मुस्लिम वोटों को बिखेरने के लिए बिछ रही बिसात, जानिए कौन सी पार्टी का क्या है फॉर्मूला

उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक हमेशा से ही एक निर्णायक कारक रहा है। मुस्लिम मतदाताओं को बांटने के लिए अंदर ही अंदर बिसात बिछाई जा रही है। ताकि मतदाता बट जाए और एक विशेष पार्टी का फायदा हो। हालांकि प्रचार किया जा रहा है कि मस्लिम वोटरों से कुछ नही होगा। इसके लिए कई तरीके अपनाए जा रहे हैं। सोए हुए हाथी को जगा दिया गया है। वही साइकिल पंचर करने के लिए ज़ोर आजमाइश जारी है। इतना ही नहीं भाजपा का आईटी सेल सोशल मीडिया पर तरह तरह के दावे करते हुए सक्रिय हैं ताकि मुस्लिम मतदाता का मन डोल जाए और वोट बिखर जाए। बता दें कि आज की राजनीतिक परिदृश्य में, समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) दोनों ही इस महत्वपूर्ण वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही हैं, जिससे मुस्लिम वोटों का संभावित विभाजन देखने को मिल रहा है।

 

मुस्लिम वोट बैंक पर सपा और बसपा की ‘ताबड़तोड़’ खींचतान

  1. समाजवादी पार्टी (सपा) का पारंपरिक आधार और ‘PDA’ फॉर्मूला:
    • पारंपरिक समर्थन: मुस्लिम मतदाता लंबे समय से सपा का मुख्य आधार रहे हैं, खासकर यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण के कारण।
    • दलितों में सेंध और ‘PDA’: सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अब अपने आधार का विस्तार करने के लिए दलितों को साधने पर जोर दिया है, जिसके लिए उन्होंने ‘PDA’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का नारा दिया है। अल्पसंख्यक (मुख्यतः मुस्लिम) इस फॉर्मूले का एक अहम हिस्सा हैं।
    • रणनीति: सपा मुस्लिम बहुल इलाकों में मतदाता सूची अभियान चला रही है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मुस्लिम वोटरों के नाम सूची में हों और वे कटें नहीं। इसके अलावा, सपा अन्य मुस्लिम नेताओं को भी साथ लाने का प्रयास कर रही है।
    • मुस्लिम उम्मीदवार: सपा, मुस्लिम हितों को लेकर खुद को सबसे बड़ी हितैषी के रूप में प्रस्तुत करती है और यह मानकर चलती है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विरुद्ध लड़ाई में मुस्लिम मतदाता अंततः उसके साथ लामबंद होंगे।
  2. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुस्लिम वोटों पर दावेदारी
    • दलित-मुस्लिम समीकरण की कोशिश: बसपा, जिसका मुख्य आधार दलित (विशेषकर जाटव) वोट बैंक है, ने हमेशा से ‘सर्वजन हिताय’ और बाद में दलित-मुस्लिम गठजोड़ की कोशिश की है, जैसा कि 2007 में दलित-ब्राह्मण-मुस्लिम सामाजिक इंजीनियरिंग के ज़रिए सत्ता हासिल की थी।
    • बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार: बसपा ने हाल के चुनावों में, यहां तक कि 2022 के विधानसभा चुनावों में भी, सबसे अधिक मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। यह उसकी एक रणनीति है जिसके तहत वह मुस्लिम समुदाय में पैठ बनाने की कोशिश करती है और खुद को उनका सच्चा हितैषी बताती है।
    • वर्तमान रणनीति में बदलाव के संकेत: हालांकि 2022 के चुनाव में सबसे ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतारने के बावजूद बसपा की हार हुई और मायावती ने इसके लिए मुसलमानों के वोट सपा की ओर शिफ्ट होने को जिम्मेदार ठहराया था। इसके बाद, बसपा अपनी रणनीति बदल रही है, लेकिन 2027 के चुनाव को देखते हुए वह फिर से दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण के 2007 वाले समीकरण पर काम करने के संकेत दे रही है।
    • मुस्लिम नेताओं पर दांव: बसपा कई महत्वपूर्ण सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को आगे करके सपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश करती है।

मुस्लिम वोट बटा तो भाजपा को सीधे लाभ

  • सपा की ओर झुकाव: पिछले चुनावों (विशेषकर 2022 विधानसभा और 2024 लोकसभा) में यह प्रवृत्ति देखी गई है कि मुस्लिम मतदाता, भाजपा को हराने में सक्षम माने जाने वाले सबसे मजबूत विपक्षी दल (उत्तर प्रदेश में सपा) के पीछे लामबंद हो गए हैं।
  • बसपा का प्रयास: बसपा को उम्मीद है कि सपा से असंतुष्ट मुस्लिम वोटर और उसके दलित कोर वोटर मिलकर उसे मजबूती प्रदान कर सकते हैं, लेकिन उसका वोट शेयर लगातार गिर रहा है।
  • मुख्य चुनौती: इस खींचतान से सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अगर मुस्लिम वोट सपा और बसपा के बीच प्रभावी ढंग से विभाजित हो जाते हैं, तो इसका सीधा लाभ भाजपा को मिल सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘एंटी-इनकम्बेंसी’ वोट के बंटने से भाजपा को बड़ी मदद मिलती है, जैसा कि अतीत में देखा गया है।
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