॉजिस्टिक्स और राष्ट्रीय हित के आधार पर निर्णय लेंगे।” भारत ने अमेरिकी दबाव के बावजूद रूस से सस्ते तेल की खरीद जारी रखी है, क्योंकि यह वैश्विक तेल कीमतों को स्थिर रखने में मददगार साबित हुआ है। 2022 से अब तक, रूसी तेल ने भारतीय रिफाइनरियों को करीब 17 अरब डॉलर की बचत कराई है।
राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर तंज कसते हुए कहा, “ट्रंप से डरते हैं क्या पीएम मोदी? रूस से तेल खरीदना हमारी ऊर्जा स्वतंत्रता का मामला है, न कि किसी विदेशी राष्ट्रपति की धमकी का।” विपक्ष ने इसे मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाने का मौका बनाया है।
आंकड़े क्या कहते हैं? गिरावट तो है, लेकिन बंदी की कोई निशानी नहीं
ट्रंप के दावे के ठीक विपरीत, ताजा डेटा दिखाता है कि भारत रूस से तेल आयात जारी रखे हुए है और वह रूस का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है (चीन के बाद)। कमोडिटी ट्रैकिंग एजेंसी केप्लर और वोर्टेक्सा के आंकड़ों के अनुसार:
• अप्रैल-सितंबर 2025: इस छह महीने में रूस से आयात में 8.4% की सालाना गिरावट आई, लेकिन कुल मात्रा 1.75 मिलियन bpd रही। रूस की हिस्सेदारी 36% से घटकर 34% हुई, जबकि अमेरिका और मिडिल ईस्ट (इराक, सऊदी) से आयात बढ़ा।
• वैश्विक संदर्भ: रूस के कुल समुद्री तेल निर्यात में भारत का हिस्सा 40% से ज्यादा है। गिरावट के पीछे बाजार गतिशीलता (रूसी तेल पर डिस्काउंट घटना, $2-3 प्रति बैरल) और सप्लाई डायवर्सिफिकेशन है, न कि अमेरिकी टैरिफ।
अमेरिकी दबाव का इतिहास: टैरिफ से क्या फर्क पड़ा?
ट्रंप ने अगस्त 2025 में भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया, जो बाद में 50% हो गया। इसका मकसद रूसी तेल आयात रोकना था, लेकिन भारत ने इसे “दोहरी नीति” बताया—क्योंकि अमेरिका खुद रूस से अरबों डॉलर का सामान खरीदता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि भारत पूरी तरह बंद करता है, तो तेल आयात बिल 9-11 अरब डॉलर बढ़ सकता है। रूस ने भी जवाब में सितंबर लोडिंग के लिए Urals क्रूड पर $2-3/बैरल की अतिरिक्त छूट दी, जिससे भारतीय रिफाइनर आकर्षित हुए।
आगे क्या? ऊर्जा सुरक्षा बनी रहेगी प्राथमिकता
विश्लेषकों का मानना है कि भारत रूस से आयात पूरी तरह बंद करने के बजाय डायवर्सिफाई करेगा। अमेरिका से आयात 6.8% बढ़ा है (2.13 लाख bpd), जबकि OPEC (मिडिल ईस्ट) का हिस्सा 49% हो गया। यदि ट्रंप का दबाव बढ़ा, तो भारत चीनी युआन या रूबल में भुगतान बढ़ा सकता है।
फिलहाल, कोई आधिकारिक बदलाव न होने से वैश्विक तेल बाजार में उतार-चढ़ाव जारी है—ब्रेंट क्रूड गुरुवार को 1% चढ़ा।
यह मुद्दा भारत-अमेरिका संबंधों पर असर डाल सकता है, खासकर जब दोनों देश व्यापार और रक्षा वार्ता में हैं। पीएम मोदी की ओर से कोई टिप्पणी न आने से सस्पेंस बना हुआ है। क्या यह ट्रंप का चुनावी स्टंट है या वाकई कोई डील हुई? आने वाले दिनों में साफ होगा।

