Supreme Court: नई दिल्ली। दिल्ली की मेयर शैली ओबेरॉय ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। शैली ओबेरॉय ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख कर पैनल के गठन तक स्थायी समिति के कार्यों को दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को सुपुर्द करने का निर्देश देने की मांग की है। यह घटनाक्रम ऐसे वक्त में सामने आया है जब एमसीडी के विशेष सत्र में मेयर शैली ओबेरॉय ने स्थायी समिति की शक्तियों को सदन को सुपुर्द करने का प्रस्ताव रखा था। वहीं विपक्षी भाजपा सदस्यों ने इस कदम का विरोध करते हुए हंगामा किया था। भाजपा ने कहा था कि एमसीडी की आप सरकार का यह कदम असंवैधानिक है।
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महापौर डॉ. शैली ओबेरॉय ने सर्वोच्च अदालत से मांग की है कि जब तक कानूनी रूप से स्थायी समिति का गठन नहीं हो जाता है, तब तक स्थायी समिति के कार्यों को निगम द्वारा ही संचालित किया जाए। उन्होंने उपराज्यपाल (एलजी) को एक पक्ष के रूप में शामिल करते हुए दलील दी है कि स्थायी समिति के गठन के अभाव में नगर निगम का काम ठप हो गया है। महापौर ने शीर्ष अदालत से अनुरोध किया है कि जनहित में आदेश व निर्देश पारित करे, जिससे कि निगम के कामकाज न रुकें।
क्यों नहीं हो पाया समिति का गठन?
याचिका में तर्क दिया गया है कि कानून का उल्लंघन करते हुए एलजी ने दिल्ली सरकार की सहायता और सलाह के बिना 3 और 4 जनवरी 2023 को जारी आदेशों के माध्यम से वर्तमान में नामांकित व्यक्तियों को नियुक्त किया। इन नियुक्तियों की वैधता के मामले में दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल कार्यालय के फैसले का इंतजार है, जिसे न्यायालय में 17 मई 2023 सुरक्षित रखा गया था। इन नियुक्तियों की वैधता का निर्धारण सीधे और महत्वपूर्ण रूप से स्थायी समिति के 18 सदस्यों में से 12 के चुनाव को प्रभावित करता है, जिससे बहुमत की प्राप्ति पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इसी कारण स्थायी समिति का गठन नहीं हो सका है।
ये काम प्रभावित हो रहे
1- स्थायी समिति बिना वर्ष 2023-24 के लिए एमसीडी के स्वास्थ्य विभाग के अधीन संस्थानों के लिए चिकित्सा गैसों की खरीद के लिए दर, अनुबंध और एजेंसी को अंतिम रूप देना, वर्ष 2023-24 के लिए वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम के लिए लार्विसाइड की खरीद का फैसला नहीं हो सकता है।
2- अपशिष्ट से वेल्थ मिशन और एमसीडी के बीच एक अपशिष्ट इकाई के निर्माण के लिए समझौता नहीं हो सकता है।
3- एमसीडी प्राथमिक स्कूल में कक्षाओं, पुस्तकालय, लड़कियों के लिए शौचालय ब्लॉक और कंप्यूटर कक्षों का निर्माण और एमसीडी पार्कों के रखरखाव के लिए एनजीओ व रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी जैसे कई काम प्रभावित हो रहे हैं।
10 महीने बाद भी समाधान नहीं
महापौर ने तर्क दिया कि सदन के गठन के 10 महीने बीत जाने के बाद वित्तीय निर्णयों के लिए जिम्मेदार स्थायी समिति नहीं बन सकी। इस देरी की वजह से कई महत्वपूर्ण कार्यों के अलावा 5 करोड़ रुपये से ऊपर की किसी भी वित्तीय योजना व कार्य को मंजूरी नहीं मिल पा रही है।
पारित किया था यह प्रस्ताव
निगम ने 15 जनवरी 2024 को एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें यह तय किया गया है कि वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए 5 करोड़ रुपये से अधिक के व्यय से जुड़े अनुबंधों के लिए अनुमोदन स्थायी समिति की जगह से सक्षम अधिकारी सीधे निगम से ले सकेंगे, लेकिन इस संबंध में न्यायालय की तरफ से आदेश व निर्देश दिए जाने जरूरी है, क्योंकि यह मामला जनहित का है, जिसके चलते दिल्ली में आम लोगों से जुड़े कार्य बड़े स्तर पर प्रभावित हो रहे हैं।
भाजपा ने निशाना साधा
दिल्ली भाजपा की महासचिव कमलजीत सहरावत ने कहा कि आम आदमी पार्टी का दिल्ली नगर निगम अधिनियम के प्रति कोई सम्मान नहीं है, जिसके अनुसार स्थायी समिति एक अनिवार्य निकाय है, जो पारदर्शिता सुनिश्चित करती है। विशेषकर, वित्तीय मामलों में एमसीडी का कामकाज स्थायी समिति द्वारा ही देखा जाता है। कमेटी की शक्तियां जनरल हाउस में देने के लिए महापौर के कोर्ट जाने से साफ है कि आम आदमी पार्टी जानती है कि वह कमेटी चुनाव में बहुमत हासिल करने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि आप के कई पार्षद उसे वोट नहीं करेंगे।
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