रामलीला के मंचन से मजबूत होती है हमारी संस्कृति: केके शर्मा

Ghaziabad news :  जहां धर्म हमारे सर्वस्व का प्रतीक रहा है तो वहीं संस्कृति हमारी स्वाभाविक जीवनशैली की वाहिका रही है। दोनों ने ही भारतीय मूल्यों को जीवंत रखा है और संसार में इसी कारण से भारत का मान-सम्मान रहा है। प्राचीन समय में धर्म एक नागरिक के जीवन के उद्देश्यों का आधार था। धर्म मात्र प्रतीक नहीं होकर समग्र चेतना का स्तंभ था। परिणामस्वरूप भारत की सामाजिक, आर्थिक एवं नैतिक व्यवस्था मजबूत थी। इस तरह भारतीय का जीवन शांत एवं सुखी था। तब संस्कृति, भारतीयों को परिभाषित करती थी और भारत की सारी व्यवस्थाएं संस्कृति पर आधारित थीं। संस्कृति का सौरभ ही हमारे राष्ट्र का सौरभ है। उक्त बातें गुरुवार को सोशल मीडिया के संस्थापक एवं वरिष्ठ समाजसेवी केके शर्मा ने कहीं।

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उन्होंने कहा कि इस बार दशहरे के पर्व पर सनातन धर्म का समूल नाश करने की इच्छा रखने की मानसिकता का पुतले का दहन किया जाना चाहिए। तभी इस तरह की सोच रखने वाले व्यक्ति के चरित्र में बदलाव आ सकता है। इंसान को मारने से अच्छा है उसकी सोच को मारा जाए, तभी देश में बदलाव भी आएगा। जिसके लिए गाजियाबाद की रामलीला समिति कवि नगर, आदर्श धार्मिक रामलीला समिति संजय नगर श्री सुल्लामल रामलीला कमेटी घंटाघर व श्री रामलीला समिति राजनगर कमेटी को पत्र भेज कर इस दशहरे पर सनातन धर्म के विनाश की सोच रखने वाले मानसिकता के पुतले का दहन किया जाए।
उन्होंने कहा कि हिंदू समाज सभी रामलीला समितियों का आभारी है, क्योंकि वे रामलीलाओं का मंचन करके हिंदू सनातन धर्म का संरक्षण एवं प्रचार करने का कार्य करते हैं। अगर रामचरित मानस एवं रामलीलाओं का मंचन की परंपरा नहीं होती तो अब तक नई पीढ़ी श्रीराम एवं सनातन को भूल गई होती।

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