ASG के मुख्य तर्क:
• आजकल डॉक्टर, इंजीनियर जैसे पढ़े-लिखे लोग अपनी पेशेवरी छोड़कर “राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों” में लग रहे हैं।
• “बौद्धिक आतंकवादी” (intellectual terrorists) ज़मीनी आतंकवादियों से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक हैं क्योंकि वे सरकारी सब्सिडी और सुविधाओं का फ़ायदा उठाकर आतंकी गतिविधियाँ करते हैं।
• उमर ख़ालिद और शरजील इमाम ने जेएनयू और जामिया के छात्रों को भड़काया, व्हाट्सऐप ग्रुप बनाकर संदेश भेजे।
• शरजील इमाम के भाषणों के वीडियो कोर्ट में चलाए गए, जिसमें उन्होंने असम को भारत से अलग करने, दिल्ली को आवश्यक वस्तुओं से महरूम करने (चोक करने) की बात कही थी।
• दंगे जानबूझकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे (फरवरी 2020) के साथ टाइम किए गए थे ताकि देश की अंतरराष्ट्रीय छवि ख़राब हो।
• CAA-NRC विरोध सिर्फ़ बहाना था, असली मक़सद “रिजीम चेंज” (सत्ता परिवर्तन), आर्थिक अराजकता और पूरे देश में अफरा-तफरी फैलाना था।
• 53 लोगों की मौत, 700 से ज़्यादा घायल, एक पुलिसकर्मी की हत्या हुई। बांग्लादेश जैसी स्थिति बनाने की कोशिश थी (2024 में बांग्लादेश में हिंसक आंदोलन के बाद शेख़ हसीना की सरकार गिरी थी)।
दिल्ली पुलिस का ज़मानत विरोध
ASG राजू ने कहा कि सभी आरोपी ज़मानत के लिए केस की मेरिट पर नहीं, बल्कि सिर्फ़ “मुक़दमे में देरी” के आधार पर दलील दे रहे हैं। उन्होंने तर्क दिया कि:
• देरी का फ़ायदा आरोपी खुद उठाना चाहते हैं, जबकि देरी का बड़ा कारण खुद आरोपी लोग हैं।
• UAPA जैसे गंभीर मामलों में देरी होने पर भी ज़मानत देना ज़रूरी नहीं, कोर्ट तेज़ सुनवाई का आदेश दे सकता है।
बचाव पक्ष की दलील
आरोपियों की तरफ़ से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ दवे ने कहा कि शरजील इमाम के भाषणों के सिर्फ़ चुनिंदा छोटे-छोटे हिस्से चलाकर कोर्ट में पूर्वाग्रह पैदा करने की कोशिश की जा रही है।
मौजूदा स्थिति
• उमर ख़ालिद पिछले 5 साल से जेल में हैं।
• सभी आरोपी UAPA और IPC की विभिन्न धाराओं के तहत “दंगों के मास्टरमाइंड” होने के आरोप में जेल में हैं।
• बेंच ने दिल्ली पुलिस को कल (21 नवंबर) तक अपनी दलीलें पूरी करने को कहा है। उसके बाद बचाव पक्ष को जवाब देने का मौक़ा मिलेगा।
सुनवाई कल फिर जारी रहेगी।

