मध्य प्रदेश सरकार ने इस मामले की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के आधार पर तत्काल कार्रवाई की है। सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट पर ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. देवेंद्र पटेल और दो लैब टेक्नीशियन राम भाई त्रिपाठी तथा नंदलाल पांडेय को निलंबित कर दिया गया है। साथ ही, जिला अस्पताल के पूर्व सिविल सर्जन मनोज शुक्ल को शो-कॉज नोटिस जारी किया गया है। यदि उनका जवाब संतोषजनक नहीं हुआ तो कड़ी विभागीय कार्रवाई की जाएगी।
अधिकारियों के अनुसार, ये बच्चे थैलेसीमिया के मरीज हैं, जिन्हें नियमित रूप से ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है। इन बच्चों को सतना जिला अस्पताल के अलावा जबलपुर और अन्य जगहों से भी ब्लड यूनिट मिली थीं। कुल मिलाकर इन बच्चों को 189 ब्लड यूनिट चढ़ाई गईं, जो 150 से अधिक डोनर्स से आईं। जांच में पाया गया कि संक्रमण मुख्य रूप से डोनेटेड ब्लड से हुआ है, हालांकि एक बच्चे के माता-पिता पहले से ही HIV पॉजिटिव थे।
जिला स्तर की जांच में पुष्टि हुई कि पांच बच्चों का संक्रमण ब्लड ट्रांसफ्यूजन से ही हुआ। डोनर्स की ट्रेसिंग मुश्किल हो रही है, क्योंकि कई डोनर परिवार के रिश्तेदार या स्थानीय हो सकते हैं। पुलिस की मदद से डोनर्स को खोजा जा रहा है।
इस घटना के बाद सतना जिला प्रशासन ने अस्पताल के आसपास अवैध ब्लड ब्रोकरेज रिंग का भंडाफोड़ किया और तीन ब्रोकरों को गिरफ्तार किया गया। ये ब्रोकर एक यूनिट ब्लड के लिए 4500 रुपये तक वसूलते थे।
विपक्षी कांग्रेस ने इस मामले को स्वास्थ्य व्यवस्था की विफलता करार दिया है। कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया कि ब्लड स्क्रीनिंग में लापरवाही हुई और मामले को महीनों तक दबाया गया। उन्होंने हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग की है।
सभी प्रभावित बच्चे अब HIV प्रोटोकॉल के तहत इलाज करा रहे हैं। राज्य के उपमुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने कहा कि लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी और जांच पूरी होने पर आगे कार्रवाई होगी।
यह मामला हाल ही में झारखंड में हुए समान घटना की याद दिलाता है, जहां भी थैलेसीमिया बच्चों को संक्रमित ब्लड से HIV हुआ था। विशेषज्ञों का कहना है कि ब्लड ट्रांसफ्यूजन सुरक्षा में सिस्टमिक सुधार की जरूरत है।

