पृष्ठभूमि और पुराना फैसला
2010 में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार द्वारा प्रस्तावित 100 मीटर ऊंचाई वाले मानक को अस्वीकार कर दिया था और फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) को सैटेलाइट इमेजरी के आधार पर सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया था। FSI ने 3 डिग्री ढलान और अन्य मानकों के आधार पर अरावली क्षेत्र को परिभाषित किया, जिससे राजस्थान में लगभग 40,000 वर्ग किमी क्षेत्र को संरक्षित माना गया। कोर्ट की सेंट्रल एम्पावर्ड कमिटी (CEC) ने भी इसकी सिफारिश की थी। हालांकि, 2025 के फैसले में कोर्ट ने मंत्रालय की नई सिफारिश को स्वीकार कर लिया, जिसे चारों अरावली राज्य (राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली) ने सहमति दी थी। CEC और अमाइकस क्यूरी ने इस पर असहमति जताई थी, लेकिन कोर्ट ने इसे नजरअंदाज कर दिया।
विवाद के कारण
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि 100 मीटर मानक से अरावली की बड़ी हिस्सेदारी (कुछ अनुमानों के अनुसार 90% से अधिक) संरक्षण से बाहर हो जाएगी, जिससे खनन, रियल एस्टेट और अन्य विकास गतिविधियों का रास्ता खुल सकता है। अरावली भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है और दिल्ली-एनसीआर की जल सुरक्षा, जैव विविधता तथा धूल भरी आंधियों से रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कई रिपोर्टों में चेतावनी दी गई है कि यह फैसला पारिस्थितिकी के लिए घातक साबित हो सकता है। इस मुद्दे पर याचिकाएं भी दायर की गई हैं, और सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका को स्वीकार कर लिया है।
केंद्र सरकार का ताजा कदम
विवाद बढ़ने और आलोचनाओं के बीच केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बुधवार को राज्यों को निर्देश जारी किया कि अरावली क्षेत्र में कोई नया खनन पट्टा जारी नहीं किया जाए। सरकार का कहना है कि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में है और संरक्षित क्षेत्र को और विस्तार दिया जाएगा। प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) की हालिया रिलीज में दावा किया गया है कि नया मानक “पारदर्शी, निष्पक्ष और वैज्ञानिक” है, जो पारिस्थितिकी संरक्षण और सतत विकास सुनिश्चित करेगा। सरकार ने जोर दिया कि इससे अवैध खनन पर अंकुश लगेगा और अरावली की बड़ी हिस्सेदारी सुरक्षित रहेगी।
दोनों पक्षों की प्रतिक्रिया
पर्यावरण कार्यकर्ता इस कदम को अपर्याप्त बता रहे हैं, उनका कहना है कि बिना पुरानी परिभाषा बहाल किए खनन प्रतिबंध अस्थायी समाधान है। वहीं, सरकार और कुछ विशेषज्ञ इसे संतुलित दृष्टिकोण बता रहे हैं। मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, और आने वाले दिनों में आगे सुनवाई हो सकती है।
यह मुद्दा न केवल खनन बल्कि जल संरक्षण, वन्यजीव और शहरी पारिस्थितिकी से जुड़ा है, इसलिए इसका असर चारों राज्यों पर पड़ेगा।

