Gurugram/Lazar Jankovic News: गुरुग्राम, भारत का वह शहर जो अपनी चमकदार स्काईलाइन और तकनीकी प्रगति के लिए जाना जाता है, आज एक सर्बियाई युवक लज़ार जानकोविच के स्वच्छता अभियान के कारण सुर्खियों में है। 32 वर्षीय योग साधक लज़ार न केवल सड़कों की सफाई कर रहे हैं, बल्कि अपने कार्यों से भारतीय समाज के सामने एक गहरा सवाल भी रख रहे हैं—हम अपने आसपास की सफाई के प्रति इतने उदासीन क्यों हैं? उनकी यह मुहिम न सिर्फ गुरुग्राम की गलियों को स्वच्छ कर रही है, बल्कि सामाजिक व्यवहार और जिम्मेदारी की गहरी परतों को भी कुरेद रही है।
स्वच्छता का एक अनोखा मिशन
लज़ार जानकोविच का सफाई अभियान कोई नई बात नहीं है। 2018 में मॉडलिंग असाइनमेंट के लिए भारत आए लज़ार ने बेंगलुरु, तमिलनाडु, ऋषिकेश और दिल्ली जैसे स्थानों पर सड़कों, गलियों और तीर्थस्थलों की सफाई की है। 2024 में गुरुग्राम पहुंचने के बाद उन्होंने “एक दिन, एक गली” नामक अभियान शुरू किया, जो मूल रूप से स्वतंत्रता दिवस तक सीमित था, लेकिन अब एक सतत सामुदायिक आंदोलन बन चुका है।
लज़ार कहते हैं, “मैं यह नहीं पूछता कि सड़कों पर कचरा क्यों है। मेरा सवाल है कि लोग अपने आसपास की सफाई क्यों नहीं करते?” उनकी यह बात सीधे समाज की उस मानसिकता पर चोट करती है, जो कचरे को ‘किसी और की समस्या’ मानती है। वे कहते हैं, “भारत एक सुंदर देश है, लेकिन इसे कचरे में दबने देना गलत है।”
गुरुग्राम में एक नई शुरुआत
गुरु द्रोणाचार्य मेट्रो स्टेशन के पास शुरू हुआ लज़ार का साप्ताहिक सफाई अभियान अब स्थानीय लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है। सफेद टी-शर्ट, काले शॉर्ट्स, लाल दस्ताने और कचरा पिकर के साथ लज़ार जब सड़कों पर उतरते हैं, तो राहगीरों का ध्यान खींचना स्वाभाविक है। उनकी लहज़ेदार हिंदी में गाए बॉलीवुड गीत, जैसे “ऐसा देश है मेरा” या “मेरे देश की धरती,” न केवल माहौल को हल्का करते हैं, बल्कि लोगों को उनके साथ जुड़ने के लिए प्रेरित भी करते हैं।
एक सामान्य रविवार को, लज़ार के नेतृत्व में दस लोगों का समूह मेट्रो स्टेशन के आसपास 100 मीटर की दूरी साफ करता है। इस दौरान वे प्लास्टिक की बोतलें, रैपर और अन्य कचरे को इकट्ठा कर 15 कचरा बैग भर लेते हैं, जिन्हें बाद में नगरपालिका के डंपिंग साइट पर भेजा जाता है। इस अभियान में स्थानीय निवासियों के साथ-साथ फ्रांसीसी नागरिक मटिल्डा जैसी विदेशी स्वयंसेवक भी शामिल हो रही हैं, जो व्यक्तिगत जिम्मेदारी पर जोर देती हैं। मटिल्डा कहती हैं, “अगर हर कोई अपने कचरे की जिम्मेदारी ले, तो भारत में बड़ा बदलाव संभव है।”
सामाजिक व्यवहार पर सवाल
लज़ार का अभियान केवल कचरा उठाने तक सीमित नहीं है; यह सामाजिक व्यवहार में बदलाव की मांग करता है। गुरुग्राम जैसे शहर में, जहां गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और टीसीएस जैसी कंपनियों का दबदबा है, कचरा प्रबंधन की समस्या पुरानी है। ऊंची इमारतों के सामने कचरे के ढेर और जलभराव की स्थिति शहर की बदहाली को दिखा रही है। लज़ार का सवाल सीधा है—अगर हम अपने देश को मां और भगवान कहते हैं, तो उसकी सफाई की जिम्मेदारी क्यों नहीं लेते?
स्थानीय निवासी संक्रिति गर्ग (26) कहती हैं, “यह शर्म की बात है कि एक विदेशी हमें सफाई सिखा रहा है।” वहीं, अशिष अरोड़ा जैसे नागरिक सवाल उठाते हैं कि बिना उचित कचरा निस्तारण व्यवस्था के नागरिकों की कोशिशें कितनी कारगर होंगी। यह सवाल प्रशासन की जिम्मेदारी पर भी उंगली उठाता है।
सोशल मीडिया और सामुदायिक भागीदारी
लज़ार के इंस्टाग्राम हैंडल (@serbian_cleaning_india) पर उनके सफाई अभियानों के वीडियो वायरल हो रहे हैं। उनके बायो में लिखा है, “सर्बियाई जो भारत की सफाई के सफर पर।” पुरानी दिल्ली, इंडिया गेट और गुरुग्राम की गलियों की सफाई के वीडियो ने न केवल लोगों का ध्यान खींचा, बल्कि कई को प्रेरित भी किया। उनके 36 पोस्ट्स को देखकर लोग न सिर्फ तारीफ कर रहे हैं, बल्कि अगली मुहिम में शामिल होने की इच्छा भी जता रहे हैं।
लज़ार कहते हैं, “शुरुआत में मैं अकेला था, मेरे साथ सिर्फ गायें थीं। अब हर बार एक नई टीम मेरे साथ होती है।” उनकी यह पहल अब एक सामुदायिक आंदोलन बन चुकी है, जिसमें रिक्शा चालक, सॉफ्टवेयर इंजीनियर और स्थानीय दुकानदार भी शामिल हो रहे हैं।
स्वच्छ भारत मिशन से प्रेरणा
लज़ार का अभियान भारत सरकार के स्वच्छ भारत मिशन (2014) की भावना से मेल खाता है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक भारत को स्वच्छ बनाने के लक्ष्य के साथ शुरू किया था। यह मिशन ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता, खुले में शौच मुक्ति और कचरा प्रबंधन पर जोर देता है। लज़ार की मुहिम इस जन आंदोलन को और मजबूत करती है, खासकर व्यक्तिगत जिम्मेदारी पर बल देकर।
एक व्यक्तिगत जिम्मेदारी
लज़ार का जीवन सादगी भरा है। सुबह ध्यान और व्यायाम के बाद वे योग सत्र लेते हैं। सफाई उनके लिए कोई संगठित मिशन नहीं, बल्कि व्यक्तिगत कर्तव्य है। सर्बिया में भी वे अपने मोहल्ले की सफाई करते हैं। वे कहते हैं, “मैं किसी एनजीओ या सरकारी संस्था से नहीं जुड़ा। यह मेरे लिए अपने घर की देखभाल जैसा है, चाहे वह सर्बिया हो या भारत।”
उनका अगला लक्ष्य हिमालय की यात्रा है, जहां वे ट्रेकिंग के साथ-साथ रास्ते में पड़े कचरे को साफ करेंगे। उनकी सलाह साफ है, “दूसरों पर उंगली उठाना बंद करें। खुद कदम बढ़ाएं, फर्क दिखेगा।”
निष्कर्ष
लज़ार जानकोविच का सफाई अभियान केवल सड़कों को स्वच्छ करने की कोशिश नहीं है; यह भारतीय समाज को उसकी जिम्मेदारी का आईना दिखा रहा है। उनकी मुहिम यह सवाल उठाती है कि अगर हम अपने देश को मां कहते हैं, तो उसकी देखभाल क्यों नहीं करते? गुरुग्राम की सड़कों से लेकर हिमालय के रास्तों तक, लज़ार का संदेश स्पष्ट है—“अगर हम नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?” उनकी यह पहल न केवल स्वच्छता की जरूरत को रेखांकित करती है, बल्कि सामाजिक व्यवहार में बदलाव की मांग भी कर रही है। यह समय है कि हम उनके सवाल का जवाब खुद से पूछें—‘हम क्यों नहीं?’

