Supreme Court-Arundhati Roy: कोर्ट ने किताब के कवर पर धूम्रपान वाली तस्वीर के खिलाफ याचिका खारिज की

Supreme Court-Arundhati Roy: सुप्रीम कोर्ट ने प्रसिद्ध लेखिका अरुंधति रॉय की नई किताब ‘मदर मैरी कम्स टू मी’ के कवर पर उनकी धूम्रपान करती हुई तस्वीर को लेकर दायर जनहित याचिका (पीआईएल) को खारिज कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि यह तस्वीर तंबाकू उत्पादों के प्रचार-प्रसार का उल्लंघन नहीं करती और न ही इसमें धूम्रपान को बढ़ावा देने का कोई इरादा है। मुख्य न्यायाधीश सुर्य कांत की अगुवाई वाली बेंच ने याचिकाकर्ता पर ‘प्रचार के लिए मुकदमा’ चलाने का आरोप लगाते हुए इसे ‘अनावश्यक लोकप्रियता’ की कोशिश करार दिया।

याचिका का मामला तब शुरू हुआ जब एक वकील ने केरल हाईकोर्ट में पीआईएल दायर की, जिसमें किताब के कवर पर रॉय को बीड़ी पीते हुए दिखाए जाने को सिगरेट एंड अदर टोबैको प्रोडक्ट्स एक्ट (कोटपा) 2003 की धारा 5 का उल्लंघन बताया गया। याचिकाकर्ता राजसिम्हन ने तर्क दिया कि कवर पर ‘धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ या ‘तंबाकू कैंसर का कारण बनता है’ जैसी वैधानिक चेतावनी नहीं दी गई है। उन्होंने यह भी कहा कि तस्वीर युवाओं, खासकर महिलाओं को धूम्रपान को फैशनेबल दिखा सकती है और पीठ पर छोटे अक्षरों में दी गई अस्वीकरण (डिस्क्लेमर) अपर्याप्त है। इसके अलावा, उन्होंने संदेह जताया कि बीड़ी में तंबाकू है या गांजा। केरल हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि प्रकाशक ने पीठ पर डिस्क्लेमर दिया है, जो तंबाकू उपयोग का समर्थन नहीं करता।

सुप्रीम कोर्ट में अपील (एसएलपी(सी) नंबर 034002/2025) पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल कुमरन ने वही तर्क दोहराए। लेकिन मुख्य न्यायाधीश सुर्य कांत और न्यायमूर्ति जोयमलया बागची की बेंच ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। सीजेआई ने टिप्पणी की, “लेखिका एक प्रसिद्ध व्यक्ति हैं; साहित्यिक जगत में उनका नाम है। प्रकाशक भी विख्यात है… साहित्य ऐसा कुछ प्रचार नहीं करता, तो आपकी क्या समस्या है? अनावश्यक रूप से लोकप्रियता के लिए।” उन्होंने आगे कहा कि किताब होर्डिंग्स पर विज्ञापन नहीं है और पाठक लेखिका की विश्वसनीयता व सामग्री के लिए इसे खरीदेंगे, न कि फोटो के लिए। डिस्क्लेमर पर सीजेआई ने स्पष्ट किया, “वैसे भी, किताब सिगरेट के प्रचार के लिए नहीं लिखी गई है और कोटपा एक्ट की धारा 5 के तहत वैधानिक डिस्क्लेमर की जरूरत नहीं है।”

बेंच ने आदेश में कहा, “किताब कोटपा एक्ट 2013 का कोई उल्लंघन नहीं करती। वर्तमान याचिका में हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं दिखता; एसएलपी खारिज।” अदालत ने यह भी जोड़ा कि न तो लेखिका, न प्रकाशक और न ही किताब तंबाकू उत्पादों के विज्ञापन से जुड़ी है।

यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और साहित्यिक रचनाओं पर नियंत्रण के बीच संतुलन को रेखांकित करता है। अरुंधति रॉय, जिन्हें बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है, की यह आत्मकथात्मक किताब हाल ही में प्रकाशित हुई है, जो उनके व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय ऐसी ‘प्रचार याचिकाओं’ को हतोत्साहित करेगा, जो सार्वजनिक हित के नाम पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने की कोशिश करती हैं।

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