भोले बाबा की खुल रही परतें, जानिए पुलिस ने कब जेल भेजा
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भोले बाबा की खुल रही परतें, जानिए पुलिस ने कब जेल भेजा

वैसे तो देशभर में कई बाबाओं के कारनामे सामने आ चूके हैं और वे जेल में है। लेकिन भक्तों पर ना जाने क्यों असर नहीं होता। यूपी के हाथरस हादसे को लेकर देश भर में तरह तरह की चर्चाएं हो रही है। सवाल यही उठ रहा है 122 लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन? ऐसा नहीं कि हाथरस में धार्मिक अनुष्ठान या प्रवचन के दौरान भगदड़, इसके बाद इतनी बड़ी संख्या में हुई मौत का वाकया पहली बार हुआ। इससे पहले भी कई ऐसे हादसे हो चूके हैं, जहाँ 2014 में कुंभ मेले के दौरान इलाहाबाद में भी भगदड़ जिस दौरान 100 से अधिक लोगों की जान गई । हाथरस में 122 लोगों की जान गई है मगर देखिए बाबा बेदाग है अफसर निर्दोष है इस हादसे पूरे गुनाहगार आयोजक सेवादार और सुरक्षाकर्मी है

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बताते है हाथरस हादसे का सच और बाबा की पूरी कहानी। ये सुनेगे तो चैंक जाएंगे। सूरजपाल उर्फ नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग के बाद मची भगदड़ में 122 लोगों की जान चली गई। हादसे पर मंगलवार की देर रात पुलिस की ओर से सिकंदराराऊ कोतवाली में आयोजकों पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। मगर इसमें बाबा के नाम का जिक्र तक नही है। क्या सरकार उन्हें बचा रही है? दर्ज रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुमति से अधिक भीड़ एकत्रित करने, लोगों को सही से मैनेज नही करने के साथ सामूहिक हत्या आदि की धाराओं में एफआईआर है। इस बीच बाबा को लेकर नए-नए खुलासे हो रहे हैं।
पुलिस भोले बाबा उर्फ सूरजपाल उर्फ एसपी सिंह उर्फ साकार विश्व हरि की कुंडली खंगाल रही है। अब तक की पड़ताल में सामने आया कि नारायण साकार हरि को 24 साल पहले मृत किशोरी को पुनर्जीवित करने का दावा करने के लिए उनकी गिरफ्तारी हुई थी।
सिपाही से ‘चमत्कारी बाबा’ बनने वाले सूरजपाल सहित सात लोगों पर 18 मार्च 2000 को थाना शाहगंज में केस दर्ज हुआ था। गिरफ्तारी भी की गई थी। श्मशान घाट में 24 साल पहले एक किशोरी को मलका चबूतरा में जिंदा करने की कोशिश की गई थी।
पुलिस के पहुंचने पर जमकर बवाल हुआ। पुलिस ने बल प्रयोग कर कथित बाबा के कई अनुयायियों को हिरासत में लिया था। पहले चार्जशीट लगाई थी। बाद में फाइनल रिपोर्ट लग गई।
दरअसल, मूलरूप से बहादुर नगर, पटियाली एटा निवासी सूरजपाल खुफिया विभाग (एसपीआर कार्यालय) में सिपाही थे।

 

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विभाग में उनके साथ काम करने वाले बताते है कि 1990 की बात है। तब उनका आना-जाना अर्जुन नगर, शाहगंज में आयोजित होने वाले एक सत्संग से हो गया। इसी बीच उनका इंटरेस्ट नौकरी में कम और सत्यसंग में बढता चला गया। काफी तेजी से उन्होंने अपने आप को प्रवचन देने वाले बाबा के रुपे में ढाल लिया और नौकरी से छोड़ दी। स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति यानी वीआरएस ले ली। इसके बाद खुद का सत्संग शुरू कर दिया। उनसे बड़ी संख्या में लोगों की आस्था जुड़ती चली गई। उनके आने पर पहले अनुयायी आते थे। सत्संग में भीड़ जुटती थी।

वैसे तो बाबा के कोई औलाद नही

बाबा उस समय केदार नगर स्थित मकान संख्या डी-55 में रहते थे। उन्होंने साले की बेटी को गोद लिया था। 16 मार्च 2000 को स्नेहलता की फतेहगढ़ में कैंसर से मृत्यु हो गई। उसी दिन शव को केदार नगर लेकर आए थे। बाबा के मकान पर किशोरी को जीवित करने का प्रयास किया गया। उस दौरान बाबा काफी चर्चाओं में आए। तब से बाबा की मान्यता बढती चली गई। कई रा नेता भी बाबा के सामने नतमस्तक दिखाई देते रहे है।

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