रेजांग ला के अमर शहीदों को सलाम, ‘120 बहादुर’ फिल्म ने जीवंत किया 1962 की वीरता की कहानी

120 Bahadur News: ठंडी हवाओं से थरथराती लद्दाख की ऊंची चोटियों पर, जहां तापमान माइनस 30 डिग्री से नीचे लुढ़क गया था, 120 युवा सिपाही मौत को सीने से लगाए खड़े हो गए। ये थे 13 कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के वे बहादुर अहीर सैनिक, जिन्होंने 18 नवंबर 1962 को चीनी सेना के 3,000 से अधिक सैनिकों का डटकर मुकाबला किया। सिनो-इंडियन युद्ध के इस निर्णायक मोड़ पर, रेजांग ला दर्रे की लड़ाई ने न सिर्फ चीनी आक्रमण को रोका, बल्कि भारतीय सेना की अमर वीरता का प्रतीक बन गई।

आज, 63 साल बाद, फरहान अख्तर की आगामी फिल्म ‘120 बहादुर’ इस कथा को बड़े पर्दे पर उतार रही है, जो शहीदों के बलिदान को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का संकल्प ले चुकी है।

1962 का भारत-चीन युद्ध एक दर्दनाक अध्याय था, जब सीमावर्ती इलाकों में अचानक चीनी आक्रमण ने भारतीय सेना को चौंका दिया। लद्दाख के चुशुल सेक्टर में स्थित रेजांग ला दर्रा, 18,000 फुट की ऊंचाई पर, चीनी सेना के लिए चुशुल एयरस्ट्रिप तक पहुंच का महत्वपूर्ण द्वार था। यहां तैनात 13 कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी, जिसमें ज्यादातर हरियाणा के अहीरवाल क्षेत्र (रेवाड़ी-महेंद्रगढ़) के अहीर समुदाय के सैनिक थे, के कमांडर थे मेजर शैतान सिंह भाटी। बिना पर्याप्त तोपखाने समर्थन, बिना कवच या सर्दियों के कपड़ों के, इन 120 सैनिकों ने सुबह के अंधेरे में चीनी हमले का सामना किया।

लड़ाई की शुरुआत 18 नवंबर की सुबह हुई, जब चीनी सेना ने ‘नुल्लाह’ (सूखी नदी घाटी) से हमला बोला। भारतीय सैनिकों ने मशीनगनों की बौछार से पहले लहर को खदेड़ दिया। लेकिन दुश्मन ने लहर दर लहर हमले किए—कुल 3,000 से अधिक सैनिक। तापमान इतना गिरा कि सैनिकों के हाथ हथियारों से जमा गए, फिर भी वे लड़े। मेजर शैतान सिंह खुद घायल हो चुके थे, लेकिन उन्होंने अपनी पोस्ट नहीं छोड़ी। उन्होंने अपने सैनिकों को प्रेरित किया: “अंतिम गोली तक, अंतिम सांस तक लड़ना है।” नतीजा? 114 भारतीय सैनिक शहीद हो गए, लेकिन चीनी सेना को 1,300 से अधिक हताहत का सामना करना पड़ा। यह लड़ाई थर्मोपाइली (ग्रीक-पर्शियन युद्ध) और सरागढ़ी की याद दिलाती है, जहां अल्प संख्या में योद्धाओं ने असंख्य दुश्मनों को रोका।

इस वीरता की कीमत देश को चुकानी पड़ी, लेकिन सम्मान भी मिला। मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परम वीर चक्र मिला। चार्ली कंपनी के आठ सैनिकों को वीर चक्र, चार को सेना मेडल और एक को एटी वीएसएम से नवाजा गया। 13 कुमाऊं रेजिमेंट को ‘रेजांग ला’ बैटल ऑनर मिला, जो आज भी गर्व का प्रतीक है। युद्ध के बाद, फरवरी 1963 में ब्रिगेडियर टीएन रैना ने शहीदों का अंतिम संस्कार किया। रेजांग ला पर स्मारक बनाया गया, जहां लिखा है: “एक इंसान कैसे बेहतर मर सकता है, अपने पितरों की राख और देवताओं के मंदिरों के लिए भयानक संख्याओं का सामना करते हुए।” रेवाड़ी में भी ‘अहीर धाम’ स्मारक है, जहां हर साल शहीदों की याद में समारोह होते हैं।

आज, यह कथा ‘120 बहादुर’ फिल्म के जरिए जीवंत हो रही है। फरहान अख्तर मेजर शैतान सिंह की भूमिका में हैं, जबकि राशी खन्ना उनकी पत्नी शगुन कंवर सिंह के किरदार में नजर आएंगी।

डायरेक्टर रजनीश ‘राजी’ घाई द्वारा निर्देशित यह फिल्म, एक्सेल एंटरटेनमेंट और ट्रिगर हैपी स्टूडियोज का प्रोडक्शन है। स्क्रीनप्ले राजीव जी मेनन ने लिखा है, और संवाद सुमित अरोड़ा के हैं।

लद्दाख और राजस्थान में शूटिंग के दौरान, स्नो बिजनेस ने बर्फीले परिदृश्य को जीवंत किया, जबकि ऑस्कर विजेता वर्ल्ड वॉर वन फिल्म की एक्शन टीम ने यथार्थवादी दृश्य रचे। टीजर में ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत की धुन पर लड़ाई के फ्लैशबैक दिखाए गए हैं, जो दर्शकों को भावुक कर देते हैं।

फिल्म 21 नवंबर 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज होगी, जो रेजांग ला की 63वीं वर्षगांठ के करीब है। प्रोड्यूसर फरहान अख्तर कहते हैं, “यह फिल्म सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि उन 120 बहादुरों का श्रद्धांजलि है, जिन्होंने असंभव को संभव बनाया।” एक घायल सैनिक की नजर से बुनी गई यह कथा, नई पीढ़ी को सिखाएगी कि साहस और त्याग ही राष्ट्र की रक्षा का आधार हैं।

रेजांग ला के शहीद आज भी प्रेरणा स्रोत हैं। उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि सीमाओं पर खड़े जवान न सिर्फ देश की ढाल हैं, बल्कि इतिहास के अमर पन्ने भी। जय हिंद!

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