ब्रह्म मुहूर्त के ठीक बाद सुबह करीब 4 बजे शुरू हुई पूजा-अर्चना में वैदिक मंत्रोच्चारण और पारंपरिक रीति-रिवाजों के बीच मंदिर के कपाट शुल्क हो गए। मंदिर के मुख्य पुजारी वेद प्रकाश महादेव भट्ट के नेतृत्व में पूर्ण विधि-विधान संपन्न कराया गया।
जैसे ही कपाट बंद हुए, वातावरण भगवान रुद्रनाथ के जयकारों से गूंज उठा। इसके तुरंत बाद भगवान की उत्सव विग्रह डोली को श्रद्धालुओं के भव्य स्वागत के बीच शीतकालीन गद्दीस्थल गोपीनाथ मंदिर, गोपेश्वर के लिए रवाना किया गया। यह डोली पितृधार, पनार, ल्वींठी बुग्याल होते हुए गोपेश्वर पहुंचेगी, जहां अगले छह महीनों तक भगवान रुद्रनाथ की पूजा-अर्चना होगी।
रुद्रनाथ धाम तक पहुंचना किसी साधारण यात्रा से कम नहीं है। सागर गांव से शुरू होने वाली करीब 19-20 किलोमीटर लंबी कठिन पैदल चढ़ाई के बाद ही श्रद्धालु इस अलौकिक स्थल पर पहुंच पाते हैं। घने जंगलों, बुग्यालों और ऊंचे चोटियों के बीच बसा यह मंदिर प्रकृति की गोद में विराजमान है, जहां नंदा देवी, त्रिशूल और नंदा घुंटी चोटियों का मनमोहक दृश्य दिखता है। इस वर्ष मई में ग्रीष्मकाल के लिए खोले गए कपाट ने लाखों भक्तों को आकर्षित किया था। अब शीतकाल में गोपीनाथ मंदिर में दर्शन का अवसर मिलेगा, जो गोपेश्वर में स्थित है और आसानी से पहुंचा जा सकता है।
श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अनुसार, पंच केदार यात्रा का यह हिस्सा हर साल मौसम की मार झेलता है, लेकिन परंपरा अटल रहती है। अगले वर्ष 18 मई को ब्रह्म मुहूर्त में रुद्रनाथ मंदिर के कपाट पुनः खोले जाएंगे। इस बीच अन्य केदार धामों के कपाट भी क्रमशः बंद हो रहे हैं—तुंगनाथ के 4 नवंबर, मध्यमहेश्वर के 20 नवंबर और केदारनाथ के 23 अक्टूबर को।
श्रद्धालुओं का कहना है कि रुद्रनाथ के दर्शन जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य है। एक भक्त ने बताया, “यहां की शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा अद्भुत है। गोपीनाथ मंदिर में भी हम भगवान के चरणों में शीश नवाएंगे।” जिला प्रशासन ने यात्रियों को सतर्क रहने और मौसम का ध्यान रखने की सलाह दी है। इस घटना ने एक बार फिर उत्तराखंड की धार्मिक परंपराओं की जीवंतता को रेखांकित किया है।

