सुरक्षा या निगरानी का नया हथियार? फोन में घुसने के आरोपों पर छिड़ा विवाद

Communication Partner App News: भारतीय सरकार के दूरसंचार विभाग (DoT) ने स्मार्टफोन निर्माताओं को निर्देश दिया है कि वे सभी नए फोन में ‘संचार साथी’ (Sanchar Saathi) ऐप को पूर्व-स्थापित करें। सरकारी दावे के मुताबिक यह ऐप साइबर सुरक्षा को मजबूत करेगा, लेकिन विपक्ष और गोपनीयता कार्यकर्ताओं ने इसे ‘बिग ब्रदर’ निगरानी का हथियार करार देते हुए सवाल उठाए हैं। क्या यह ऐप वाकई आपके मोबाइल की गोपनीयता पर सेंध लगाएगा? आइए पूरी खबर पर नजर डालें।

ऐप का उद्देश्य
संचार साथी ऐप को मई 2023 में लॉन्च किया गया था। यह दो मुख्य हिस्सों पर आधारित है- CEIR (सेंट्रल इक्विपमेंट आइडेंटिटी रजिस्टर) जो खोए या चोरी हुए फोन के IMEI नंबर को ब्लॉक करने में मदद करता है, और TAFCOP (टेलीकॉम एनालिटिक्स फॉर फ्रॉड मैनेजमेंट एंड कंज्यूमर प्रोटेक्शन) जो उपयोगकर्ताओं को अपने नाम पर रजिस्टर्ड अनधिकृत सिम कार्ड्स की जांच करने की सुविधा देता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 में फोन से जुड़े घोटालों में भारतीयों को 42,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जबकि 18 लाख नकली IMEI वाले डिवाइस जब्त किए गए। DoT का कहना है कि ऐप फर्जी डिवाइस और सिम फ्रॉड से बचाव के लिए जरूरी है, और अब इसे सभी नए फोन में अनिवार्य रूप से इंस्टॉल करना होगा। मौजूदा फोन पर सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए इसे डाला जाएगा।

निर्माताओं को 90 दिनों के अंदर नए डिवाइस पर ऐप इंस्टॉल करना होगा, जबकि 120 दिनों में अनुपालन रिपोर्ट जमा करनी होगी। ऐप को डिलीट, डिसेबल या छिपाया नहीं जा सकेगा, और यह फोन सेटअप के दौरान ही दिखाई देगा।

प्राइवेसी चिंताएं
विवाद का केंद्र ऐप की अनुमतियां हैं। एंड्रॉयड पर यह IMEI, मोबाइल/सिम डिटेल्स, कॉल और एसएमएस लॉग, फोटो/फाइल्स, कैमरा एक्सेस मांगता है। आईओएस पर भी फोटो/फाइल्स और कैमरा की अनुमति चाहिए। गोपनीयता नीति में डेटा रिटेंशन, DoT या C-DoT कर्मियों द्वारा एक्सेस, ऑप्ट-आउट विकल्प या थर्ड-पार्टी शेयरिंग पर स्पष्टता नहीं है।

कार्यकर्ता चिंतित हैं कि यह डेटा कानून प्रवर्तन के नाम पर सरकारी निगरानी के लिए इस्तेमाल हो सकता है।
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (IFF) ने इसे ‘व्यक्तिगत डिजिटल डिवाइस पर कार्यकारी नियंत्रण का विस्तार’ बताया है, जो सुप्रीम कोर्ट के पुत्तास्वामी फैसले के अनुपात के परीक्षण में विफल है। IFF ने RTI दाखिल की है और कोर्ट में चुनौती देने की योजना बना रहा है। सोशल मीडिया पर इसे ‘पेगासस प्लस प्लस’ कहा जा रहा है, हालांकि पेगासस एक स्पेशलाइज्ड स्पाइवेयर है जबकि संचार साथी एक सामान्य ऐप।

राजनीतिक और जन प्रतिक्रियाएं
विपक्ष ने तीखी आलोचना की। कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने इसे ‘बिग ब्रदर सर्विलांस’ कहा, जबकि राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने ‘बिग बॉस सर्विलांस मोमेंट’ करार दिया। आरएसपी सांसद एनके प्रेमचंद्रन ने संसद में कहा, “यह व्यक्तिगत गोपनीयता का उल्लंघन है। सरकार का ulterior मोटिव लोगों की निजी जानकारी हासिल करना है।” कांग्रेसी सांसद रेणुका चौधरी ने राज्यसभा में स्थगन प्रस्ताव दाखिल किया।

दूसरी ओर, कुछ यूजर्स ने इसे ‘सेलेक्टिव आउट्रेज’ बताया। एक पोस्ट में कहा गया, “सभी संचार साथी पर चिल्ला रहे हैं, लेकिन X जैसी ऐप्स वही परमिशन मांगती हैं। इंटरनेट पर प्राइवेसी मिथक है।” एक अन्य पोस्ट में ऐप को ‘ट्रांसपेरेंट और उपयोगी’ बताया गया, जहां कहा गया कि यह बैकग्राउंड में डेटा नहीं भेजता और केवल यूजर-इनिशिएटेड फीचर्स पर काम करता है। IFF और सिक्योरिटी रिसर्चर रितेश भाटिया के APK एनालिसिस से पुष्टि हुई कि कोई हिडन ट्रैकर्स नहीं हैं। X पर #BanSancharSaathi ट्रेंड कर रहा है, जहां यूजर्स मजाक उड़ा रहे हैं कि ‘अब इम्प्लांट्स लगवाने पड़ेंगे।’

आगे क्या? चुनौतियां और संभावनाएं
सरकार का दावा है कि ऐप का सोर्स कोड ऑडिटेबल है और डेटा NIC डेटा सेंटर्स में सुरक्षित है। लेकिन गोपनीयता विशेषज्ञों का कहना है कि वैकल्पिक तरीके जैसे वेब पोर्टल या USSD कोड पहले से मौजूद हैं। यदि विवाद बढ़ा तो कोर्ट में मामला पहुंच सकता है। फिलहाल, 1.3 करोड़ से ज्यादा यूजर्स ने वेब वर्जन का इस्तेमाल कर 6.4 लाख चोरी फोन ब्लॉक किए हैं।
क्या यह सुरक्षा का कदम है या निजता पर हमला? जवाब समय बताएगा, लेकिन बहस जरूर तेज हो गई है।

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