एलटीटीई का गठन और विनाश, प्रभाकरण की जीवन यात्रा

Velupillai Prabhakaran’s Life Journey: श्रीलंका के इतिहास में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) एक ऐसा नाम है, जिसने दशकों तक हिंसा, संघर्ष और तमिल समुदाय के अधिकारों की लड़ाई को परिभाषित किया।इस खबर में एलटीटीई के गठन, इसके उद्देश्यों, और इसके अंत की कहानी को विस्तार से समझाया गया है।सूत्रो के हवाले से मिली खबर के आधार पर हम इस संगठन और इसके नेता वेलुपिल्लई प्रभाकरण की यात्रा को संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं।

एलटीटीई का गठन
1970 के दशक में श्रीलंका में तमिल समुदाय के साथ भेदभाव और उत्पीड़न की घटनाओं ने तमिल युवाओं में असंतोष को जन्म दिया। सरकारी नीतियों, जैसे सिंहली भाषा को प्राथमिकता देना और तमिलों के लिए शिक्षा व नौकरी में अवसरों की कमी, ने इस असंतोष को और बढ़ाया। इसी पृष्ठभूमि में वेलुपिल्लई प्रभाकरण ने 1976 में एलटीटीई की स्थापना की। संगठन का मुख्य उद्देश्य था तमिलों के लिए एक स्वतंत्र राज्य, तमिल ईलम, की स्थापना। प्रभाकरण, जो उस समय एक युवा और उत्साही नेता थे, ने सशस्त्र संघर्ष को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का रास्ता चुना।

एलटीटीई ने शुरुआत में छोटे-मोटे हमलों से अपनी गतिविधियां शुरू कीं, लेकिन जल्द ही यह संगठन एक शक्तिशाली गुरिल्ला सेना में बदल गया। प्रभाकरण के नेतृत्व में एलटीटीई ने अपनी रणनीति, अनुशासन और समर्पित लड़ाकों के दम पर श्रीलंकाई सेना को कड़ी चुनौती दी। संगठन ने न केवल सैन्य हमले किए, बल्कि आत्मघाती बम विस्फोटों और राजनीतिक हत्याओं को भी अंजाम दिया, जिसमें भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या (1991) एक प्रमुख उदाहरण है।

एलटीटीई का पतन
1980 और 1990 के दशक में एलटीटीई ने श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी हिस्सों में काफी हद तक नियंत्रण स्थापित कर लिया था। हालांकि, 2000 के दशक में श्रीलंकाई सेना ने अंतरराष्ट्रीय समर्थन और बेहतर सैन्य रणनीति के साथ एलटीटीई के खिलाफ आक्रामक अभियान शुरू किया। 2009 तक, श्रीलंकाई सेना ने एलटीटीई के कब्जे वाले क्षेत्रों को धीरे-धीरे वापस ले लिया।
मई 2009 में, श्रीलंकाई सेना ने मुल्लईतिवु के पास अंतिम युद्ध में एलटीटीई को पूरी तरह कुचल दिया। इस युद्ध में वेलुपिल्लई प्रभाकरण की मृत्यु हो गई, जिसके साथ ही एलटीटीई का संगठित प्रतिरोध समाप्त हो गया। इस संघर्ष में हजारों लोग मारे गए और लाखों विस्थापित हुए, जिसने श्रीलंका के सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने को गहरा प्रभावित किया।

प्रभाकरण की विरासत
वेलुपिल्लई प्रभाकरण को तमिल समुदाय का एक नायक और एक क्रूर आतंकवादी, दोनों रूपों में देखा जाता है। उनके समर्थक उन्हें तमिलों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले योद्धा के रूप में याद करते हैं, जबकि उनके आलोचक उनकी हिंसक रणनीतियों की निंदा करते हैं। इस बात पर जोर दिया गया है कि प्रभाकरण का सपना तमिल ईलम का निर्माण तो नहीं कर सका, लेकिन उनकी लड़ाई ने तमिल समुदाय की समस्याओं को वैश्विक मंच पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

निष्कर्ष
एलटीटीई और प्रभाकरण की कहानी श्रीलंका के इतिहास का एक जटिल और दुखद अध्याय है। यह न केवल एक सशस्त्र संगठन की कहानी है, बल्कि उन सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों की भी कहानी है, जिन्होंने इसे जन्म दिया। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि हिंसा और संघर्ष से समस्याओं का समाधान कितना जटिल और महंगा हो सकता है।

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