आरएसएस के स्थानीय नेता अशोक पाटिल द्वारा दायर इस याचिका का मामला तब तूल पकड़ा जब चित्तापुर तहसीलदार ने कुछ दिनों पहले संगठन को अनुमति देने से इंकार कर दिया था।
संगठन का दावा है कि यह रूट मार्च उनके नियमित कार्यक्रम का हिस्सा है और इसमें कोई उत्तेजक तत्व नहीं है। हालांकि, स्थानीय संगठनों का कहना है कि सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाई जा रही उत्तेजक संदेशों के कारण इससे बड़े पैमाने पर भीड़ जमा हो सकती है, जो कानून-व्यवस्था के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि में, 19 अक्टूबर को हाईकोर्ट ने विशेष बैठक बुलाई थी, जहां जस्टिस एम.जी. शुकारे कमल ने आरएसएस को नई आवेदन दाखिल करने और जिला प्रशासन को इसे विचार करने का निर्देश दिया था। अदालत ने साथ ही प्रशासन से कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी थी, जिसकी सुनवाई आज निर्धारित है। आरएसएस ने हाईकोर्ट के निर्देशानुसार चित्तापुर तहसीलदार को ईमेल और व्हाट्सएप के माध्यम से आवेदन भेजा है, जिसमें 2 नवंबर की तारीख की पुष्टि की गई है।
वहीं, विरोध की लहर तेज हो रही है। भीम आर्मी ने चित्तापू में अपनी नीली झंडा और लाठी लेकर जुलूस निकालने की अनुमति मांगी है, जबकि दलित पैंथर्स ने भी जुलूस आयोजित करने का आवेदन दिया है। इसके अलावा, गोंडा-कुरुबा एसटी एक्शन कमिटी ने अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में समुदायों को शामिल करने के लिए विरोध प्रदर्शन की अनुमति मांगी है।
सौहार्द कर्नाटक फोरम ने तो जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर आरएसएस के रूट मार्च पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
चित्तापुर तहसीलदार नागय्या हीरमठ ने बताया कि पुलिस से इनपुट मिलने के बाद वे जिला प्रशासन को रिपोर्ट सौंपेंगे।
कलबुर्गी के एसपी अद्दुरु श्रीनिवासलू ने कहा कि पुलिस ने इस मामले पर कानूनी राय ले ली है और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पूरी तैयारी की गई है।
यह विवाद चित्तापुर के राजनीतिक माहौल को और गरमा रहा है, जो कांग्रेस नेता प्रियंक खरगे का गढ़ माना जाता है। आरएसएस समर्थक इसे उनके वैचारिक कार्यक्रम का हिस्सा बता रहे हैं, जबकि विरोधी इसे सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाला करार दे रहे हैं। हाईकोर्ट के फैसले का असर न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि पूरे कर्नाटक में दिखेगा।

