The Wire News: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (12 अगस्त) को ऑन न्यूज़ पोर्टल ‘द वायर’ के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म के सदस्यों को असम पुलिस द्वारा दर्ज एक प्राथमिकी (FIR) में अंतरिम राहत प्रदान की। यह FIR ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से संबंधित एक लेख के प्रकाशन के बाद भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 के तहत दर्ज की गई थी, जिसे राजद्रोह कानून का नया रूप माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने असम पुलिस को वरदराजन के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई न करने का निर्देश दिया और इस मामले में गहन पड़ताल की आवश्यकता पर जोर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
असम पुलिस ने 11 जुलाई को मोरीगांव में एक भाजपा पदाधिकारी की शिकायत पर ‘द वायर’ और इसके संपादक सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ FIR दर्ज की थी। यह FIR ‘द वायर’ द्वारा प्रकाशित एक लेख के आधार पर थी, जिसमें इंडोनेशिया में आयोजित एक सेमिनार में भारत के डिफेंस अताशे के बयान को उद्धृत किया गया था। लेख में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान कथित तौर पर भारतीय वायुसेना के फाइटर जेट्स के नुकसान का जिक्र किया गया था। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह लेख तथ्य-आधारित था और इसे कई अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने भी प्रकाशित किया था।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने सुनवाई के दौरान सवाल उठाया कि क्या केवल लेख लिखने या समाचार वीडियो बनाने के आधार पर पत्रकारों के खिलाफ देशद्रोह जैसे गंभीर मामले दर्ज किए जा सकते हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “जब अपराध किसी समाचार लेख के प्रकाशन से जुड़ा हो, तो हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।” पीठ ने यह भी पूछा कि “राष्ट्र की संप्रभुता को खतरे में डालने” की परिभाषा क्या है और इसे कैसे सांख्यिकीय रूप से परिभाषित किया जा सकता है।
धारा 152 BNS की संवैधानिकता पर सवाल
वरदराजन और फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म ने धारा 152 BNS की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है, जिसके तहत “भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों” को दंडित करने का प्रावधान है। याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट नित्या रामकृष्णन ने तर्क दिया कि यह धारा अस्पष्ट और व्यापक है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर “ठंडा प्रभाव” डालती है। उन्होंने कहा कि इसका दुरुपयोग पत्रकारों और मीडिया को निशाना बनाने के लिए किया जा सकता है।
सॉलिसिटर जनरल का जवाब
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में धारा 152 की व्याख्या का बचाव किया और पूछा कि क्या मीडिया को एक अलग वर्ग माना जाना चाहिए। जवाब में जस्टिस बागची ने कहा कि यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक व्यवस्था के बीच संतुलन का है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने वरदराजन और फाउंडेशन के सदस्यों को जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया और मामले को एक अन्य लंबित याचिका के साथ जोड़ दिया, जिसमें धारा 152 BNS की वैधता पर सवाल उठाए गए हैं। अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
पत्रकारों और मीडिया की प्रतिक्रिया
सिद्धार्थ वरदराजन ने X पर एक पोस्ट में कहा कि उनकी रिपोर्ट तथ्य-आधारित थी और इसे कई अन्य मीडिया संस्थानों ने भी प्रकाशित किया था। उन्होंने FIR को प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया। इस मामले को लेकर पत्रकारों और मीडिया संगठनों ने असम पुलिस की कार्रवाई की आलोचना की है, इसे प्रेस की आजादी को दबाने का प्रयास बताया है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पत्रकारों के लिए एक महत्वपूर्ण राहत है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को मजबूत करने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है। इस मामले की अगली सुनवाई और धारा 152 BNS की वैधता पर कोर्ट का अंतिम फैसला प्रेस की स्वतंत्रता और कानूनी प्रावधानों के दुरुपयोग के मुद्दे पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है।
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