घटना की शुरुआत लगभग दो से तीन महीने पहले हुई, जब आरोपी समशाद मियां (जिसे कुछ रिपोर्ट्स में समसाद मियां भी कहा गया है) ने इन बच्चों को उनके गांव से जयपुर घूमने का लालच देकर लाया था। बच्चे मासूम थे और उन्हें लगा कि वे पर्यटन के लिए जा रहे हैं, लेकिन जयपुर पहुंचते ही उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया गया और चूड़ी बनाने के काम में लगा दिया गया। फैक्ट्री मालिक समशाद मियां ने उन्हें जानवरों जैसा व्यवहार किया- दिन-रात काम, मारपीट और न्यूनतम भोजन। बच्चों ने बताया कि अगर वे थक जाते या बीमार हो जाते, तो उन्हें पीटा जाता था।
20 अक्टूबर को दिवाली के मौके पर बच्चों ने मौका पाकर फैक्ट्री से भागने में सफलता पाई। डर और भटकाव में वे भट्टा बस्ती के पास स्थित कब्रिस्तान में जाकर छिप गए। अगली सुबह, लगभग 8-9 बजे, स्थानीय लोगों ने कब्रिस्तान में इन बच्चों को डरे हुए और परेशान हालत में देखा। उन्होंने तुरंत पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी। भट्टा बस्ती थाने की पुलिस टीम, जिसमें स्टेशन हाउस ऑफिसर दीपक त्यागी शामिल थे, और बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य मौके पर पहुंचे।
एनजीओ ‘प्रयास’ के कोऑर्डिनेटर सईद खान ने भी बचाव में सहयोग किया। बच्चे शुरुआत में बोलने से डर रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अपनी आपबीती सुनाई।
पुलिस ने बच्चों के बयानों के आधार पर समशाद मियां के खिलाफ जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत मामला दर्ज किया है। जांच में पता चला कि आरोपी फैक्ट्री बंद करके फरार हो गया है। पुलिस टीमों ने उसकी तलाश शुरू कर दी है और संदेह है कि फैक्ट्री में और भी बच्चे हो सकते हैं। बचाए गए बच्चों को मेडिकल जांच के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उनकी हालत स्थिर बताई जा रही है।
यह घटना जयपुर की चूड़ी फैक्टरियों में बाल मजदूरी की गंभीर समस्या को फिर से उजागर करती है। यहां अक्सर छोटे बच्चों को उनके छोटे हाथों की वजह से काम पर रखा जाता है, क्योंकि वे बारीक कांच के काम में कुशल होते हैं और वयस्कों की तुलना में आधे वेतन पर काम करते हैं। अधिकारियों का कहना है कि छापेमारी के बावजूद यह रैकेट जारी है। बाल अधिकार संगठन इस मामले की गहन जांच की मांग कर रहे हैं ताकि ऐसे अपराधों पर रोक लगाई जा सके।

