Shri Ram Temple: सुपौल के कामेश्वर चौपाल ने रखी थी अयोध्या के श्रीराम मंदिर की पहली ईंट
Shri Ram Temple: पटना। करोड़ों हिंदुओं की आस्था और विश्वास का प्रतीक अयोध्या में श्रीराम मंदिर की पहली ईट रखने का श्रेय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता श्रीराम जन्मभूमि न्यास समिति के सदस्य सुपौल जिला निवासी कामेश्वर चौपाल को जाता है।
Shri Ram Temple:
कामेश्वर चौपाल का नाम तब पहली बार सुर्खियों में आया, जब 09 नवंबर 1989 को अयोध्या में राम मंदिर शिलान्यास का कार्यक्रम रखा गया था। देश के अलग-अलग हिस्सों से आए हजारों साधु-संतों और लाखों कारसेवक इसमें जुटे थे और उस शिलान्यास कार्यक्रम में राम मंदिर निर्माण के लिए पहली इंट कामेश्वर चौपाल ने ही रखी थी। कामेश्वर चौपाल मूल रूप से बिहार के सुपौल जिले के कमरैल गांव के निवासी हैं। उस वक्त वह विश्व हिन्दू परिषद (विहिप)के सह संगठन मंत्री हुआ करते थे। श्री चौपाल तब अयोध्या में ही थे। उन्हें सूचना मिली कि शिलान्यास के लिए उन्हें चुना गया है। शिलान्यास के वक्त विहिप के बड़े-बड़े नेता वहां मौजूद थे। राम मंदिर की नींव रखने के बाद श्री चौपाल ने कहा था, ‘जैसे श्रीराम को शबरी ने बेर खिलाया था, वैसा ही मान-सम्मान उनको भी मिला है।
शिलान्यास के बाद श्री चौपाल भाजपा में शामिल होकर राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हो गये। श्री चौपाल की लोकप्रियता को देखते हुए भाजपा ने वर्ष 1991 में रोसड़ा सुरक्षित लोकसभा सीट से उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया। इस चुनाव में जनता दल के रामविलास पासवान ने कांग्रेस के अशोक कुमार को पारजित किया था। श्री चौपाल तीसरे नंबर पर रहे थे। वर्ष 1995 के विधानसभा चुनाव में श्री चौपाल ने बखरी (सु) सीट से चुनाव लड़ा। इस बार उन्हें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के राम विनोद पासवान ने मात दी। श्री चौपाल को भाजपा ने वर्ष 2014 के सुपौल संसदीय सीट से उम्मीदवार बनाया, हालांकि वह अपने गृह जिले सुपौल में भी चुनाव हार गये। रोटी के साथ राम’ का नारा देने वाले कामेश्वर चौपाल ने एक बार बताया था कि बचपन में उनकी मां एक गीत गाकर उन्हें सुलाया करती थी। गीत के बोल थे। ‘पहुना मिथिले में रहू ना।’ उन्होंने इस गीत पर अपनी मां से प्रश्न किया कि श्रीराम तो भगवान हैं, फिर पहुना क्यों। मां का उत्तर था कि दुनिया के लिए भले ही वे भगवान हों, मिथिला के तो पाहुन ही हैं श्रीराम। पुरखों ने बचपन में जो संस्कार भरा था, वही समर्पण के रूप में सदैव उनके साथ रहा है। ऐसे तो ईष्टदेव और उधर मिथिला से संबंध, यानी हमारा तो दोनों संबंध साकार हुआ है।
अयोध्या में 500 वर्षों के संघर्ष एवं हजारों बलिदानों के बाद 22 जनवरी 2024 को भगवान राम लला अपने दिव्य, भव्य, नव्य रूप में श्री राम मंदिर में विराजमान हो गये। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अयोध्या के राममंदिर में गर्भगृह में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुयी।
बिहार लोकसभा चुनाव 2024 में सुपौल संसदीय सीट से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल जनता दल यूनाईटेड (जदयू) के वर्तमान सांसद दिलकेश्वर कामत ,जहां दूसरी बार जीत का सेहरा बांधने के प्रयास में हैं, वहीं इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया गठबंधन) में शामिल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रत्याशी चंद्रहास चौपाल पहली बार लोकसभा के चुनावी मैदान में उतरे हैं।
वर्ष 2019 मे सुपौल संसदीय सीट पर हुये चुनाव में राजग में शामिल जदयू के प्रत्याशी दिलकेश्वर कामत ने महागठबंधन में शामिल कांग्रेस प्रत्याशी रंजीत रंजन को पराजित किया था। इस बार के चुनाव में जदयू ने एक बार फिर से श्री कामत के प्रति भरोसा जताते हुये उम्मीदवार बनाया है, वहीं (इंडिया गठबंधन) में सीटों के तालमेल के तहत सुपौल सीट कांग्रेस की जगह (राजद) को मिली है। राजद ने सुपौल संसदीय सीट पर सिंहेश्वर विधानसभा के विधायक चंद्रहास चौपाल को चुनावी रण में उतारा है। जदयू के श्री कामत चुनावी मैदान में दूसरी बार जीत के प्रयास में लगे हैं, वहीं राजद प्रत्याशी पहली बार पहली बार सांसद बनने के लिये चुनावी मैदान में डटे हैं।
वर्ष 2009 में सुपौल संसदीय क्षेत्र अस्तित्व में आया। इससे पूर्व सुपौल ,सहरसा लोकसभा का हिस्सा हुआ करता था। सहरसा संसदीय क्षेत्र में हुये आम चुनाव में कई दिग्गज नेता चुनाव जीतकर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वर्ष 2008 में हुए नये परिसीमन के बाद सहरसा लोकसभा का अस्तित्व समाप्त हो गया, जिसके बाद से सहरसा का नाम देश के सबसे बड़े सदन के पटल से हट गया।वर्ष 1957 में जब सहरसा लोकसभा क्षेत्र बना तो इसके पहले सांसद 1973 से 1975 तक रेल मंत्री रहने वाले देश के दिग्गज राजनेता कांग्रेस के ललित नारायण मिश्र हुये, जबकि अंतिम सांसद रंजीत रंजन बनी, जिन्होंने वर्ष 2004 में चुनाव जीता था।
वर्ष 1957 में सहरसा सीट पर हुये आम चुनाव में कांग्रेस के ललित नारायण मिश्र और भोली सरदार ने जीत हासिल की। इससे पूर्व ललित नारायण मिश्र ने वर्ष 1952 में दरभंगा-भागलपुर संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी। वर्ष 1962 में सहरसा संसदीय सीट से सोशलिस्ट पार्टी का प्रतिनिधित्व करने वाले भूपेन्द्र नारायण मंडल (बी.एन.मंडल) ने कांग्रेस के कद्दावर नेता ललित नारायण मिश्रा को पराजित किया। लेकिन, फैसले को इस आरोप के आधार पर अदालत में चुनौती दी गई थी कि बी.एन. मंडल ने अपने एक पैम्फलेट में जातिवादी नारा ‘रोम है पोप का, मधेपुरा है गोप का’ का इस्तेमाल किया था, जिसने सांप्रदायिक भावनाओं को हवा दी थी। मामला कोर्ट तक पहुंचा और अदालत ने 1962 के चुनाव परिणाम को अमान्य करार दिया और बी.एन.मंडल को कोई भी चुनाव लड़ने से रोक दिया। हालांकि, बाद में उन्होंने केस जीत लिया। वर्ष 1964 में सहरसा सीट पर उपचुनाव हुये। इस चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे लहटन चौधरी ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी उम्मीदवार बी.एन.मंडल को पराजित किया।
वर्ष 1967 के आम चुनाव में कांग्रेस के चिरंजीव झा ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के गुणानंद झा को पराजित किया। वर्ष 1977 के चुनाव में भारतीय लोक दल के विनायक प्रसाद यादव ने कांग्रेस के चिरंजीव झा को शिकस्त दी। वर्ष 1980 के चुनाव में इंदिरा कांग्रेस के कमलनाथ झा ने जनता पार्टी (सेक्यूलर) के विनायक प्रसाद याादव को मात दी। श्री झा इससे पूर्व बिहार विधान सभा के सदस्य और राज्य सभा सांसद भी रहे थे। श्री कमल नाथ झा वर्ष 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुये थे। वह पूर्णिया जिले में आजाद दस्ता संगठन से जुड़े हुये थे।यह संगठन फिरंगियों के लिए सिर दर्द बन गया था। श्री झा ने उन दिनों करोड़ों रुपये के हथियारों को नष्ट कर दिया, जिससे वे अंग्रेजों के हाथों में न पड़ें। इसके तुरंत बाद वह अपने साथियों के साथ कोशी पुल पर ब्रिटिश सैनिकों द्वारा फंस गए और गोलीबारी शुरू हो गई। घायल होने और तेज बुखार के बावजूद श्री झा ने उफनती कोशी नदी में छलांग लगा दी। बाद में उसे एक रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें भागलपुर सेंट्रल जेल में हिरासत में लिया गया था वर्ष 1946 में उन्हें रिहा कर दिया गया था। Shri Ram Temple UP
वर्ष 1984 में कांग्रेस के चन्द्रकिशोर पाठक ने लोकदल प्रत्याशी विनायक प्रसाद यादव को हराया। जनता पार्टी के आनंद मोहन सिंह तीसरे नंबर पर रहे।वर्ष 1989 में जनता दल के टिकट पर सूर्य नारायण यादव सांसद बने। उन्होंने कांग्रेस के चन्द्रकिशोर पाठक को पराजित किया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विजय कुमार मिश्रा तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 1991 में जनता दल के सूर्य नारायण यादव ने एक बार फिर बाजी अपने नाम की। उन्होंने कांग्रेस के तारानंद सदा को हराया। जनता पार्टी के वैधनाथ मेहता तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 1996 में जनता दल के दिनेशचन्द्र यादव सांसद बने। उन्होंने कांग्रेस के सूर्य नारायण यादव को पराजित किया।
वर्ष 1998 में राजद के अनूप लाल यादव ने जदयू के दिनेशचन्द्र यादव को पराजित किया। समता पार्टी के चौधरी मोहम्मद फारूख सलाहुद्दीन तीसरे नंबर और कांग्रेस के तारानंद सदा चौथे नंबर पर रहे।वर्ष 1999 में जदयू के दिनेश चंद्र यादव ने राजद के सूर्य नारायण यादव को पराजित किया। वर्ष 2004 के चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) प्रत्याशी पूर्व बाहुबली सांसद पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन ने जदयू के दिनेश चंद्र यादव को पराजित किया।वर्ष 2008 के परिसमीन के बाद सहरसा संसदीय क्षेत्र का अस्तित्व समाप्त हो गया। भले ही सहरसा संसदीय क्षेत्र अस्तित्व में नहीं है लेकिन कभी सहरसा संसदीय क्षेत्र राष्ट्रीय राजनीति में चर्चित था। इस सीट की धमक देश की राजधानी में थी। यहां का प्रतिनिधित्व प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ ललित नारायण मिश्र (पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के बड़े भाई) करते थे। वह 1964 से 1966 तक और फिर 1966 से 1972 तक राज्य सभा के सदस्य रहे। 1970 से चार फरवरी 1973 तक वह विदेश व्यापार मंत्री थे। पांच फरवरी 1973 को उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा रेलवे का कैबिनेट मंत्री बनाया गया था।दो जनवरी 1975, बिहार के समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर एक सभा चल रही थी, जिसे तत्कालीन रेल मंत्री ललित नारायण मिश्रा संबोधित कर रहे थे। उसी समय वहां एक बम फेंका गया, जिसमें श्री मिश्रा गंभीर रूप से घायल हो गए और अगले दिन तीन जनवरी को अस्पताल में उनकी मौत हो गयी।
सुपौल ,सहरसा जिले से 14 मार्च 1991 को विभाजित होकर अलग जिले के रूप में अस्तित्व में आया। वर्ष 2009 में सुपौल संसदीय क्षेत्र अस्तित्व में आया। सुपौल के उत्तर में नेपाल है। ऐसे में यह लोकसभा क्षेत्र इस मायने में भी काफी महत्व रखता है। इसके साथ ही इसकी सीमा एक तरफ सीमांचल तो दूसरी तरफ मिथिलांचल से भी लगती है, जो इसके राजनीतिक महत्व को और बढ़ा देता है। यह पहले मिथिला का हिस्सा हुआ करता था। इसे पौराणिक समय में मत्स्य क्षेत्र भी कहा जाता था। सुपौल संसदीय क्षेत्र के लिए अबतक हुए तीन चुनावों में मतदाताओं ने हर बार पुराने चेहरे को बदला और नए को मौका दिया है। किसी का एकाधिकार नहीं रहने दिया।
वर्ष 2009 में सुपौल संसदीय सीट पर हुये चुनाव में पूर्व विधायक जगदीश मंडल के पुत्र जदयू के विश्वमोहन कुमार ने कांग्रेस प्रत्याशी रंजीत रंजन को मात दी। लोजपा उम्मीदवार सूर्य नारायण यादव तीसरे नंबर पर रहे।वर्ष 2014 के चुनाव में जब पूरे देश खास कर हिन्दी भाषी क्षेत्रों में भाजपा और नरेन्द्र मोदी की लहर थी, तब सुपौल में भाजपा के विजय रथ को रंजीत रंजन ने रोक दिया। सुपौल लोकसभा सीट से कांग्रेस की रंजीत रंजन ने जदयू के दिलेश्वर कामत को पराजित किया।भाजपा के कामेश्वर चौपाल तीसरे नंबर पर रहे। इस चुनाव में गठबंधन न होने से जदयू और भाजपा के प्रत्याशी अलग-अलग चुनावी मैदान में उतरे थे। 30 साल बाद सहरसा-सुपौल में कांग्रेस का हुआ उदय हुआ।कोसी में 30 साल बाद रंजीत रंजन ने कांग्रेस को जिताया। हालांकि 2019 में रंजीत रंजन यहां अपना राजनीतिक दबदबा कायम नहीं रख पाई और यह सीट जदयू ने जीत ली। वर्ष 2019 के चुनाव में जदयू के दिलेश्वर कामत ने कांग्रेस की रंजीत रंजन को मात दी।
सुपौल लोकसभा क्षेत्र में गठबंधन का बोलबाला रहा है। वर्ष 2009 में (राजग) के तहत भाजपा और जदयू ने एक साथ चुनाव लड़ा तो उसने जीत हासिल की। वर्ष 2014 में कांग्रेस एवं राजद ने महागठबंधन में शामिल होकर एक साथ चुनाव लड़ा तो यहां से कांग्रेस जीती। वर्ष 2014 में जदयू का भाजपा से गठबंधन नहीं हो सका था। वर्ष 2019 में जदयू-भाजपा ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा और जदयू के प्रत्याशी जीत हासिल की।सुपौल लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस की दिग्गज नेता रंजीत रंजन चुनाव लड़ती रही हैं, हालांकि वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में वह, दिलेश्वर कामत से हार गई थीं। वह फिलहाल राज्यसभा सांसद है।
वर्ष 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आए सुपौल संसदीय क्षेत्र में पिछले तीन लोकसभा चुनावों में यहां मुख्य मुकाबले में जदयू और कांग्रेस ही रहे। जदयू दो और एक बार कांग्रेस जीती। वर्ष 2024 में चुनावी परिस्थितियां बदल गई हैं। 25 साल बाद राजद के प्रत्याशी मैदान में उतर रहे हैं।सुपौल संसदीय सीट से सिंहेश्वर विधानसभा के विधायक चंद्रहास चौपाल राजद के बैनर तले पहली बार लोकसभा के चुनावी मैदान में उतरे हैं। श्री चौपाल का मुकाबला इस सीट पर जदयू सांसद दिलकेश्वर कामत से होगा। इसके अतिरिक्त निर्दलीय प्रत्याशी बैद्यनाथ मेहता इस बार चर्चा में हैं, जो दोनों ही प्रमुख गठबंधन का चुनावी गणित बिगाड़ सकते हैं। पूर्व आईआरएस अधिकारी रहे बैद्यनाथ मेहता ने पिछले साल ही वीआरएस ले लिया और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय महासचिव थे। राजग से टिकट नहीं मिलने के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी और वह निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।
सुपौल संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र हैं, इनमें पांच सुपौल और एक मधेपुरा जिले में है। सुपौल में निर्मली, पिपरा, सुपौल, त्रिवेणीगंज (सु), छातापुर है, जबकि सिंहेश्वर (सु) मधेपुरा जिले में है। निर्मली, पिपरा, सुपौल, त्रिवेणीगंज (सु) में जदयू का कब्जा है। छातापुर में भाजपा और सिंहेश्वर (सु) में राजद का कब्जा है। सुपौल संसदीय सीट से जदयू ,राजद ,बहुजन समाज पार्टी, सात निर्दलीय समेत 15 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। सुपौल लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 19 लाख 22 हजार 45 है। इनमें 09 लाख 94 हजार 276 पुरूष, 09 लाख 27 हजार 728 महिला और 41 थर्ड जेंडर हैं, जो तीसरे चरण में 07 मई को होने वाले मतदान में इन प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे। इस बार के चुनाव में दिलकेश्वर कामत सुपौल से दूसरी बार जीत का सेहरा सजा पाते हैं, या फिर चंद्रहास चौपाल के पक्ष में जनता ‘चौपाल’ लगाती है । यह तो 04 जून को नतीजे के बाद ही स्पष्ट हो पायेगा।
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