यह मीटिंग चुनावी अभियान के दौरान दोनों के बीच तीखे हमलों के विपरीत थी। ट्रंप ने मामदानी को “कम्युनिस्ट लुनेटिक” कहा था और न्यूयॉर्क को संघीय फंडिंग रोकने तथा अवैध आप्रवासियों पर छापेमारी के लिए संघीय एजेंट भेजने की धमकी दी थी। वहीं, मामदानी ने ट्रंप को “डेस्पॉट” और फासीवादी बताया था, तथा आईसीई (इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट) की बढ़ी हुई कार्रवाइयों की आलोचना की। अपनी जीत के भाषण में मामदानी ने कहा था कि न्यूयॉर्क ट्रंप के “राजनीतिक अंधेरे” में “प्रकाश” बनेगा।
एनबीसी इंटरव्यू में मामदानी ने कहा, “हमारी राजनीति में असहमति से भागना नहीं चाहिए, लेकिन जो हमें एक मेज पर लाता है, उसे समझना चाहिए। मैं ओवल ऑफिस में पॉइंट स्कोर करने नहीं गया, बल्कि न्यूयॉर्कवासियों के लिए काम करने गया।” उन्होंने जोड़ा कि ट्रंप के साथ दोस्ताना रवैया अपनाना जरूरी था ताकि देश देख सके कि मतभेदों के बावजूद सहयोग संभव है।
यह घटना अमेरिकी राजनीति में एक दिलचस्प मोड़ पर ला दिया है, जहां व्यक्तिगत हमले और नीतिगत टकराव के बीच व्यावहारिक सहयोग की कोशिशें दिख रही हैं। मामदानी की यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है, जहां कुछ यूजर्स इसे “मास्टरक्लास” बता रहे हैं, तो कुछ ट्रंप समर्थक इसे “बेहयाई” करार दे रहे हैं। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर सर्च से पता चलता है कि #MamdaniTrump मीटिंग ट्रेंड कर रही है, और कई पोस्ट्स में मीटिंग के वीडियो क्लिप्स शेयर हो रहे हैं।
गार्जियन और एपी न्यूज जैसी रिपोर्ट्स के अनुसार, मामदानी का यह रुख उनकी सैन्हचुअरी पॉलिसी (अवैध आप्रवासियों की सुरक्षा) पर अडिग रहने का संकेत देता है। ट्रंप प्रशासन की ओर से अभी कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे 2026 के मिडटर्म चुनावों से पहले एक टेस्ट केस मान रहे हैं। न्यूयॉर्क, जो ट्रंप का जन्मस्थान भी है, इस सहयोग से कैसे फायदा उठा पाता है, यह देखना दिलचस्प होगा।

