अमेरिका-चीन के बीच दुर्लभ पृथ्वी खनिजों को लेकर तनाव बढ़ा: पढ़िए पूरी कहानी

US-China News: अमेरिका और चीन के बीच दुर्लभ पृथ्वी खनिजों (Rare Earth Minerals) को लेकर तनाव चरम पर पहुंच गया है। यह विवाद तब और गहरा गया जब चीन ने इन खनिजों पर नए प्रतिबंधों की घोषणा की, जिसे अमेरिका ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर चीन के नियंत्रण को मजबूत करने की कोशिश के रूप में देखा। यह कदम दक्षिण कोरिया में होने वाली अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रस्तावित मुलाकात से ठीक पहले उठाया गया है।

चीन के नए नियम और अमेरिका की प्रतिक्रिया
चीन ने सभी देशों के लिए लागू होने वाले नए नियमों की घोषणा की, जो 8 नवंबर और फिर 1 दिसंबर से चरणबद्ध तरीके से लागू होंगे। इन नियमों के तहत, चीन से उत्पन्न होने वाले कुछ दुर्लभ पृथ्वी खनिजों का उपयोग करने वाले उत्पादों के निर्यात के लिए चीनी सरकार की मंजूरी आवश्यक होगी। चूंकि चीन इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रणी है, इसलिए यह नियम वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है।

अमेरिकी राजदूत जेमिसन ग्रीर ने इसे “वैश्विक अर्थव्यवस्था पर आर्थिक दबाव” करार दिया। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर अमेरिका में बनी एक कार मेक्सिको में बेची जाती है और उसमें चीन से आए चिप्स का उपयोग हुआ है, तो बिक्री से पहले चीन से अनुमति लेनी होगी।

जवाब में, राष्ट्रपति ट्रम्प ने 1 नवंबर से चीन के सभी उत्पादों पर 100% टैरिफ लगाने की धमकी दी है। हालांकि, अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेन्ट ने आशावाद जताते हुए कहा कि ट्रम्प और शी के बीच मजबूत रिश्तों के कारण इस तनाव को कम किया जा सकता है।

चीन का रुख
चीन ने रविवार को बयान जारी कर कहा कि वह व्यापार युद्ध नहीं चाहता, लेकिन अगर अमेरिका अपनी नीति पर अड़ा रहा तो वह “उचित जवाबी कार्रवाई” करने से नहीं हिचकेगा। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ये प्रतिबंध अमेरिका द्वारा चिप उत्पादन पर लगाए गए निर्यात नियंत्रणों के जवाब में हैं। चीन शायद इन प्रतिबंधों के जरिए अमेरिका पर अपनी निर्यात नीतियों को ढीला करने का दबाव डाल रहा है।

दुर्लभ पृथ्वी खनिजों का महत्व
दुर्लभ पृथ्वी खनिज कंप्यूटर चिप्स, स्मार्टफोन, एआई सिस्टम, ड्रोन, रोबोट, कारें और रक्षा तकनीकों जैसे F-35 लड़ाकू विमान, टॉमहॉक मिसाइल और रडार सिस्टम के लिए आवश्यक हैं। चीन की इस क्षेत्र में 80% से अधिक की हिस्सेदारी इसे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बेहद प्रभावशाली बनाती है। इन प्रतिबंधों से न केवल अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।

आगे क्या?
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चीन इन प्रतिबंधों के जरिए दक्षिण कोरिया में होने वाली वार्ता में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है। दूसरी ओर, अमेरिका इन प्रतिबंधों को अपनी औद्योगिक नीतियों के लिए खतरे के रूप में देख रहा है। बेसेन्ट ने कहा कि ट्रम्प अभी भी शी के साथ मुलाकात की योजना पर कायम हैं।

यह विवाद केवल टैरिफ या खनिजों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक तकनीकी और आर्थिक प्रभुत्व की लड़ाई का हिस्सा है। आने वाले हफ्तों में दोनों देशों के बीच बातचीत इस तनाव को कम करने में कितनी सफल होगी, यह देखना बाकी है।

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