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सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने वोडाफोन आइडिया की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि केंद्र सरकार कंपनी द्वारा उठाए गए मुद्दों की समीक्षा कर सकती है। याचिका में DoT की ओर से 2016-17 के लिए 5,606 करोड़ रुपये की अतिरिक्त AGR मांग को चुनौती दी गई थी। कंपनी का तर्क था कि 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद AGR देनदारियां पहले ही स्पष्ट हो चुकी थीं, इसलिए ये नई मांगें अवैध हैं।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि सरकार के पास अब वोडाफोन आइडिया में 49% इक्विटी हिस्सेदारी है, और कंपनी के लगभग 20 करोड़ ग्राहक इसकी सेवाओं पर निर्भर हैं। उन्होंने कहा कि उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए केंद्र कंपनी की याचिका पर विचार करने को तैयार है। पीठ ने कहा, “परिस्थितियों में बदलाव को देखते हुए, जिसमें सरकार की 49% हिस्सेदारी और 20 करोड़ ग्राहकों का उपयोग शामिल है, केंद्र को इस मुद्दे की जांच करने में कोई समस्या नहीं है।”
सीजेआई गवई ने आदेश में जोर दिया कि यह विषय सरकार के नीतिगत अधिकार क्षेत्र में आता है, और अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी। अदालत ने कहा, “ऐसा कोई कारण नहीं है कि सरकार को ऐसा करने से रोका जाए।” इस फैसले के साथ याचिका का निपटारा कर दिया गया। वोडाफोन आइडिया की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि ये अतिरिक्त मांगें अस्थिर हैं, क्योंकि 2019 के फैसले से देनदारियां पहले ही तय हो चुकी थीं।
AGR विवाद का बैकग्राउंड
AGR वह आय है जिसके आधार पर दूरसंचार कंपनियां सरकार को लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क का भुगतान करती हैं। विवाद तब शुरू हुआ जब सरकार ने AGR में गैर-दूरसंचार आय (जैसे कि किराया, लाभांश आदि) को भी शामिल करना शुरू किया, जिससे कंपनियों पर भारी बोझ पड़ा। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की परिभाषा को मंजूर करते हुए कंपनियों से लगभग 92,000 करोड़ रुपये की वसूली की अनुमति दी, जिसमें वोडाफोन आइडिया और भारती एयरटेल सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।
इस फैसले से वोडाफोन आइडिया की वित्तीय स्थिति में सुधार की उम्मीद है, जो पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबी हुई है। शेयर बाजार में कंपनी के स्टॉक में तेजी आई, और विश्लेषकों का मानना है कि अगर AGR राहत मिलती है तो आगे और उछाल संभव है। हालांकि, अंतिम निर्णय सरकार पर निर्भर करेगा, जो उपभोक्ता हितों और कंपनी की स्थिरता को ध्यान में रखते हुए कदम उठाएगी।
यह फैसला भारतीय दूरसंचार क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है, जहां AGR विवाद लंबे समय से कंपनियों की चुनौती बना हुआ है।

