लोकसभा अध्यक्ष ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ जांच समिति का किया गठन, ‘कैश कांड’ मामले में बढ़ी मुश्किलें

Troubles increase in ‘cash scandal’ case News : लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ गंभीर आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति के गठन का ऐलान किया। यह कदम जज (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत उठाया गया है, जो जस्टिस वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोपों से जुड़ा है। यह मामला मार्च 2025 में उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर जली-अधजली नकदी मिलने की घटना से शुरू हुआ, जिसने न्यायपालिका की साख पर गंभीर सवाल खड़े किए।

क्या है मामला?
14 मार्च 2025 को जस्टिस यशवंत वर्मा के नई दिल्ली स्थित आवास पर आग लगने की घटना हुई थी। आग बुझाने पहुंचे दमकलकर्मियों को वहां बड़ी मात्रा में जले और अधजले नोट मिले, जिसके बाद यह मामला सुर्खियों में आया। इस घटना ने न केवल न्यायिक हलकों में हड़कंप मचाया, बल्कि भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को भी जन्म दिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक आंतरिक जांच समिति ने जस्टिस वर्मा को ‘कदाचार’ का दोषी ठहराया था। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि जस्टिस वर्मा उस नकदी पर ‘नियंत्रण’ रखते थे, हालांकि वे उस समय आवास पर मौजूद नहीं थे।

इसके बाद, 31 जुलाई 2025 को भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद और विपक्ष के नेता राहुल गांधी सहित 146 लोकसभा सदस्यों और 63 राज्यसभा सदस्यों ने हस्ताक्षरित एक प्रस्ताव लोकसभा अध्यक्ष को सौंपा। इस प्रस्ताव में संविधान के अनुच्छेद 124(4), 217 और 218 के तहत जस्टिस वर्मा को उनके पद से हटाने के लिए राष्ट्रपति को समावेदन प्रस्तुत करने की मांग की गई।

तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित की है। इस समिति में शामिल हैं:
– जस्टिस अरविंद कुमार: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश
– जस्टिस मनींद्र मोहन श्रीवास्तव: मद्रास हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश
– बी.वी. आचार्य: कर्नाटक हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता

यह समिति जज (जांच) अधिनियम, 1968 की धारा 3 के तहत आरोपों की गहन जांच करेगी और अपनी रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को सौंपेगी। बिरला ने कहा, “जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोप गंभीर प्रकृति के हैं। संसद को भ्रष्टाचार के इस मुद्दे पर एक स्वर में बोलना चाहिए और देश की जनता को यह संदेश देना चाहिए कि भ्रष्टाचार को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”

जांच का क्या होगा आगे?
समिति की जांच पूरी होने तक जस्टिस वर्मा को हटाने का प्रस्ताव लंबित रहेगा। यदि समिति आरोपों को सही पाती है, तो महाभियोग प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत (उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई मत और कुल सदस्यों का बहुमत) से पारित करना होगा। इसके बाद प्रस्ताव राष्ट्रपति के पास अनुमोदन के लिए भेजा जाएगा। यह प्रक्रिया स्वतंत्र भारत में किसी कार्यरत न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की तीसरी मिसाल होगी।

जस्टिस वर्मा का पक्ष
जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी थी, जिसमें उन्होंने प्रक्रिया में खामियों और संवैधानिक अतिक्रमण का आरोप लगाया। हालांकि, 7 अगस्त 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि जांच प्रक्रिया पारदर्शी और संवैधानिक थी। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि जस्टिस वर्मा ने जांच के दौरान इसमें भाग लिया, लेकिन बाद में इसकी वैधता पर सवाल क्यों उठाए।

न्यायपालिका पर प्रभाव
यह मामला भारतीय न्यायपालिका के लिए एक अभूतपूर्व चुनौती बन गया है। जस्टिस यशवंत वर्मा, जिन्हें अक्टूबर 2021 में दिल्ली हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था और बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट स्थानांतरित किया गया, इस ‘कैश कांड’ के कारण विवादों में हैं।

मृणाल ठाकुर ने धनुष के साथ डेटिंग पर कहा, अफवाहों पर तोड़ी चुप्पी, बताया ‘अच्छा दोस्त’

यहां से शेयर करें