आवारा कुत्तों का मामला: सुप्रीम आदेश

Stray Dogs Case/Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने नगर निगमों को सार्वजनिक जगहों से आवारा कुत्तों को हटाकर आश्रय गृहों में ले जाने, नसबंदी और टीकाकरण का निर्देश दिया; लेकिन आश्रय गृहों की सुविधा, करुणा और अनावश्यक पीड़ा से बचाव पर सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (7 नवंबर 2025) को नगर निगमों को सार्वजनिक स्थानों और संस्थानों से आवारा कुत्तों को “हटाने” और उन्हें आश्रय गृहों में ले जाकर नसबंदी व टीकाकरण कराने का निर्देश दिया। लेकिन इस आदेश में यह जांच नहीं की गई कि क्या इन एजेंसियों के पास इसे करुणा के साथ लागू करने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा और जगह उपलब्ध है, ताकि जानवरों को अनावश्यक दर्द या पीड़ा न हो।

संविधान के अनुच्छेद 51A(g) में हर भारतीय नागरिक का मौलिक कर्तव्य है कि वह “जीवित प्राणियों के प्रति करुणा” रखे। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 3 में कहा गया है कि पशुओं की देखभाल करने वाले व्यक्ति को उनकी भलाई सुनिश्चित करनी होगी और उन्हें “अनावश्यक दर्द या पीड़ा” नहीं पहुंचानी होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के अपने फैसले (एनिमल वेलफेयर बोर्ड बनाम ए. नागराजा, जल्लिकट्टू मामले में) में कहा था: “सभी जीवित प्राणियों में अंतर्निहित गरिमा होती है और उन्हें शांतिपूर्वक जीने का अधिकार है। उनकी भलाई की रक्षा का मतलब है मारपीट, लात मारना, अधिक बोझ ढोना, अत्यधिक ड्राइविंग, यातना, दर्द और पीड़ा से बचाव।”

शुक्रवार के आदेश में जस्टिस विक्रम नाथ की अगुवाई वाली पीठ ने प्रशासनिक उदासीनता पर टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि पिछले वर्षों में लापरवाही के कारण आवारा कुत्तों के हमलों की “रोकथाम योग्य” घटनाएं हुईं, जिससे अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और सुरक्षा के मौलिक अधिकार का हनन हुआ। कोर्ट ने पशु जन्म नियंत्रण नियमों के “अप्रभावी” क्रियान्वयन पर भी चिंता जताई।

ठीक 10 साल पहले, नवंबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट (जस्टिस दीपक मिश्रा की पीठ) ने कहा था कि स्थानीय निकायों का “पवित्र कर्तव्य” है कि वे पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराएं, जिसमें कुत्ता आश्रय गृह शामिल हैं। कोर्ट ने तब कहा था: “एक बार जब अधिनियम और नियमों के तहत बुनियादी ढांचा उपलब्ध हो जाए, तो कुत्तों के प्रति करुणा और मानव जीवन (जो प्रकृति का अनमोल उपहार है) के बीच सामंजस्य स्थापित हो सकता है।”

2015 के आदेश में नगर निगमों को निर्देश दिए गए थे:
• कुत्तों को पकड़ने और परिवहन के लिए रैंप वाली वैन,
• चालक और कुत्ता पकड़ने वाले कर्मचारी,
• नसबंदी और टीकाकरण के लिए एम्बुलेंस-सह-क्लिनिक वैन,
• शवों के निपटान के लिए भट्टियां,
• आश्रय गृहों की नियमित मरम्मत।

लेकिन ये आदेश ज्यादातर जगहों पर लागू नहीं हुए, जिसके परिणामस्वरूप आवारा कुत्तों के हमलों में “चौंकाने वाली वृद्धि” हुई है।

विशेषज्ञों का कहना है कि बिना पर्याप्त आश्रय गृह, प्रशिक्षित स्टाफ और करुणामय तरीके के ये अभियान जानवरों को अतिरिक्त पीड़ा दे सकते हैं। पशु कल्याण संगठनों ने चेतावनी दी है कि जबरन पकड़ने की प्रक्रिया में कुत्तों को चोट लग सकती है या वे तनावग्रस्त हो सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने अब सभी पक्षकारों से जवाब मांगा है और मामले की अगली सुनवाई तय की है। विशेषज्ञों का मानना है कि मानव सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन बनाने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों को तुरंत बुनियादी ढांचा विकसित करना होगा।

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