विवाद की शुरुआत: कैसे हुई डील?
मुंधवा-कोरेगांव पार्क क्षेत्र में स्थित यह 40 एकड़ जमीन ‘महार वतन’ श्रेणी की सरकारी संपत्ति थी, जो दलित समुदाय के लिए आरक्षित मानी जाती है। बॉम्बे इन्फीरियर विलेज वतन एबोलिशन एक्ट, 1958 के तहत ऐसी जमीन का निजीकरण प्रतिबंधित है। फिर भी, अमादिया एंटरप्राइजेज एलएलपी नाम की कंपनी ने इसे खरीद लिया। कंपनी के पार्टनर पार्थ पवार (99% हिस्सेदारी) और दिग्विजय अमरसिंह पाटिल हैं। कंपनी का पंजीकृत पता पार्थ के पुणे स्थित निवास से मेल खाता है।
आरटीआई कार्यकर्ता विजय कुम्भार के अनुसार, 272 व्यक्तियों ने शीतल तेवाणी को पावर ऑफ अटॉर्नी देकर जमीन बेची, जो अमादिया को ट्रांसफर हुई। डील 27 दिनों में पूरी हो गई। बाजार मूल्य 1,800 करोड़ होने के बावजूद इसे 300 करोड़ का आंका गया। स्टांप ड्यूटी 7% (लगभग 21 करोड़) होनी चाहिए थी, लेकिन आईटी पार्क बनाने के बहाने इसे माफ कर दिया गया। नोटरी शुल्क मात्र 500 रुपये लिया गया, जबकि 2% स्थानीय निकाय और मेट्रो सेस (6 करोड़) अनिवार्य था।
विपक्षी नेता शिवसेना (यूबीटी) के एमएलसी अंबादास दानवे ने कहा, “एक लाख रुपये पूंजी वाली कंपनी ने आईटी पार्क बनाने का दावा किया, लेकिन इतनी महंगी जमीन कैसे खरीदी? यह तो खुला लूट है!” कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने न्यायिक जांच की मांग की, जबकि राहुल गांधी ने इसे ‘दलितों की जमीन की चोरी’ बताते हुए पीएम मोदी की चुप्पी पर सवाल उठाए।
‘मेरा कोई लेना-देना नहीं’
उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में सफाई दी। उन्होंने कहा, “मैं इस डील से दूर-दूर तक जुड़ा नहीं हूं। बच्चे बड़े हो जाते हैं, वे अपना कारोबार खुद संभालते हैं। पार्थ और उनके पार्टनर को नहीं पता था कि जमीन सरकारी है।” पवार ने जोर देकर कहा कि डील रद्द हो चुकी है और एक भी रुपया ट्रांसफर नहीं हुआ। उन्होंने अपनी 35 साल की राजनीतिक यात्रा में पारदर्शिता का दावा किया।
हालांकि, विपक्ष ने सवाल उठाया कि वित्त मंत्री और पुणे के गार्जियन मंत्री के रूप में अजित पवार को कैसे पता न चला? एनसीपी (एसपी) की सुप्रिया सुले ने पार्थ का बचाव किया, लेकिन कहा कि जांच में सच्चाई सामने आएगी।
जांच और सस्पेंशन
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसे ‘गंभीर’ बताते हुए उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए। अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास खरगे की अगुवाई में समिति एक महीने में रिपोर्ट देगी। सब-रजिस्ट्रार रविंद्र तरू और तहसीलदार सूर्यकांत येवले को निलंबित कर दिया गया। तीन लोगों (कंपनी पार्टनर, विक्रेता और अधिकारी) के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई, लेकिन पार्थ का नाम नहीं है।
एक्टिविस्ट अंजली दमणिया ने 11 नवंबर तक शिकायत दर्ज करने का वादा किया है। स्टांप ड्यूटी विभाग ने डील रद्द करने के लिए कंपनी को दोगुनी राशि (लगभग 42 करोड़) चुकाने का नोटिस जारी किया। प्रारंभिक रिपोर्ट में अनियमितताओं की पुष्टि हुई है।
चुनावी साजिश या सच्चा घोटाला?
यह विवाद स्थानीय निकाय चुनावों से ठीक पहले फूटा है, जिसे अजित पवार ने ‘पुरानी आरोपों की राजनीति’ बताया। राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, “1800 करोड़ की सरकारी जमीन 300 करोड़ में मंत्री के बेटे को बेचना ‘भूमि चोरी’ है। वोट चोरी से बनी सरकार भूमि चोरी कर रही है।” सोशल मीडिया पर #AjitPawarScam ट्रेंड कर रहा है, जहां लोग ‘एक कानून अमीरों के लिए, गरीबों के लिए दूसरा’ का नारा दे रहे हैं।
एक्टिविस्टों का कहना है कि यह महाराष्ट्र में भूमि घोटालों की कड़ी का हिस्सा है। क्या जांच पारदर्शी होगी या राजनीतिक दबाव में दब जाएगी? सवाल वही हैं—क्या पार्थ पवार पर कार्रवाई होगी, या यह फिर एक ‘फैमिली बिजनेस’ साबित हो जाएगा?

