सीजेआई बीआर गवई पर जूता फेंकने की घटना: विष्णु मूर्ति विवाद का बदला या आरएसएस कार्यक्रम से जुड़ा गुस्सा? वकील ने किया दावा- ‘ऊपर वाले ने कराया’

Shoe-throwing incident at CJI BR Gavai: सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस बीआर गवई पर जूता फेंकने की सनसनीखेज कोशिश करने वाले वकील राकेश किशोर ने अपने इस कदम को ‘ऊपर वाले की इच्छा’ बताया है। 71 वर्षीय वकील का यह बयान सोमवार को जारी आर्टिकल में आया, लेकिन अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह सिर्फ खजुराहो के विष्णु मूर्ति विवाद का बदला था, या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की 100वीं वर्षगांठ के कार्यक्रम में सीजेआई की मां के न आने से जुड़ा कोई गुस्सा भी इसमें शामिल था? जांच एजेंसियां और सोशल मीडिया पर बहस तेज हो गई है, हालांकि वकील ने मुख्य रूप से सनातन धर्म पर सीजेआई की टिप्पणी को ही कारण बताया है।

विष्णु मूर्ति विवाद: सीजेआई की टिप्पणी ने भड़काया आक्रोश
घटना की जड़ 16 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में है, जब एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर बहस हो रही थी। याचिकाकर्ता ने मध्य प्रदेश के खजुराहो स्थित वामन (जवारी) मंदिर में क्षतिग्रस्त भगवान विष्णु की मूर्ति को बहाल करने की मांग की थी। सीजेआई गवई की अगुवाई वाली बेंच ने याचिका को ‘प्रचारित मुकदमा’ करार देते हुए खारिज कर दिया। इस दौरान सीजेआई ने कथित तौर पर कहा, “जाओ और खुद देवता से कहो कि कुछ करे।” या “मूर्ति से प्रार्थना करो और सिर वापस लगाने को कहो।” यह टिप्पणी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और हिंदू संगठनों ने इसे सनातन धर्म का अपमान बताया।

राकेश किशोर ने अपने बयान में कहा, “मैं आहत था। सीजेआई ने सनातन धर्म का मजाक उड़ाया। जब भी ऐसे मामले आते हैं, कोर्ट याचिकाकर्ता का मजाक उड़ाता है। राहत न दो, लेकिन अपमान न करो।” उन्होंने दावा किया कि यह प्रतिक्रिया ‘दिव्य शक्ति’ या ‘ऊपर वाले’ की ओर से थी, और उन्हें कोई पछतावा नहीं है। पुलिस पूछताछ में भी किशोर ने यही दोहराया कि विष्णु मूर्ति वाली सुनवाई से वे बेहद नाराज थे।

सीजेआई गवई ने बाद में स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणी का गलत संदर्भ लिया गया। उन्होंने कहा, “मैं सच्चे सेकुलरिज्म में विश्वास करता हूं। सभी धर्मों का सम्मान करता हूं। यह मामला पुरातत्व सर्वेक्षण ऑफ इंडिया (एएसआई) का है, और मैंने शिवलिंग की पूजा करने का सुझाव दिया था।” सोशल मीडिया पर आई आलोचना पर उन्होंने कहा कि यह उन्हें प्रभावित नहीं करेगा।

आरएसएस 100वीं वर्षगांठ: मां के न आने का विवाद, लेकिन क्या इससे जुड़ा बदला?
दूसरी ओर, सवाल उठा है कि क्या किशोर का गुस्सा आरएसएस की 100वीं वर्षगांठ से जुड़ा था? आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई, और 2025 में विजयादशमी पर महाराष्ट्र के अमरावती में शताब्दी कार्यक्रम आयोजित हो रहा था। सीजेआई गवई की मां, डॉ. कमलताई गवई (या कमला गवई), को चीफ गेस्ट के रूप में आमंत्रित किया गया था। कमलताई, जो डॉ. आंबेडकर की विचारधारा की अनुयायी हैं, ने पहले स्वीकार किया था, लेकिन विवाद बढ़ने पर स्वास्थ्य कारणों और व्यक्तिगत हमलों का हवाला देकर मना कर दिया।

सीजेआई के भाई ने बचाव में कहा कि विचारधारा और निजी संबंध अलग हैं, लेकिन कमलताई ने स्पष्ट कहा, “मेरा जीवन कार्य को धूमिल करने की कोशिश दर्दनाक है।” आरएसएस कार्यक्रम में दलित-आदिवासी नेताओं को आमंत्रित करने का उद्देश्य था, लेकिन आंबेडकरवादी समुदाय में यह बैकलैश पैदा कर गया। हालांकि, किशोर के बयानों या पुलिस पूछताछ में आरएसएस का कोई जिक्र नहीं आया। विशेषज्ञों का मानना है कि यह विष्णु विवाद से अलग घटना है, लेकिन हिंदू-राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़काने का माध्यम बन सकती है।

वकील सस्पेंड, कोर्ट की प्रतिक्रिया
राकेश किशोर को सुप्रीम कोर्ट बार काउंसिल ने निलंबित कर दिया है। दिल्ली पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया, लेकिन बाद में जमानत पर रिहा कर दिया। किशोर ने कहा, “मैं डरा नहीं हूं, जेल जाने को तैयार हूं।” सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना को ‘संवैधानिक पद की गरिमा पर हमला’ बताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीजेआई से बात की और हमले की निंदा की।
यह घटना न्यायपालिका की संवेदनशीलता और धार्मिक मामलों पर टिप्पणियों के बीच बहस छेड़ रही है। क्या यह व्यक्तिगत आक्रोश था या बड़े विवाद का हिस्सा? जांच जारी है।

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