जिंस वक्त घूमने फिरने और हंसने गाने घर में परिवार के बीच मौज मस्ती उड़ाने की उम्र है उस दौरान राजनीति से काफी दूर रही एक पढ़ी लिखी लड़की को अचानक से सब कुछ छोड़कर राजनीति में उतरना पड़े तो आप समझ जाइए कि उसके सामने कितनी विकट स्थिति रही होगी हे। मोदी लहर का सामना और परिवार पर आ रहें कष्ट झेलकर जीत को गले लगा कर कैसा महसूस किया होगा। ये फिलिंग तो वही बता सकती है। दरअसल हम बात कर रहे हैं कैराना की नई सांसद इकरा हसन की। सोशल मीडिया पर धूम मचा कर ओर बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद पाकर इकरा हसन ने एक नया इतिहास लिख दिया है। साम्प्रदायिकता को पीछे छोड़ सबकी लाडली बनी हे 29 साल की इकरा हसन के सामने चुनौतियां कम नहीं है। चुनाव में खास बात ये रही की उनके प्रचार में कोई भी बड़ा नेता रैली करने नहीं पहुंचा। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा था। अखिलेश यादव ने उनसे पूछा था लेकिन उन्होंने कह दिया की आप देख लीजिये मगर अखिलेश को पूरा विश्वास था इकरा उनके भरोसे को कायम रखेगी। इकरा हसन ने अपने ही दम पर दिन रात एक कर प्रचार किया। लंदन से लॉ करने के बाद इकरा के लिए खेतो में घूमना गांव में जाना कितना मुश्किल भरा रहा या फिर उन्होंने इसको एन्जॉय किया। ये परिणाम बताते हैं। लगता है कि उन्होंने इसे मुश्किल नहीं बल्कि इन्जॉय के रूप में लिया। कभी मंदिर तो कभी गुरूद्वारे में लोगों के बीच और लोगों से रुबरु हुई। ज्यादातर गांव में उनका जोरदार स्वागत हुआ। अपनी जीत को लेकर वे पूरी तरह आश्वस्त थी
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अब बताते हैं इकरा हसन का बैकग्राउंड
इकरा हसन के दादा अख्त हसन 1984 में बसपा सुप्रीमो मायावती को हराकर सांसद बने थे। उस वक्त सुश्री मायावती अपना पहला चुनाव लड़ रही थी। इसके बाद इकरा के पिता मुनव्वर हसन ने परिवार के राजनीतिक रसूख को लेकर ऊंचाइयों तक पहुंचाया। 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर वे चुनाव लड़ें और संसद पहुँच गए। समाजवादी पार्टी के साथ साथ रालोद और बसपा में भी वो रहे और उंनका सभी पार्टियों में हमेशा कद काफी बड़ा रहा। राजनीति की उचाईयो पर रहते हुए अचानक सब कुछ तबाह हो गया। दरअसल 2008 में लखनऊ से लौटते वक्त सड़क दुर्घटना में उनका इंतकाल हो गया। उनकी गाड़ी एक ट्रक से जा टकराई मुनव्वर हसन की मौत के बाद उनकी पत्नी यानी इकरा की माँ तबस्सुम हसन बसपा के टिकट से चुनाव लड़ी और संसद पहुँच गई। इसके बाद मोदी लहर में भाजपा के हुकम सिंह तबस्सुम को हरा दिया लेकिन जब हुकुम सिंह का अचानक से निधन हुआ तो 2018 में ही उपचुनाव हुए जिसमें तबस्सुम विजयी रही।
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इकरा के परिवार का राजनीतिक सफर यहीं खत्म नहीं होता उनके बड़े भाई नाहीद हसन तीन बार विधायक रहे। 2022 में वे जेल से ही चुनाव लड़कर जीत गए। उस दौरान भी इकरा ने भाई के लिए चुनाव प्रचार किया। इकरा की मेहनत थी जो भाई को विधायक बनवा दिया। योगी सरकार ने नाहिद हसन पर गैंगस्टर के तहत के तहत कार्रवाई की। इस कार्रवाई के दौरान नाहिद पर कई तरह की कानूनी तलवार लटकी रहेंगी। यही कारण रहा कि इकरा को राजनीति में आना पड़ा और उनकी लाइफ का यही सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। क्षेत्रवासियों की समस्याओं से रूबरू इकरा हसन अब संसद जाएंगी और अपने क्षेत्रवासियों की समस्याओं को पुरज़ोर तरीके से उठाएंगी। देखना होगा कि जिस तरह से उनका परिवार राजनीति में पूरी तरह सफल रहा है, क्या वे भी अपनी लेगेसी को कायम रख पाएगी?