अमेरिकी लेखक काइल चायका ने ‘द न्यू यॉर्कर’ में लिखे अपने निबंध में ‘पोस्टिंग ज़ीरो’ की अवधारणा पेश की है। उनका कहना है कि आम लोग अब महसूस कर रहे हैं कि अपनी ज़िंदगी के छोटे-मोटे अपडेट्स—जैसे छुट्टियों की तस्वीरें या नाश्ते की प्लेट—शेयर करने का कोई मतलब नहीं रह गया। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह ट्रेंड ख़ासकर जेन ज़ेड (1997-2012 में पैदा हुए युवा) में तेज़ी से फैल रहा है। चायका का अनुमान है कि सोशल प्लेटफ़ॉर्म्स अब कंटेंट क्रिएटर्स और एआई-जनरेटेड सामग्री के इर्द-गिर्द घूमने लगे हैं, जहां रेगुलर यूजर्स सिर्फ़ उपभोक्ता बनकर रह गए हैं।
वैश्विक आंकड़े इस बदलाव की पुष्टि करते हैं। एनालिटिक्स फ़र्म जीडब्ल्यूआई (GWI) के एक सर्वे में 50 देशों के 2.5 लाख वयस्कों से डेटा इकट्ठा किया गया। रिपोर्ट बताती है कि सोशल मीडिया पर समय बिताने का औसत 2022 में चरम पर पहुंचा था, लेकिन उसके बाद ख़ासकर युवाओं में भारी गिरावट आई।
2025 में वैश्विक औसत दैनिक उपयोग 141 मिनट (2 घंटे 21 मिनट) रह गया, जो 2024 के 143 मिनट से थोड़ा कम है। इंस्टाग्राम पर मीडियन एंगेजमेंट रेट जनवरी 2024 के 2.94% से गिरकर जनवरी 2025 में 0.61% हो गया। इसी तरह, एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एंगेजमेंट 3.47% से घटकर 2.15% रह गया।
जेन ज़ेड इस बदलाव का केंद्र में है। ईमार्केटर की ‘जेन ज़ेड सोशल मीडिया यूज़ेज 2025’ रिपोर्ट के अनुसार, यह पीढ़ी सोशल मीडिया को मनोरंजन, मैसेजिंग और सर्च के लिए इस्तेमाल तो करती है, लेकिन पोस्टिंग में बूढ़ी पीढ़ियों से कहीं कम रुचि दिखाती है। 83% जेन ज़ेड यूजर्स कम समय बिताने की कोशिश कर रहे हैं, और कई प्लेटफ़ॉर्म्स—जैसे टिकटॉक, एक्स और फ़ेसबुक—छोड़ चुके हैं। पार्टनरसेंट्रिक के सर्वे में पाया गया कि 2025 में अमेरिका के 41% लोग सोशल मीडिया यूज़ कम कर रहे हैं, और 16% ने कम से कम एक प्लेटफ़ॉर्म छोड़ दिया। जेन ज़ेड में यह आंकड़ा और ऊंचा है—वे अब प्राइवेसी, मेंटल हेल्थ और असली कनेक्शन्स को प्राथमिकता दे रहे हैं।
भारत में भी यह ट्रेंड पकड़ रहा है। डेटारेपोर्टल की ‘डिजिटल 2025’ रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर सोशल मीडिया यूजर्स 5.24 अरब हो चुके हैं, लेकिन एंगेजमेंट में गिरावट साफ़ दिख रही है। भारतीय युवा, जो टिकटॉक-जैसे ऐप्स के दीवाने थे, अब इंस्टाग्राम रील्स और यूट्यूब शॉर्ट्स पर कम समय बिता रहे हैं। एक अध्ययन में पाया गया कि 32% जेन ज़ेड यूजर्स स्क्रीन-टाइम लिमिट वाली ऐप्स को पसंद कर रहे हैं, और #मेंटलहेल्थमैटर्स जैसे हैशटैग्स में 21% की बढ़ोतरी हुई है।
इस ‘डिजिटल रिट्रीट’ के पीछे कई वजहें हैं। पहली, मेंटल हेल्थ का दबाव: सोशल मीडिया की तुलना और ट्रोलिंग से तंग आकर युवा ऑफ़लाइन ज़िंदगी की ओर लौट रहे हैं। दूसरी, एआई का उदय: मेटा जैसी कंपनियां फ़ीड में कंप्यूटर-जनरेटेड कंटेंट भर रही हैं, जो अनंत लेकिन अर्थहीन है। तीसरी, प्राइवेसी चिंताएं: जोनाथन हाइट जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि यह ट्रेंड बच्चों में फ़ोन एडिक्शन तोड़ने में मदद कर सकता है।
हालांकि, यह पूरी तरह से सोशल मीडिया का अंत नहीं है। यूजर्स अब कम प्लेटफ़ॉर्म्स पर ज़्यादा समय बिताने लगे हैं—औसतन 6.83 ऐप्स प्रति माह। टिकटॉक अभी भी 83% जेन ज़ेड यूजर्स के पास है, लेकिन शॉर्ट-फ़ॉर्म वीडियो की बजाय कम्युनिटी-बेस्ड ऐप्स जैसे डिस्कॉर्ड (50% जेन ज़ेड यूज़) और सबस्टैक लोकप्रिय हो रहे हैं। ब्रांड्स के लिए यह चुनौती है: अब असली, रिलेटेबल कंटेंट ही काम आएगा। यूज़र-जनरेटेड ऐड्स पारंपरिक ब्रांडेड कंटेंट से 4.2 गुना ज़्यादा एंगेजमेंट ला रहे हैं।
‘पोस्टिंग ज़ीरो’ डिजिटल आदतों में एक स्वस्थ बदलाव का संकेत है। जैसा कि चायका कहते हैं, “यह एक ऐसा दौर है जहां लोग अपनी ज़िंदगी को निजी रखना चाहते हैं।” क्या यह ट्रेंड स्थायी होगा? आने वाले साल बताएंगे, लेकिन एक बात साफ़ है—इंटरनेट अब सिर्फ़ शेयरिंग का मंच नहीं, बल्कि सोचने-समझने का। युवा पीढ़ी फ़ोन से दूर होकर असली दुनिया की ओर बढ़ रही है, और यही शायद डिजिटल दुनिया को और मज़बूत बनाएगा।

