Delhi riots conspiracy news: सुप्रीम कोर्ट ने 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़े बड़े साजिश मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम, मीरान हैदर, गुल्फिशा फातिमा और शिफा उर रहमान की जमानत याचिकाओं पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने इनकी नियमित और अंतरिम जमानत की मांग पर पुलिस से जवाब मांगा है, जबकि अगली सुनवाई 7 अक्टूबर को निर्धारित की गई है।
इस मामले की सुनवाई जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एन. वी. अंजारिया की बेंच ने की। आरोपियों की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने पेशी के दौरान अंतरिम जमानत पर जल्द सुनवाई की मांग की थी। उन्होंने तर्क दिया कि दिवाली त्योहार से पहले इन आरोपियों को रिहा किया जाना चाहिए, क्योंकि वे लंबे समय से जेल में बंद हैं।
ये सभी आरोपी फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्व दिल्ली में हुए हिंसक दंगों की कथित ‘बड़ी साजिश’ से जुड़े हैं। दिल्ली पुलिस ने इन पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए हैं, जिसमें कहा गया है कि इन्होंने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनों के नाम पर हिंसा भड़काने की साजिश रची थी। इन दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और सैकड़ों घायल हुए थे।
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में इनकी जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिसके खिलाफ ये सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, “प्रदर्शन के नाम पर साजिश रचकर हिंसा फैलाना स्वीकार्य नहीं है।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(अ) के तहत शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार असीमित नहीं है और इस पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। हाईकोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि यह अधिकार बिना किसी सीमा के दिया जाए, तो इसका देश की कानून-व्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है।
उमर खालिद, जो जेएनयू के पूर्व छात्र हैं, सितंबर 2020 से जेल में हैं। इसी तरह शरजील इमाम, मीरान हैदर (जेएनयू छात्र), गुल्फिशा फातिमा और शिफा उर रहमान पर भी यूएपीए की कठोर धाराओं के तहत मुकदमा चल रहा है। ये सभी चार्जशीट में नामित हैं, लेकिन अभी तक मुकदमे की शुरुआत नहीं हुई है। वकीलों का कहना है कि लंबी हिरासत के बावजूद कोई ट्रायल न होने से इनके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान पुलिस की ओर से कोई तत्काल जवाब नहीं दिया गया, लेकिन नोटिस जारी होने से मामले में नया मोड़ आ गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला यूएपीए के तहत जमानत प्रावधानों की व्याख्या को प्रभावित कर सकता है, जो अक्सर सख्ती से लागू किया जाता है।
अगली सुनवाई तक सभी पक्ष अपनी दलीलें तैयार करेंगे। इस फैसले का असर न केवल इन आरोपियों पर पड़ेगा, बल्कि इसी तरह के अन्य मामलों पर भी हो सकता है।

