The reunion of the Thackeray and Pawar families: महाराष्ट्र की राजनीति में परिवारवाद की वापसी, क्यों हो रहा है यह पुनर्मिलन?

The reunion of the Thackeray and Pawar families: महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों परिवारों के पुनर्मिलन की खबरें सुर्खियां बटोर रही हैं। पहले ठाकरे भाइयों — उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे — ने लगभग दो दशक पुरानी दुश्मनी को भुलाकर गठबंधन की घोषणा की, और अब पवार परिवार में चाचा शरद पवार और भतीजे अजित पवार ने भी स्थानीय निकाय चुनावों के लिए हाथ मिलाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह सब आगामी नगर निगम चुनावों, खासकर ब्रिहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) और पिंपरी-चिंचवड़ चुनावों की वजह से हो रहा है, जहां भाजपा की मजबूत चुनौती का मुकाबला करने की रणनीति साफ दिख रही है।

20 साल बाद ‘गंगा-यमुना का संगम’
24 दिसंबर को राज ठाकरे ने औपचारिक रूप से घोषणा की कि उनकी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) और उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) अब गठबंधन सहयोगी हैं। यह गठबंधन मुख्य रूप से मुंबई, ठाणे, पुणे, नासिक समेत कई नगर निगम चुनावों के लिए है। उद्धव ठाकरे ने इसे “महाराष्ट्र और मराठी जनता के हित में” बताया, जबकि राज ठाकरे ने इसे मराठी गौरव की रक्षा से जोड़ा।

पृष्ठभूमि में एकनाथ शिंदे के विद्रोह के बाद शिवसेना का विभाजन है, जिससे उद्धव को पार्टी का नाम, चिह्न और बड़ा वोट बैंक खोना पड़ा। विधानसभा चुनावों में शिंदे गुट (भाजपा समर्थित) ने अच्छा प्रदर्शन किया, जबकि उद्धव और राज दोनों कमजोर पड़ गए। MNS को तो ज्यादातर सीटों पर जमानत जब्त हो गई। अब दोनों मिलकर मराठी वोटों को एकजुट करने और शिंदे-भाजपा गठबंधन को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं।

BMC चुनावों में सीट बंटवारे की जानकारी के अनुसार, शिवसेना (UBT) को 145-150 सीटें और MNS को 65-70 सीटें मिल सकती हैं। हालांकि, कांग्रेस ने इस गठबंधन से दूरी बनाई है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह गठबंधन ठाकरों के लिए अस्तित्व की लड़ाई है, क्योंकि मुंबई शिवसेना की आखिरी मजबूत किले के रूप में बची है।

पिंपरी-चिंचवड़ से शुरुआत
ठाकरों के बाद अब पवार परिवार की बारी। 29 दिसंबर को उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने घोषणा की कि उनकी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) और शरद पवार की NCP (SP) 15 जनवरी को होने वाले पिंपरी-चिंचवड़ नगर निगम चुनावों में साथ लड़ेंगी। अजित ने इसे “परिवार का एकजुट होना” बताया और कहा कि कार्यकर्ताओं की मांग पर यह फैसला लिया गया।

2023 में अजित पवार ने शरद पवार से बगावत कर भाजपा-शिंदे गठबंधन में शामिल हो गए थे, जिससे परिवार में तीखी बहस हुई। लोकसभा चुनावों में अजित गुट का प्रदर्शन कमजोर रहा, जिसके बाद उन्होंने परिवार से दूरी को “गलती” माना। अब दोनों गुट मिलकर पिंपरी-चिंचवड़ — जो कभी अविभाजित NCP का गढ़ था — को भाजपा से छीनने की कोशिश करेंगे। 2017 में भाजपा ने यहां 77 सीटें जीतकर NCP का प्रभाव कम कर दिया था।

हालांकि, यह गठबंधन फिलहाल सिर्फ पिंपरी-चिंचवड़ तक सीमित है। रोहित पवार जैसे नेता स्पष्ट कर चुके हैं कि यह BMC या अन्य चुनावों तक नहीं बढ़ेगा। शरद पवार की धर्मनिरपेक्ष छवि और अजित की भाजपा के साथ सत्ता में भागीदारी के बीच वैचारिक अंतर बरकरार है।

एक साझा लक्ष्य
दोनों परिवारों के पुनर्मिलन का मुख्य उद्देश्य भाजपा की बढ़ती ताकत को रोकना है। महाराष्ट्र में कई नगर निगमों पर भाजपा का कब्जा है, और BMC जैसे अमीर निकायों पर नियंत्रण राजनीतिक-आर्थिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है। उद्धव ठाकरे और संजय राउत ने खुलकर कहा है कि यह गठबंधन “भाजपा को सबक सिखाने” के लिए है।

भाजपा और शिंदे गुट ने इसे “नाम की राजनीति” या “परिवारवाद” करार दिया है, जबकि विपक्ष इसे कार्यकर्ताओं की एकता बता रहा है। आने वाले चुनाव ही बताएंगे कि ये पुनर्मिलन कितने कारगर साबित होते हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में परिवारों का यह “आखिरी हथियार” कितना असर दिखाएगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

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