The United States deported Punjabi grandmother Harjeet Kaur: अमेरिकी आप्रवासन अधिकारियों ने 73 वर्षीय पंजाबी दादी हरजीत कौर को देश से डिपोर्ट कर दिया है, जिससे सिख समुदाय में जबरदस्त आक्रोश फैल गया है। हरजीत कौर, जो 1991 में पंजाब के राजनीतिक अशांति से बचने के लिए अपने दो नाबालिग बेटों के साथ अमेरिका पहुंची थीं, वहां 33 साल से अधिक समय तक रहकर एक सामान्य जीवन जी रही थीं। लेकिन अब उनकी मजबूरी की कहानी ने न केवल अमेरिकी सिख समुदाय को हिला दिया है, बल्कि भारत में भी सहानुभूति की लहर पैदा कर दी है।
हरजीत कौर ने 1992 में पंजाब में पति की मौत के बाद अपने परिवार की सुरक्षा के लिए अमेरिका में राजनीतिक शरण (आश्रय) की अर्जी दी थी। हालांकि, उनकी कई अपीलों को खारिज कर दिया गया, जिसमें अंतिम फैसला 2012 में आया। इसके बावजूद, वे अमेरिकी आप्रवासन एवं सीमा शुल्क प्रवर्तन (ICE) के नियमों का पूरी तरह पालन करती रहीं। हर छह महीने में नियमित चेक-इन के लिए रिपोर्ट करतीं, काम की अनुमति (वर्क परमिट) हर साल नवीनीकृत करवातीं और टैक्स भरती रहीं। संयानसी बे एरिया (कैलिफोर्निया) के हर्क्यूलिस शहर में रहते हुए वे बर्कले के एक साड़ी स्टोर ‘सारी पैलेस’ में दर्जी का काम करती थीं और स्थानीय सिख गुरुद्वारे में सक्रिय रहती थीं। उनके एक बेटे को अमेरिकी नागरिकता मिल चुकी है और पांचों पोते-पोतियां भी अमेरिकी नागरिक हैं।
8 सितंबर 2025 को सैन फ्रांसिस्को के ICE कार्यालय में एक रूटीन चेक-इन के दौरान उन्हें हिरासत में ले लिया गया। परिवार का कहना है कि उन्हें यात्रा दस्तावेज जमा करने के बहाने बुलाया गया था, लेकिन तुरंत ही बेकर्सफील्ड के मेसा वर्डे ICE प्रोसेसिंग सेंटर भेज दिया गया। उनके वकील दीपक अहलूवालिया ने बताया कि हिरासत के दौरान उन्हें नियमित दवाइयां नहीं दी गईं, और अंतिम 48 घंटों में उन्हें जॉर्जिया ले जाया गया जहां उन्हें हथकड़ी लगाकर एक चार्टर्ड विमान से भारत भेज दिया गया। परिवार को उन्हें आखिरी बार मिलने का मौका भी नहीं दिया गया। अहलूवालिया ने कहा, “यह अमानवीय व्यवहार है। वे कभी डिपोर्टेशन का विरोध नहीं करती थीं, बस यात्रा दस्तावेजों के लिए भारतीय दूतावास से मदद मांग रही थीं, जो नहीं मिली।”
इस घटना ने सिख समुदाय को गुस्से से भर दिया है। 12 सितंबर को कोंट्रा कोस्टा काउंटी के एल सोब्रैंटे सिख गुरुद्वारे के बाहर 200 से अधिक लोगों ने “ब्रिंग ग्रैंडमा होम” के नारे लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया। हरजीत की बहू मंजीत कौर ने आंसुओं के बीच कहा, “वे सबकी दादी हैं। उनके बिना हमारा घर सूना हो गया।” उनकी पोती सुखदीप कौर ने उन्हें “स्वतंत्र, निस्वार्थ और मेहनती” बताया, जो समुदाय के लिए मां तुल्य हैं। सिख कोअलिशन ने बयान जारी कर कहा, “यह न केवल हरजीत बीबी के साथ अन्याय है, बल्कि पूरे आप्रवासी समुदाय के खिलाफ नीतियों का हिस्सा है। हम दोनों पार्टियों की सख्त नीतियों की निंदा करते हैं।” स्थानीय नेता जैसे हर्क्यूलिस सिटी काउंसिलर दिल्ली भट्टराई और कैलिफोर्निया स्टेट सीनेटर जेसी अर्रेगुइन ने भी उनकी रिहाई की मांग की। अर्रेगुइन ने कहा, “ICE द्वारा गिरफ्तार 70% लोगों पर कोई आपराधिक मुकदमा नहीं है।”
ट्रंप प्रशासन की कठोर आप्रवासन नीतियों के तहत यह घटना बड़े पैमाने पर निर्वासन अभियान का हिस्सा बताई जा रही है। ICE के प्रवक्ता ने कहा कि हरजीत ने 1991 से 34 साल तक कानूनी प्रक्रिया का पालन किया लेकिन 2005 में इमिग्रेशन जज ने उन्हें देश छोड़ने का आदेश दिया था, जिसका पालन नहीं किया। लेकिन परिवार और समुदाय का तर्क है कि यात्रा दस्तावेजों की कमी के कारण वे भारत लौट नहीं सकीं। सिख प्रेस एसोसिएशन ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा, “कोई आपराधिक इतिहास नहीं, कभी सरकारी सहायता नहीं ली, फिर भी 73 साल की दादी को कंक्रीट सेल में बिना बिस्तर के रखा गया।”
हरजीत कौर अब पंजाब पहुंच चुकी हैं, लेकिन परिवार का कहना है कि उनकी उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए यह डिपोर्टेशन क्रूर है। सिख समुदाय ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाने का फैसला किया है, ताकि ऐसी घटनाओं पर रोक लगे। यह मामला अमेरिकी आप्रवासन व्यवस्था की कठोरता और मानवीय पहलू की कमी को उजागर करता है, जहां लंबे समय से बसे लोग भी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।

