बिहार में नीतिश सरकार को झटकाः हाई कोर्ट बोला, जातिगत आरक्षण असंवैधानिक
जातिगत जनगणना के माले में बिहार में नीतिश सरकार को झटका लगा है। बिहार में आरक्षण प्रतिशत बढ़ाया था। आज यानी गुरूवार को पटना हाई कोर्ट ने सीएम नीतीश कुमार की तत्कालीन महागठबंधन सरकार के फैसले को असंवैधानिक करार दिया है। राज्य की एनडीए सरकार ने बिहार में जाति आधारित जनगणना का फैसला किया था। जनगणना का काम बीच में बनी महागठबंधन सरकार के दौरान पूरा हुआ। महागठबंधन सरकार के भी चीफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही थे। महागठबंधन सरकार ने जातीय जनगणना के आंकड़ों को आधार बनाकर राज्य में आरक्षण का प्रतिशत 65 तक पहुंचा दिया था। लोकसभा चुनाव 2024 में महगठबंधन के मुख्य दल राष्ट्रीय जनता दल ने इस आरक्षण का क्रेडिट भी लिया। किसी भी दल ने आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने को गलत नहीं बताया था। लेकिन अब, पटना हाई कोर्ट ने आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने के राज्य सरकार के फैसले को असंवैधानिक करार दिया है।कोर्ट का यह फैसला नीतीश सरकार को बड़ा झटका माना जा रहा है।
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गुरुवार को सुनवाई की दौरान पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार के अनुसूचित जाति, जनजाति, अत्यंत पिछड़े और अन्य पिछड़े वर्ग को 65 आरक्षण देने वाले कानून को रद्द कर दिया है। पटना हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया है। यानी अब शिक्षण संस्थानों व सरकारी नौकरियों में एससी-एसटी, अत्यंत पिछड़े और अन्य पिछड़े वर्ग को 65 आरक्षण नहीं मिलेगा। 50 फीसदी आरक्षण वाली पुरानी व्यवस्था ही लागू हो जाएगी।
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मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
बता दें कि 65 प्रतिशत आरक्षण कानून के खिलाफ गौरव कुमार व अन्य लोगों ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी। न कि जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने का प्रावधान। यह जो 2023 का संशोधित अधिनियम बिहार सरकार ने पारित किया है, वह भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। इसमें सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के समान अधिकार का उल्लंघन करता है, वहीं भेद भाव से संबंधित मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है। चीफ जस्टिस केवी चंद्रन की खंडपीठ ने इस पर लंबी सुनवाई की। इसके बाद 11 मार्च को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज कोर्ट ने 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने जाने के राज्य सरकार ने निर्णय को रद्द करने का फैसला दिया है। इससे उन लोगों को झटका लगा है जो इससे लाभ पाने वाले थे।