Supreme Court orders DIG: मुस्लिमों पर आपत्तिजनक टिप्पणी वाले वायरल ऑडियो की जांच के लिए तीन हफ्तों में दें वॉइस सैंपल

Supreme Court orders DIG: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के बस्ती रेंज के डीआईजी संजीव त्यागी को एक पुराने वायरल ऑडियो क्लिप की फोरेंसिक जांच के लिए तीन हफ्तों के अंदर अपनी आवाज का सैंपल देने का सख्त निर्देश दिया है। यह ऑडियो 2020 का है, जिसमें कथित रूप से मुस्लिम समुदाय के खिलाफ घृणास्पद और आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई थीं। कोर्ट ने साथ ही देहरादून के बुजुर्ग इस्लामुद्दीन अंसारी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया, जिन्हें उसी ऑडियो को भेजने के लिए ‘घृणा फैलाने’ का आरोपी ठहराया गया था।

मामला कैसे शुरू हुआ: वायरल ऑडियो और पुलिस की कार्रवाई
यह विवाद मार्च 2020 से जुड़ा है, जब संजीव त्यागी बिजनौर जिले के पुलिस अधीक्षक (एसपी) थे। उस समय सोशल मीडिया पर एक ऑडियो क्लिप वायरल हुई, जिसमें एक अधिकारी की आवाज में मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाते हुए कथित रूप से ‘इस्लामोफोबिक’ बयान दिए गए थे। ऑडियो में सीएए-एनआरसी विरोध प्रदर्शनों के दौरान बिजनौर में हुई हिंसा के संदर्भ में आपत्तिजनक निर्देश दिए जाने का दावा किया गया।

देहरादून निवासी 70 वर्षीय इस्लामुद्दीन अंसारी, जो एक रिटायर्ड व्यक्ति हैं, ने इस ऑडियो को सत्यापित करने के लिए तत्कालीन एसपी संजीव त्यागी को ही व्हाट्सएप पर फॉरवर्ड किया। उनका उद्देश्य केवल यह जानना था कि क्या यह आवाज वाकई एसपी की है। लेकिन पुलिस ने इसे ‘सार्वजनिक शांति भंग करने’ और ‘समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाने’ का प्रयास मान लिया। इसके तहत भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153ए और 505(2) के उल्लंघन में अंसारी के खिलाफ बिजनौर थाने में एफआईआर दर्ज कर ली गई। अंसारी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन राहत न मिलने पर वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: पुलिस शक्ति का ‘दुरुपयोग’
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस प्रवीण डी. जोघकर शामिल थे, ने सोमवार को इस मामले पर सुनवाई की। कोर्ट ने अंसारी की याचिका पर सहानुभूति जताते हुए कहा कि पुलिस ने अपनी शक्ति का ‘दुरुपयोग’ किया है। जस्टिस त्रिवेदी ने टिप्पणी की, “यह एक सामान्य नागरिक की जिज्ञासा थी, जिसे अपराध बना दिया गया।” कोर्ट ने अंसारी के खिलाफ सभी आपराधिक कार्यवाहियां रद्द कर दीं और उन्हें किसी भी आगे की कार्रवाई से मुक्ति प्रदान की।

कोर्ट ने साथ ही त्यागी पर कार्रवाई का आदेश दिया। बेंच ने निर्देश दिया कि डीआईजी त्यागी को तीन हफ्तों के भीतर अपनी आवाज का सैंपल उपलब्ध कराना होगा। यह सैंपल तेलंगाना के हैदराबाद स्थित स्टेट फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एसएफएसएल) में भेजा जाएगा, जहां वायरल ऑडियो से इसकी तुलना की जाएगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि सैंपल मैच करता है, तो आगे की कानूनी कार्रवाई तय होगी।

प्रतिक्रियाएं: न्याय की जीत या पुलिस पर सवाल
इस फैसले पर सोशल मीडिया और न्यूज चैनलों पर बहस छिड़ गई है। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर कई यूजर्स ने इसे ‘न्याय की जीत’ बताया, जबकि कुछ ने पुलिस की संवेदनशीलता पर सवाल उठाए। एक पोस्ट में लिखा गया, “एक बुजुर्ग ने सवाल पूछा, तो उन पर ही केस। यह लोकतंत्र की बुनियाद हिला देता है।” भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के एक नेता ने भी टिप्पणी की कि अंसारी को अब ‘निर्दोष’ महसूस हो रहा है।

वहीं, विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला पुलिस अधिकारियों के सोशल मीडिया व्यवहार और संवेदनशील मुद्दों पर बयानों की जांच को मजबूत करेगा। लाइव लॉ के अनुसार, कोर्ट ने यह भी कहा कि ऑडियो की प्रामाणिकता साबित होने पर ‘सांप्रदायिक स्लर’ के आरोपों की गंभीरता बढ़ सकती है।

यह मामला उत्तर प्रदेश में पुलिस की जवाबदेही पर एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, खासकर जब धार्मिक संवेदनशीलता वाले मुद्दों पर कार्रवाई की बात आती है। फोरेंसिक रिपोर्ट के आने तक सभी की नजरें हैदराबाद लैब पर टिकी हैं।

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