ट्रंप ने चीन के साथ G2 की घोषणा की: पढ़िये पूरी खबर, अब भारत को क्या करना चाहिए?

Trump announces G2 with China News: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दक्षिण कोरिया के बुसान में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बैठक के बाद ‘G2’ (ग्रुप ऑफ टू) की अवधारणा को फिर से जीवंत कर दिया है। ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रूथ सोशल पर कैपिटल लेटर्स में पोस्ट किया, “द जी2 विल बी कन्वीनिंग शॉर्टली!” (G2 जल्द ही बैठक करने वाला है!)। इस घोषणा ने वैश्विक कूटनीति में हलचल मचा दी है, क्योंकि यह अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध में अस्थायी युद्धविराम का संकेत देती है। लेकिन भारत जैसे उभरते देशों के लिए यह नई चुनौतियां पैदा कर रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अब अमेरिका को ‘मैनेज’ करने और चीन के साथ ‘इंगेज’ करने की रणनीति अपनानी होगी।

G2 की पृष्ठभूमि और हालिया समझौता
G2 की अवधारणा 2005 में अमेरिकी अर्थशास्त्री फ्रेड बर्गस्टेन ने प्रस्तुत की थी, जिसमें अमेरिका और चीन को वैश्विक अर्थव्यवस्था के ‘दो प्रमुख खिलाड़ियों’ के रूप में देखा गया। 2008-09 की वैश्विक वित्तीय संकट के बाद यह विचार मजबूत हुआ, जब चीन ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को उबारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ट्रंप के पहले कार्यकाल में व्यापार युद्ध ने इस विचार को पीछे धकेल दिया था, लेकिन अब, दूसरे कार्यकाल में, ट्रंप ने इसे पुनर्जीवित कर दिया है।

बुसान शिखर सम्मेलन (30 अक्टूबर 2025) में दोनों नेताओं ने 100 मिनट की बातचीत की। ट्रंप ने इसे “अमेजिंग” बताया और शी को “एक शक्तिशाली देश का शानदार नेता” कहा। समझौते के तहत:
• अमेरिका ने चीनी आयात पर टैरिफ 57% से घटाकर 47% कर दिया।
• चीन ने दुर्लभ मिट्टियों (रेयर अर्थ) के निर्यात पर एक साल के लिए प्रतिबंध हटा लिया।
• चीन ने अमेरिकी सोयाबीन और अन्य कृषि उत्पादों की खरीद फिर से शुरू करने का वादा किया।
• फेंटेनिल ड्रग्स पर सहयोग बढ़ाने पर टैरिफ 10% घटाया गया।

ट्रंप ने कहा, “यह बैठक दोनों देशों के लिए स्थायी शांति और सफलता लाएगी।” अमेरिकी युद्ध मंत्री पीट हेग्सेथ ने भी कहा कि दोनों देशों के बीच सैन्य संवाद चैनल स्थापित किए जाएंगे ताकि तनाव कम हो। हालांकि, विशेषज्ञ इसे “रणनीतिक गठबंधन” नहीं, बल्कि “व्यापारिक युद्धविराम” मानते हैं। रश डोशी जैसे अमेरिकी रणनीतिकारों का कहना है कि व्यापार युद्ध में चीन ने “जीत” हासिल की है।

भारत पर क्या असर?
यह घोषणा भारत के लिए दोहरी चुनौती है। एक ओर, अमेरिका-चीन के करीब आने से क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) जैसे समूह कमजोर हो सकते हैं। दूसरी ओर, ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति से भारत पर 50% टैरिफ का खतरा बरकरार है, जो ब्राजील के साथ सबसे ऊंचा है। पूर्व केंद्रीय बैंक गवर्नर उर्जित पटेल ने इसे भारत के “सबसे बुरे डर” का रूप बताया था।

विदेश मंत्री एस जयशंकर की किताब “द इंडिया वे” (2020) में भारत की बहु-संरेखण नीति का जिक्र है: “अमेरिका से इंगेज, चीन को मैनेज, यूरोप को कल्टीवेट, रूस को आश्वस्त करो।” लेकिन अब, ट्रंप के G2 से स्थिति उलट गई है। संजय बरू (पूर्व मीडिया सलाहकार) के अनुसार, भारत को अब “अमेरिका को मैनेज और चीन से इंगेज” करना होगा, जबकि रूस को आश्वस्त करते रहना होगा।

एक्स (पूर्व ट्विटर) पर बहस तेज है। @Barugaru1 (संजय बरू) ने लिखा, “ट्रंप ने G2 से दुनिया को दो ध्रुवीय बना दिया, लेकिन भारत को एशिया में अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी।” @EasyAsPie372040 ने कहा, “मोदी की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति अमेरिकी कठपुतली बन गई है; अब चीन से सीधे संवाद जरूरी।” वहीं, @catcheronthesly ने चेतावनी दी, “G2 से भारत खेल से बाहर; शी 1-ट्रंप 0।”

भारत की संभावित रणनीति
विशेषज्ञ सलाह देते हैं:
• एशिया-केंद्रित दृष्टिकोण: भारत को एशियाई पड़ोसियों (जापान, वियतनाम, इंडोनेशिया) से मजबूत संबंध बनाना चाहिए। क्वालालंपुर में जयशंकर ने कहा, “परिवर्तन अपनी गति से होता है; नई समझ बनेगी।”
• चीन से संवाद: सीमा विवाद सुलझाने के लिए ब्रिक्स और एससीओ जैसे मंचों का उपयोग। लेकिन दक्षिण चीन सागर या ताइवान जैसे मुद्दों पर सतर्क रहें।
• विविधीकरण: यूरोप, रूस और ग्लोबल साउथ से संबंध मजबूत करें। ट्रंप की अप्रत्याशित नीतियों से बचने के लिए ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति को तेज करें।
• आर्थिक कदम: टैरिफ से बचने के लिए अमेरिका से मुक्त व्यापार समझौता (FTA) तेजी से पूरा करें।
ओपइंडिया के अनुसार, भारत को “या तो-या तो” के विकल्प को खारिज रखना चाहिए और पश्चिमी साझेदारों के साथ सहयोग जारी रखें। द हिंदू में कहा गया, “G2 से भारत को इंडो-पैसिफिक में अपनी भूमिका फिर परिभाषित करनी होगी।”
निष्कर्ष

ट्रंप का G2 अमेरिका-चीन के बीच संतुलन का संकेत है, लेकिन यह बहुपक्षीय दुनिया (G20) को कमजोर कर सकता है। भारत, जो हमेशा गैर-संरेखित रहा है, को अब नई “इंडिया वे” अपनानी होगी। जैसा कि बरू कहते हैं, “एशिया में मजबूत स्थिति ही भारत को वैश्विक पटल पर मजबूत बनाएगी।” सरकार की ओर से अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन कूटनीतिक हलचलें तेज हैं। क्या भारत इस बदलते समीकरण में अपनी जगह बना पाएगा? समय बताएगा।

यहां से शेयर करें