मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार (CJI) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने गुरुवार को तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों से जुड़ी जनहित याचिकाओं (PIL) पर सुनवाई के दौरान ये निर्देश दिए। अदालत ने कहा कि जहां 10,000 कर्मचारी तैनात हैं, वहां जरूरत पड़ने पर 20,000 से 30,000 तक की संख्या बढ़ाई जा सकती है। “क्या 10 फॉर्म भरना इतना बोझ है?” CJI सूर्यकांत ने वकील कपिल सिब्बल से सवाल किया, जो याचिकाकर्ताओं का पक्ष रख रहे थे। सिब्बल ने तत्काल जवाब दिया कि समस्या फॉर्म भरने की नहीं, बल्कि BLOs पर लंबे घंटे काम करने और FIR की धमकियों की है।
BLOs की परेशानियां
SIR अभियान, जो चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष संशोधन के लिए चलाया जा रहा है, में BLOs को घर-घर जाकर फॉर्म भरने और सत्यापन का जिम्मा सौंपा गया है। हालांकि, कई राज्यों में BLOs पर 12-14 घंटे की ड्यूटी, अतिरिक्त जिम्मेदारियां और सख्ती ने तनाव बढ़ा दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सात राज्यों में अब तक 29 BLOs की मौत हो चुकी है, जिनमें कुछ मामलों में आत्महत्या भी शामिल है। तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, जहां BLOs ने छूट की मांग की थी।
अदालत ने इन मौतों पर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि सरकारी कर्मचारियों को SIR ड्यूटी निभानी ही होगी, लेकिन बोझ को संतुलित रखना राज्यों की जिम्मेदारी है। बेंच ने राज्यों को निम्नलिखित निर्देश दिए:
अतिरिक्त स्टाफ की तैनाती
BLOs के कार्य घंटे कम करने के लिए राज्य सरकारें और राज्य चुनाव आयोग अतिरिक्त कर्मचारियों को लगाएं। कार्यभार को समान रूप से बांटें।
व्यक्तिगत छूट पर विचार
अगर कोई BLO बीमारी या अन्य वैध व्यक्तिगत कारणों से SIR ड्यूटी न निभा सके, तो केस-टू-केस आधार पर उनकी अर्जी पर विचार करें। ऐसी स्थिति में वैकल्पिक कर्मचारी तैनात करें।
कोर्ट का रुख
छूट न मिलने पर BLOs सीधे सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। अदालत ने राज्यों को BLOs के खिलाफ FIR दर्ज करने से भी रोका।
काम के घंटे सीमित
SIR ड्यूटी को 8 घंटे तक ही सीमित रखने पर जोर दिया गया।
याचिकाकर्ताओं की मांगें और कोर्ट की प्रतिक्रिया
याचिकाएं तमिलनाडु वकील संगठन (TVK) और अन्य ने दायर की थीं, जिनमें BLOs की कठिनाइयों का जिक्र था। वकील कपिल सिब्बल ने कहा, “BLOs सरकारी नौकर हैं, लेकिन उनकी जान जोखिम में नहीं डाली जा सकती।” कोर्ट ने सहमति जताते हुए कहा कि राज्य सरकारें “छूट देने के लिए बाध्य” हैं, अगर BLO पर वास्तविक कठिनाई साबित हो।
चुनाव आयोग (ECI) ने भी कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर बताया कि SIR प्रक्रिया लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी है, लेकिन BLOs की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी। हालांकि, अदालत ने ECI को भी निर्देश दिया कि वह राज्यों के साथ समन्वय बढ़ाए।
राज्यों की प्रतिक्रिया का इंतजार
निर्देशों के बाद तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल समेत प्रभावित राज्यों से जल्द रिपोर्ट मांगी गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला न केवल BLOs को राहत देगा, बल्कि SIR प्रक्रिया को अधिक कुशल बनाएगा। एक BLO संगठन के प्रतिनिधि ने कहा, “अदालत का यह कदम हमारे लिए बड़ी जीत है। अब हमें डर के साए में काम नहीं करना पड़ेगा।”
यह मामला 2 दिसंबर को शुरू हुई सुनवाई का हिस्सा है, जो BLOs की स्थिति पर केंद्रित है। अगली सुनवाई पर अदालत राज्यों की प्रगति की समीक्षा करेगी। SIR प्रक्रिया 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची को अपडेट करने का महत्वपूर्ण चरण है, लेकिन BLOs की सुरक्षा अब प्राथमिकता बन गई है।

