तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबातुल्लाह अखुंदजादा के फरमान पर 16 सितंबर से शुरू हुई यह कार्रवाई अब पूरे देश में फैल चुकी है। पहले बाल्ख, बदख्शां, तखार, कंधार, हेलमंद, नंगरहर और उरुजगान जैसे प्रांतों में फाइबर-ऑप्टिक कनेक्शन काटे गए, और 29 सितंबर की शाम को पूर्ण ब्लैकआउट लागू हो गया। नेटब्लॉक्स जैसे मॉनिटरिंग ग्रुप के अनुसार, इंटरनेट ट्रैफिक सामान्य स्तर के महज 1-14 प्रतिशत रह गया है, जबकि मोबाइल फोन सेवाएं भी लगभग ठप हैं। तालिबान का दावा है कि यह कदम ‘बुराइयों’ (विशेषकर ऑनलाइन अश्लील सामग्री) को रोकने के लिए उठाया गया है, लेकिन विशेषज्ञ इसे असहमति को दबाने और नियंत्रण मजबूत करने की रणनीति मान रहे हैं।
यूरोप में बसे अफगान प्रवासियों के लिए यह ब्लैकआउट सबसे दर्दनाक साबित हो रहा है। जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों में शरणार्थी शिविरों और शहरों में अफगान समुदायों में घबराहट का माहौल है। एक प्रवासी हादी ने सीएनएन को बताया, “यह सब कुछ बर्बाद कर रहा है। कम से कम पहले कॉल तो कर लेते थे। अब अपनों की खबर न ले सकें, तो लगता है जैसे आखिरी उम्मीद भी छिन गई।” लंदन में रहने वाली एक अफगान महिला ने सोशल मीडिया पर लिखा, “मेरी मां काबुल में हैं। रोज की बातचीत बंद हो गई। क्या वे ठीक हैं? क्या खा रही हैं? यह चुप्पी असहनीय है।” इसी तरह, ऑस्ट्रेलिया से शादी खान सैफ ने गार्जियन में अपनी व्यथा बयां की: “डिजिटल अंधेरे में काबुल के अपनों को देखना हताशा भरा है। इंटरनेट हमारी आवाज था, अब वह भी छिन गया।”
लोवी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रवासी अफगान रेमिटेंस (विदेशों से भेजे जाने वाले पैसे) के जरिए घरवालों का सहारा बनते हैं, लेकिन ब्लैकआउट से मनीग्राम और वेस्टर्न यूनियन जैसे सिस्टम ठप हो गए हैं। यूरोपीय संघ के अफगान डायस्पोरा संगठनों ने आपात बैठक बुलाई है, जहां से तालिबान पर दबाव बनाने की योजना बन रही है। ह्यूमन राइट्स वॉच की फेरेश्ता अब्बासी ने कहा, “यह न केवल आजीविका छीन रहा है, बल्कि महिलाओं-लड़कियों के शिक्षा, स्वास्थ्य और जानकारी के अधिकार को भी कुचल रहा है। तालिबान को नैतिकता के बहाने से बाज आना चाहिए।”
संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (यूएनएएमए) ने मंगलवार को तालिबान से अपील की, “यह ब्लैकआउट अफगान लोगों को गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है। सेवाएं तुरंत बहाल करें।” लेकिन तालिबान की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह बंदी अनिश्चितकालीन हो सकती है, जो अफगानिस्तान को वैश्विक दुनिया से और अलग-थलग कर देगी।
यह घटना 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर संचार बंदी है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या यह कट्टरपंथी शासन की नई रणनीति का हिस्सा है? अफगान प्रवासियों की चिंता के बीच अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें काबुल पर टिकी हैं।

