यूपी में सपा और दिल्ली में आप को झटका देगा हाथ, जानिये राहुल गांधी की राणनीति

दिल्ली में होने वाले चुनाव आप में को लेकर स्पष्ट हो गया है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस अलग अलग चुनावी मैदान में उतरेगी। सबसे पहले कांग्रेस की ओर से ऐलान किया गया था कि वो दिल्ली विधानसभा चुनाव में किसी से समझौता नहीं करेंगी। उसके बाद आम आदमी पार्टी के संयोजक एवं पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने भी ऐलान कर दिया। पार्टी दिल्ली में अपने ही दम पर चुनाव लड़ेगी। ऐसे लगने लगा है कि कांग्रेस अब दिल्ली और यूपी के लिए अलग रणनीति अपना रही है।
यूपी में अब फोकस
बता दें कि यूपी में 2027 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इन चुनावों को लेकर सबसे ज्यादा उत्साहित कांग्रेस दिख रही है। दिल्ली और बिहार में नए साल की शुरूआत में ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इनके साथ कांग्रेस का फोकस यूपी पर इतना ज्यादा क्यों है यह समझने वाली बात है। जबकि यूपी में कांग्रेस का भविष्य कागज पर तो बिल्कुल भी नहीं है। जबकि दिल्ली में उसका आधार ज्यादा मजबूत है। यही हाल बिहार में भी कहा जा सकता है। यब सब जानते हुए भी यदि कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश को प्रॉयरिटी में रखे हुए हैं तो जाहिर है यूं ही नहीं होगा. इसके पीछे कुछ तो मकसद होगा। अन्यथा दिल्ली की न्याय यात्रा में पहुंचने का टाइम नहीं मिला पर संभल और हाथरस जाने का टाइम क्यों मिल गया। अब सवाल यह उठ रहा है कि उत्तर प्रदेश की इन यात्राओं के पीछे कांग्रेस की मंशा क्या है?
कांग्रेस अब समझी इस बात को
कांग्रेस इस बात को अच्छी तरह समझती है कि उत्तर प्रदेश में फतह हासिल किए बिना दिल्ली की गद्दी पर काबिज नहीं हुआ जा सकता है। कांग्रेस यह भी जानती है कि अगर यूपी में विजय हासिल करनी है तो पहले समाजवादी पार्टी को खत्म करना होगा। आखिर समाजवादी पार्टी आज कांग्रेस के कोर वोटर्स के बल पर ही राजनीति कर रही है। यूपी में सपा भी यह समझती है कि कांग्रेस अगर राज्य में जिंदा हो गई तो उसका अस्तित्व खत्म हो जाएगा। यही कारण रहा कि उपचुनावों में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करने की रणनीति पर काम किया। हालांकि समाजवादी पार्टी को इसका नुकसान हुआ. कांग्रेस के साथ रहने के चलते लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को दलित वोटों का बड़ा सहारा मिल गया था।

कांग्रेस जिस तरीके से काम कर रही है उससे तो यही लगता है कि मुसलमान भी समाजवादी पार्टी का साथ छोड़कर उसका दामन थाम सकते हैं। रामपुर में पूर्व मंत्री आजमखान ने पत्र लिखकर जिस तरह मुसलमानों की अनदेखी का आरोप अखिलेश यादव पर लगाया है उसे आगे आने वाले दिनों की झलक मान सकते हैं. कोई अनहोनी नहीं होगी कि आजम खान कुछ दिनों बाद कांग्रेस जॉइन कर लें। लोकसभा चुनावों के पहले भी कई कद्दावर मुस्लिम नेता समाजवादी पार्टी से कांग्रेस में शामिल हुए थे।

 

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