सुप्रीम फैसलाः अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अल्पसंख्यक दर्जा की हकदार, तीन जज करेंगे तय
Aligarh Muslim University: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को मिला अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बरकरार रखने पर सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है कि वह हकदार हैं। इसके लिए तीन जजों की कमेटी का गठन किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की बैंच ने यह फैसला सुनाया है। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 30 का हवाला देते हुए कहा कि धार्मिक समुदाय को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उसे चलाने का अधिकार है।
कोर्ट का कहना है कि अब नई बेंच एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मानदंड तय करेगी। इस मामले पर सीजेआई समेत चार जजों ने एकमत से फैसला दिया है जबकि तीन जजों ने डिसेंट नोट दिया है। मामले पर सीजेआई और जस्टिस पारदीवाला एकमत हैं। वहीं, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा का फैसला अलग है। कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से अपने फैसले में 1967 के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जो एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इनकार करने का आधार बना था।
कैसे बनी यूनिवर्सिटी
दरअसल लोगों के मन में सवाल रहता है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कैसे बनी और किस तरह से इसकी स्थापना हुई। बता दें कि 1817 में दिल्ली के सैयद खानदान में सर सैयद अहमद खान का जन्म हुआ। 24 साल की उम्र में सैयद अहमद मैनपुरी में उप-न्यायाधीश बन गए। इस समय ही उन्हें मुस्लिम समुदाय के लिए अलग से शिक्षण संस्थान की जरूरत महसूस हुई।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी शुरू करने से पहले सर सैयद अहमद खान ने मई 1872 में मुहम्मदन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज फंड कमेटी बनाया। इस कमेटी ने 1877 में मुहम्मदन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की शुरुआत की।
ब्रिटिश सरकार से ऐसे ली मदद
इस बीच अलीगढ़ में एक मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग तेज हो गई। जिसके बाद मुस्लिम यूनिवर्सिटी एसोसिएशन की स्थापना हुई। 1920 में ब्रिटिश सरकार की मदद से कमेटी ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट बनाकर इस यूनिवर्सिटी की स्थापना की। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाए जाने के बाद पहले से बनी सभी कमेटी को भंग कर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के नाम से एक नई कमेटी बनी। इसी कमेटी को सभी अधिकार और संपत्ति सौंपी गई।
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