लाल जैन मंदिर के शीशे टूट गए, जबकि धमाके की गूंज 3 किलोमीटर दूर तक सुनाई दी। दिल्ली पुलिस ने इसे आतंकी हमले के रूप में दर्ज करते हुए यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां निवारण अधिनियम) के तहत केस दर्ज किया है। एनआईए, एनएसजी और फॉरेंसिक टीमें जांच में जुटी हैं, जबकि पूरे दिल्ली-एनसीआर में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है।
घायलों को लोक नायक जयप्रकाश (एलएनजेपी) अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां कुछ की हालत गंभीर बताई जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घटना पर शोक जताते हुए कहा, “यह दुखद घटना पूरे देश को झकझोर रही है। पीड़ित परिवारों के प्रति मेरी गहरी संवेदना।” गृह मंत्री अमित शाह ने मौके पर पहुंचकर अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की और कहा, “सभी पहलुओं की गहन जांच की जा रही है। दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।” कार हरियाणा के नंबर की थी, जिसका मालिक गुरुग्राम से हिरासत में लिया गया है। सीसीटीवी फुटेज में दो संदिग्धों की हलचल कैद हुई है, जिनकी तलाश जारी है।
यह धमाका लाल किले के आसपास का पहला नहीं है। यह ऐतिहासिक स्थल, जो मुगल सम्राट शाहजहां द्वारा 1648 में बनवाया गया था, कई दशकों से हिंसा का शिकार रहा है। लाल किला न केवल भारत की स्वतंत्रता का प्रतीक है—जहां से हर साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हैं—बल्कि यह पर्यटकों का प्रमुख केंद्र भी है। लेकिन इसके आसपास के भीड़भाड़ वाले इलाके चांदनी चौक, जामा मस्जिद और सदर बाजार ने अतीत में कई खौफनाक घटनाओं का गवाह बनाया है। आइए, नजर डालें उन प्रमुख धमाकों पर जो लाल किले और उसके आसपास हुए:
• 30 नवंबर 1997: लाल किला क्षेत्र में दोहरी विस्फोट की घटना। तीन लोगों की मौत हुई और करीब 70 घायल हो गए। यह 1990 के दशक की आतंकी साजिशों का हिस्सा था, जब पंजाब के अलगाववादियों और इस्लामी चरमपंथियों ने दिल्ली को निशाना बनाया था।
• 18 जून 2000: लाल किले के निकट दो शक्तिशाली बम विस्फोट। एक आठ साल की बच्ची समेत दो लोगों की जान गई, जबकि दर्जन भर लोग घायल हुए। यह हमला सार्वजनिक स्थलों को लक्षित करने वाली श्रृंखला का हिस्सा था।
• 22 दिसंबर 2000: लाल किला परिसर के अंदर आतंकवादियों ने अंधाधुंध गोलीबारी की। दो पर्यटक मारे गए, जबकि कई घायल हुए। लश्कर-ए-तैयबा ने इसकी जिम्मेदारी ली थी।
ये घटनाएं दिल्ली के व्यापक आतंकी इतिहास का हिस्सा हैं। 1980-90 के दशक में राजधानी कई धमाकों की शिकार रही, जैसे 1996 का लाजपत नगर ब्लास्ट (13 मरे), 2005 का दिवाली ब्लास्ट (66 मरे) और 2008 का सीरियल ब्लास्ट (30 मरे)। 2011 का दिल्ली हाईकोर्ट धमाका (15 मरे) आखिरी बड़ा हमला था। इन हमलों ने दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए और खुफिया तंत्र को मजबूत करने का सबक दिया।
वर्तमान धमाके के बाद सोशल मीडिया पर अफवाहों का दौर चल पड़ा है। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें धुआं और मलबा साफ दिख रहा है। एक यूजर ने लिखा, “लाल किले के पास धमाके ने इतिहास को फिर से काला रंग दे दिया।” पुलिस ने अफवाहें फैलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी है। अमेरिकी दूतावास ने अपने नागरिकों को पर्यटक स्थलों से दूर रहने की सलाह जारी की है।
यह घटना दिल्ली की असुरक्षा को उजागर करती है, जहां रोजाना 90,000 से अधिक यात्री लाल किला मेट्रो स्टेशन से गुजरते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भीड़भाड़ वाले इलाकों में सीसीटीवी और स्निफर डॉग्स की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। फिलहाल, जांच जारी है और दिल्ली की सड़कें सुरक्षा बलों के साये में हैं। उम्मीद है कि जल्द ही दोषियों का पर्दाफाश होगा और शहर फिर से शांति की सांस ले सकेगा।

