मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने यह आदेश इंडियन सोसाइटी ऑफ ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन की जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए दिया।
कोर्ट के प्रमुख निर्देश:
1. केंद्र सरकार राष्ट्रीय अंग-प्रत्यारोपण नीति बनाए जिसमें सभी राज्यों के लिए एकसमान दाता और प्राप्तकर्ता मानदंड हों।
2. लिंग और जाति आधारित भेदभाव को पूरी तरह खत्म करने के उपाय किए जाएं।
3. आंध्र प्रदेश को 2011 में संशोधित ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एक्ट (THOA) को तुरंत अपनाने के लिए राजी किया जाए।
4. कर्नाटक, तमिलनाडु और मणिपुर जैसे राज्य जो अभी तक 2014 के ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एंड टिश्यूज रूल्स को नहीं अपना पाए हैं, उन्हें जल्द अपनाने का निर्देश।
5. मणिपुर, नगालैंड, अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप जैसे राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में अभी तक राज्य स्तरीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (SOTO) नहीं बना है। केंद्र इनकी जल्द स्थापना करे।
6. जीवित दाताओं (लिव डोनर्स) के शोषण को रोकने के लिए विशेष कल्याणकारी दिशा-निर्देश बनाए जाएं, ताकि दान के बाद उनकी देखभाल और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित हो।
7. जन्म-मृत्यु पंजीकरण फॉर्म (फॉर्म 4 और 4A) में संशोधन किया जाए ताकि स्पष्ट रूप से लिखा जाए कि मृत्यु “ब्रेन डेथ” थी या नहीं और परिवार को अंगदान का विकल्प दिया गया था या नहीं।
कोर्ट ने क्या चिंता जताई?
• देश में अभी तक कोई एकीकृत राष्ट्रीय डेटाबेस नहीं है, जिससे दूसरे राज्यों के मरीजों को अंग मिलने में देरी होती है।
• 90% से ज्यादा प्रत्यारोपण निजी अस्पतालों में होते हैं, सरकारी अस्पतालों में नाममात्र की सुविधा।
• महिलाएं और निचली जातियों/आर्थिक वर्ग के लोग अंग प्राप्त करने में भारी भेदभाव का शिकार होते हैं।
• कुछ राज्य अभी भी पुराने कानूनों पर चल रहे हैं, जिससे पूरे देश में एकरूपता नहीं है।
कोर्ट ने पहले अप्रैल 2025 में सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और स्वास्थ्य सचिवों की बैठक बुलाने और जुलाई 2025 तक विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी। उस रिपोर्ट के आधार पर अब ये सख्त निर्देश दिए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि अंग-दान और प्रत्यारोपण जीवन-मृत्यु का सवाल है, इसलिए इसमें किसी भी तरह की देरी या असमानता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। केंद्र सरकार को अब जल्द से जल्द सभी हितधारकों के साथ मिलकर नई राष्ट्रीय नीति और नियम लागू करने होंगे।

