समलैगिक शादियांः सुप्रीम कोर्ट में बहस जारी, जाने पूरा मामला
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समलैगिक शादियांः सुप्रीम कोर्ट में बहस जारी, जाने पूरा मामला

Delhi: समलैगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली 20 याचिकाओं पर आज यानी बुधवार को दूसरे दिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो चुकी है। सुनवाई से पहले केंद्र सरकार ने नया शपथपत्र दाखिल किया और कोर्ट से कहा कि मामले में राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों को भी पार्टी बनाया जाए। केंद्र ने राज्यों से भी कहा कि वे 10 दिन में इस मामले में अपना नजरिया बताएं।

इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस आॅफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की पांच जजों की संवैधानिक बेंच कर रही है। वहीं केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और समलैगिक शादी के पक्ष में लगाई गई याचिकाओं की पैरवी मुकुल रोहतगी कर रहे हैं।
केंद्र सरकार, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा इस मुद्दे पर फैसला सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सुने बिना नहीं किया जा सकता है।

याचिकाकर्ता मुकुल रोहतगी ने अपील की कि याचिकाकर्ताओं को दो राहत दी जाए। पहली समलैगिकों के लिए शादी की घोषणा को उनका मौलिक अधिकार हो। यह उन्हें मिलने वाले लांछनों से मुक्ति के लिए जरूरी है। दूसरा स्पेशल मैरिज एक्ट में भी इस कम्युनिटी को उचित पहचान मिले।

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याचिकाकर्ता, हम कॉलोनियल लेजिस्लेशन (औपनिवेशिक कानून) की जगह कॉलोनियल माइंडसेट शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह माइंडसेट तभी शुरू हुआ था। समाज विकसित हो गया है, मगर उसका कुछ हिस्सा ऐसा है, जहां यह माइंडसेट अभी भी कायम है। केंद्र के स्टैंड को देखकर ऐसा ही लग रहा है।

याचिकाकर्ता जहां कहीं भी पति और पत्नी का इस्तेमाल किया जा रहा है, इसे जेंडर न्यूट्रल बना दिया जाए। इसकी जगह जीवनसाथी का इस्तेमाल किया जाए। जहां कहीं भी पुरुष और महिला का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसकी जगह व्यक्ति का इस्तेमाल किया जाए। अगर मैं अपने पार्टनर के साथ किसी सार्वजिनिक स्थान पर जाता हूं तो मुझे यह पता हो कि कानून और देश ने मेरी शादी को पहचान दी है। कोई भी मुझ पर लांछन-कलंक नहीं लगा सकता है। डिक्लेरेशन ऑफ मैरिज की रिक्वेस्ट का मकसद यही है।

याचिकाकर्ता, अगर हम बराबर हैं, तो अदालत से इस बात की इजाजत हमें मिले कि हम आप बराबर हो और आपको किसी से कमतर नहीं आंका जाएगा, दोयम दर्जे का व्यवहार नहीं होगा। ऐसे में हम अपने घरों में निजता और जीवन के अधिकार का फायदा उठा सकेंगे।

सुप्रीम कोर्ट, जस्टिस कौल ने कहा- आप यह कह रहे हैं कि आपको विशेष ऐलान चाहिए। आपके मुताबिक इस केस को बहुत ज्यादा विस्तार नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि इससे समस्या खड़ी हो जाएगी।

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याचिकाकर्ता हां, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि सारा संघर्ष खत्म हो जाएगा। मैं यह कह रहा हूं कि अगर हम सफल होते हैं तो इसे लेकर स्पष्ट और निश्चित घोषणा हो जाएगी। ये लोग कहते हैं कि याचिकाकर्ता सामान्य नहीं हैं। बहुमत यानी जो संख्या में ज्यादा हैं, वो नॉर्मल है। लेकिन यह कानून नहीं है, यह सोच है।

याचिकाकर्ता, दूसरा पक्ष कह रहा है कि एक तरफ बायोलॉजिकल पुरुष है और बायोलॉजिकल महिला है। इनके मिलन से वंश वृद्धि होती है और यही प्रकृति का नियम है। हम इस पर दोबारा से विचार कर रहे हैं। हो सकता है कि हम बहुत छोटी संख्या वाले अल्पसंख्यक हैं, लेकिन हमारे अधिकार समान हैं। शादी को लेकर भी हमारे लिए समान अधिकार होना चाहिए।

याचिकाकर्ता, जो कानून होता है, समाज उसे स्वीकार करता है। कभी-कभी कानून अगुआई करता है। मैं आपको हिंदू विधवा के दोबारा विवाह करने के कानून का उदाहरण देता हूं। यह 18वीं सदी में आया था और 19वीं सदी तक समाज इसके लिए तैयार नहीं था। तब कानून ने तेजी से अपना काम किया था। आज हमें समाज को प्रेरित करने की जरूरत है कि वो इन लोगों (समलैगिक) को बराबरी का दर्जा दें, उन्हें सम्मान दें, क्योंकि संविधान ऐसा कहता है। इस कोर्ट के पास जनता का भरोसा और नैतिक अधिकार दोनों हैं।

18 अप्रैल की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार यानी 18 अप्रेल को सुनवाई के दौरान केंद्र और याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें दी गईं। केंद्र ने कहा कि इस मामले पर सुनवाई ही ना की जाए। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सेम सेक्स मैरिज को भी कानूनी मान्यता मिले, यह उनका हक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुनवाई की कवायद आने वाली पीढ़ियों के लिए हो रही है।

 

केंद्र सरकारः सॉलिसिटर जनरल एसजी मेहता ने कहा कि समलैगिक शादी का मुद्दा ऐसा नहीं है, जिस पर एक पक्ष में बैठे 5 लोग, दूसरे पक्ष में बैठे 5 लोग और बेंच पर बैठे 5 विद्वान बहस कर सकें। इसमें दक्षिण भारत के किसान और उत्तर भारत के बिजनेसमैन का भी नजरिया जानना होगा। हम अभी भी यही कह रहे हैं कि क्या इस मुद्दे पर कोर्ट खुद फैसला ले सकती है।

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सुप्रीम कोर्टः हम जानना चाहते हैं कि याचिकाकर्ता क्या दलीलें दे रहे हैं। देखते हैं कि याचिकाकर्ता और हमारे दिमाग में क्या चल रहा है।

सुप्रीम कोट: सॉलिसिटर जनरल हमें नहीं बता सकते कि यह फैसला कैसे करना है। हम सही वक्त पर आपको भी सुनेंगे।
याचिकाकर्ता वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि हम अपने घरों में निजता चाहते हैं। साथ ही यह भी कि हमें सार्वजनिक जगहों पर कोई लांछन ना सहना पड़े। हम चाहते हैं कि 2 लोगों के लिए शादी और परिवार को लेकर वैसी ही व्यवस्था हो, जैसी अभी दूसरों के लिए चल रही है। हमें भी समाज के हेट्रोसेक्शुअल ग्रुप के तौर पर संविधान के तहत समान अधिकार मिले हैं। हमारे समान अधिकारों के रास्ते में केवल एक ही रुकावट थी 377।

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