LIC से जुड़े कुछ रोचक तथ्य,जानेंगे तो करेगे हैरान
LIC: जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी ये टैगलाइन एलआईसी की है। आजकल एलआईसी (Life Insurance Corporation of India) काफी चर्चाओ में है। जब से अदानी के शेयर मार्केट में धड़ाम नीचे गिरे है तब से आम जनता यानी ज्यादातर वे लोगों में जिन्होंने एलआईसी पर भरोसा किया विश्वास जताया और पूरा यकीन रखा अब डर जी रहे हैं
एलआईसी की जिसको देश का हर व्यक्ति जान ना पहचान ना और समझना चाहता है आखिर कंपनी कहां से आई कैसे बनी और कैसे इस कंपनी( Oriental Life Insurance Company) ने लोगों पर अपना विश्वास कैसे स्थापित किया। मालूम हो कि एलआईसी यानि भारतीय जीवन बीमा निगम। इग्लेड से आरियटल इश्योरेश कंपनी के नाम से पहली बार भारत में सन 1818 में आइ और कलकत्ता में बिपिन दास गुप्ता ने स्थापित कराई। धीरे-धीरे कंपनी भारतीयों के बीच लोकप्रिय होती चली गई सितंबर 1956 को संसद में पारीत बिल से यह कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम बन गई। आप जानते होंगे कि इंश्योरेंस की कहानी भी उतनी ही पुरानी है जितनी मानव जाति। जमाना पुराना हो या नया हर व्यक्ति अपनी सिक्योरिटी हर प्रकार से चाहता है और अपने बच्चों को अपने जाने के बाद सिक्योर करना चाहता है। आग लगे, या बाढ़ आए या फिर जान जाए कुछ भी हो जाए। लेकिन एलआईसी आपके साथ खड़ी है।
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LIC: इतना विश्वास मगर देखिए अडानी के शेयर में इन्वेस्ट के बाद से जनता का विश्वास डगमगाने लगा है। शेयर खरीदफरोत में कंपनी अपने मापदंड अपनाती है लेकिन नुकसान हुआ तो कंपनी का क्या जाएगा। आप ही का समझ जाइए हो सकता है कि इसीलिए लगातार निवेशकों का विश्वास डटने के प्रकिी बजाय डगमगा रहा है। मैं बताता चलूं कि पिछले 4 दिनों में 39 प्रतिशत रानी के शेर का रेट गिर चुका है। इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि अडानी के शेयरर्स पर एलआईसी का जो पैसा लगा है उससे लाभ होगा या हानि । इसका सीधे असर एलआईसी धरको पर पड़ेगा। कंपनी भी उन्ही के पैसे से चलती है। दरअसल एलआईसी वित मंत्रालय के अर्तगत आती है।
भूलने वाली जनता को याद हो कि साल 1956 में एलआईसी से जुड़ा मुधड़ा घोटाला हुआ था। जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे. लेकिन, उनके ही दामाद और रायबरेली से पार्टी के सांसद फिरोज गांधी ने इस मुद्दे को उठा दिया और सरकार को घेर लिया. उन्होंने तत्कालीन वित्तमंत्री टीटी कृष्णामचारी की भूमिका पर सवाल उठाया, जिसके बाद उन्हें इस्तीफा तक देना पड़ा।
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बता दे कि क्या था घोटाला
एलआईसी ने पश्चिम बंगाल के एक व्यापारी हरिदास मुंदड़ा की नॉन परफॉर्मिंग कंपनी के 1.26 लाख रुपये के शेयर खरीद लिए थे. इससे बीमा कंपनी को 37 लाख रुपये का नुकसान हुआ था. शेयरों की खरीद में भी नियमो की अनदेखी की गई।
इस सब में सेबी की भी अहम भूमिका होना चाहिए लेकिन जिस दिन से हिडनबर्ग की रिपोर्ट आई है न तो सरकार ने को प्रतिक्रिया दी है और न ही सेबी की और से को जांच पड़ताल कराने की बात कही गई है। मामला प्रकास में आते ही झपटने वाली सभी एंजेयिां शात क्या है ये जवाब साना आपके उपर छोढ़ता हू।