Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने वकील राकेश किशोर के खिलाफ कोर्ट की अवमानना की कार्रवाई शुरू करने से इनकार कर दिया है, जो मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई और जस्टिस पर जूता फेंकने के मुख्य आरोपी हैं। कोर्ट ने कहा कि इस मामले को रेकअप करने से नया विवाद खड़ा हो सकता है और बेहतर यही होगा कि यह घटना अपने आप शांत हो जाए। यह फैसला 16 अक्टूबर को सुनाया गया, जब एक याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग खारिज कर दी गई।
घटना 6 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान घटी, जब किशोर ने सीजेआई गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की। किशोर ने चिल्लाते हुए कहा कि वह “नूपुर शर्मा और सनातन धर्म” से जुड़े फैसलों की अनुमति नहीं देंगे। जूता लक्ष्य से चूक गया, लेकिन यह घटना पूरे देश में न्यायिक गरिमा पर हमले के रूप में देखी गई। वकील को तुरंत हिरासत में ले लिया गया और सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल ने निंदा की। महान्यायवादी आर. वेंकटरामणी ने अवमानना कार्यवाही के लिए सहमति दी थी, लेकिन कोर्ट ने इसे दिवाली ब्रेक के बाद सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया।
कोर्ट की बेंच ने स्पष्ट किया कि “इस तरह की कार्रवाई से एक बंद अध्याय को फिर से खोलना उचित नहीं होगा।” यह फैसला न्यायपालिका की आंतरिक शांति बनाए रखने की दिशा में देखा जा रहा है, लेकिन कई कानूनी विशेषज्ञों ने इसे नरमी के रूप में आलोचना की है। वकील ए.के. पांडे, जिन्होंने याचिका दायर की थी, ने कहा कि यह न्यायिक गरिमा के लिए खतरा है।
क्या होता अगर आरोपी मुस्लिम होता? समान मामलों में सख्ती के उदाहरण
अगर कोई मुस्लिम व्यक्ति या वकील ऐसा ही अपराध करता, तो क्या सुप्रीम कोर्ट इतनी नरमी दिखाता? उपलब्ध जानकारी से ऐसा कोई प्रत्यक्ष समान केस (जैसे जज पर जूता फेंकना) मुस्लिम आरोपी का नहीं मिला, लेकिन भारत में अवमानना या न्यायिक हमले के मामलों में सामान्य रूप से सख्त कार्रवाई देखी गई है। कुछ प्रमुख उदाहरण:
• प्रशांत भूषण केस (2020): वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण (हिंदू) को सुप्रीम कोर्ट ने दो सोशल मीडिया पोस्ट्स के लिए अवमानना का दोषी ठहराया। कोर्ट ने उन्हें 1 रुपये का जुर्माना लगाया, लेकिन सजा की धमकी दी। मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया।
• उमर खालिद और शरजील इमाम केस (2020 दंगे): मुस्लिम कार्यकर्ताओं उमर खालिद और शरजील इमाम को UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बेल याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के बाद इनकार किया, जो अवमानना नहीं बल्कि राजद्रोह से जुड़ा था। हाई कोर्ट ने 9 लोगों की बेल खारिज की, जिसमें ये दोनों शामिल थे। यह मामला धार्मिक संवेदनशीलता से जुड़ा था, और कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया।
• अरुंधति रॉय केस (2017): लेखिका अरुंधति रॉय (गैर-मुस्लिम) के खिलाफ अवमानना कार्यवाही को सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित किया, लेकिन नागपुर बेंच में सुनवाई चली। मुस्लिम-संबंधित मामलों में, जैसे हदीया मैरिज केस (2018), जहां एक मुस्लिम महिला की शादी को चुनौती दी गई, कोर्ट ने हस्तक्षेप किया लेकिन अवमानना नहीं लगाई।
• नूपुर शर्मा कमेंट्स पर क्रिटिक्स (2022): नूपुर शर्मा के विवादास्पद बयान पर सुप्रीम कोर्ट के कमेंट्स की आलोचना करने वाले तीन वकीलों (जिनमें संभावित मुस्लिम पृष्ठभूमि वाले शामिल) के खिलाफ अवमानना याचिका पर महान्यायवादी ने सहमति देने से इनकार कर दिया। लेकिन समग्र रूप से, धार्मिक मामलों में मुस्लिम आरोपीयों पर UAPA जैसे कठोर कानूनों का इस्तेमाल देखा गया है।
हाल के वर्षों में न्यायाधीशों पर हमलों के 5 प्रमुख मामले दर्ज हैं, जैसे तेलंगाना में सजा सुनाने पर चप्पल फेंकना (2025) या मध्य प्रदेश में जज के घर पर हमला (2025), लेकिन इनमें आरोपीयों की धार्मिक पृष्ठभूमि स्पष्ट नहीं। अहमदाबाद में 15 अक्टूबर को एक व्यक्ति ने जज पर जूते फेंके, जो 28 साल पुराने हमले के फैसले से नाराज था।
विशेषज्ञों का मानना है कि अवमानना कानून (1971) में संशोधन के बाद सजा अधिक कठोर हुई है, लेकिन धार्मिक या जातिगत पृष्ठभूमि के आधार पर भेदभाव के आरोप लगते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अतीत में कहा है कि अवमानना न्यायपालिका की गरिमा बचाने के लिए है, न कि व्यक्तिगत बदले के लिए।
यह घटना न्यायिक सुरक्षा और सामाजिक तनाव को उजागर करती है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने मांग की है कि जजों के लिए सुरक्षा मजबूत की जाए। क्या यह नरमी न्यायपालिका की कमजोरी दिखाती है या विवेकपूर्ण फैसला? बहस जारी है।

