अब लगभग 20,000 करोड़ रुपये की सार्वजनिक परियोजनाओं को मंजूरी मिलने का रास्ता साफ हो गया है, जिनमें ओडिशा में बन रहा AIIMS, कर्नाटक का ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAIL) की कई परियोजनाएं शामिल हैं।
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच—जिसमें जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस उज्ज्वल भूयां भी शामिल थे—ने 2:1 के बहुमत से समीक्षा याचिकाओं पर फैसला सुनाया। सीजेआई गवई ने बहुमत के फैसले में कहा कि मई का आदेश अगर लागू रहता, तो इन परियोजनाओं को ध्वस्त करना पड़ता, जिससे न केवल भारी आर्थिक नुकसान होता, बल्कि निर्माण सामग्री के निपटान से पर्यावरण को और क्षति पहुंचती। उन्होंने जोर देकर कहा कि पुराने फैसले में विरोधाभास था—खनन कंपनियों को बाद में मंजूरी की छूट दी गई थी, लेकिन सार्वजनिक परियोजनाओं को नहीं। यह जनहित के खिलाफ होता।
पोस्ट-फैक्टो मंजूरी पर बहस
मई 2025 के फैसले (वणशक्ति बनाम भारत संघ) में सुप्रीम कोर्ट ने 2017 की केंद्र सरकार की अधिसूचना और 2021 के कार्यालय ज्ञापन को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। इन दस्तावेजों के तहत परियोजनाएं बिना पूर्व मंजूरी शुरू होकर बाद में जुर्माना देकर नियमित की जा सकती थीं। कोर्ट ने इसे ‘पर्यावरण न्यायशास्त्र के लिए अभिशाप’ करार दिया था, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदूषण-मुक्त जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है।
हालांकि, सैकड़ों समीक्षा याचिकाओं में स्टील अथॉरिटी, कर्नाटक सरकार और अन्य ने तर्क दिया कि इन परियोजनाओं पर पहले ही हजारों करोड़ खर्च हो चुके हैं। अगर इन्हें गिराया जाता, तो स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे से जुड़े महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट रुक जाते। सरकार ने भी कोर्ट को बताया कि ये परियोजनाएं केवल अंतिम मंजूरी के इंतजार में हैं, और इन्हें रद्द करने से विकास प्रभावित होता।
जस्टिस भूयां की असहमति
बहुमत के फैसले से असहमत जस्टिस उज्ज्वल भूयां ने अलग से राय रखी। उन्होंने कहा कि पर्यावरण कानून का मूल आधार ‘सावधानी सिद्धांत’ (Precautionary Principle) है, जिसे कमजोर करना गलत है। पोस्ट-फैक्टो मंजूरी देना पर्यावरण उल्लंघनों को वैध ठहराने जैसा है, जो लंबे समय में अपूरणीय क्षति पहुंचा सकता है। जस्टिस भूयां ने दिल्ली के स्मॉग का हवाला देते हुए चेतावनी दी कि अदालत को पर्यावरण संरक्षण से पीछे नहीं हटना चाहिए। उनका मानना है कि यह फैसला पर्यावरण न्यायशास्त्र के लिए पीछे की ओर कदम है।
प्रभाव
इस फैसले से रियल एस्टेट, खनन और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को राहत मिली है। कन्फेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स (CREDAI) ने इसे ‘व्यावहारिक कदम’ बताया। लेकिन पर्यावरण संगठनों जैसे वणशक्ति ने विरोध जताया, कहा कि यह नियम तोड़ने वालों को प्रोत्साहन देगा। विशेषज्ञों का कहना है कि कोर्ट ने विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की है, लेकिन भविष्य में सख्त निगरानी जरूरी होगी।
मई के फैसले को रद्द करने से पहले कोर्ट ने 40 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई की, जिसमें वरिष्ठ वकील संजय पारिख और आनंद ग्रोवर जैसे लोगों ने पर्यावरण की रक्षा का पक्ष रखा। सीजेआई गवई ने स्पष्ट किया कि यह फैसला विशिष्ट मामलों तक सीमित है, और सामान्य रूप से पोस्ट-फैक्टो मंजूरी पर रोक बरकरार रहेगी।
यह फैसला भारत में पर्यावरणीय शासन के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जहां तेज विकास और हरित संरक्षण के बीच टकराव आम है। सरकार को अब इन परियोजनाओं पर पारदर्शी निगरानी सुनिश्चित करनी होगी ताकि पर्यावरण क्षति न हो।

