जनरल द्विवेदी ने बताया, “दिसंबर तक इसे अंतिम रूप दे दिया जाएगा और अगले वित्तीय वर्ष से यह पूरी तरह लागू हो जाएगी। यह एक अत्यंत सकारात्मक संकेत है।”
आयात निर्भरता की चुनौती
सेना प्रमुख ने आयात निर्भरता को एक ‘रैचेटिंग इफ़ेक्ट’ बताया, यानी एक तकनीक दूसरी तकनीक का मुकाबला करने के लिए ज़रूरी हो जाती है। उन्होंने चिंता जताई कि जब तक अनुसंधान एवं विकास (R&D) आधार को व्यापक नहीं बनाया जाता, तब तक यह निर्भरता बनी रहेगी।
उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा, “अगर हम फार्मास्यूटिकल्स में 1000 करोड़ खर्च करते हैं, तो वीज़ा (रक्षा तकनीक) पर मात्र 100 करोड़ खर्च करना उचित नहीं। हमें इस असंतुलन को देखना होगा।”
उन्होंने स्वीकार किया कि महत्वपूर्ण घटक (critical components) अगले चार-पांच साल तक आयात करने पड़ेंगे, जिससे आयात निर्भरता बनी रहेगी।
साइबर और डेटा सुरक्षा का खतरा
जनरल द्विवेदी ने साइबर और डेटा कमजोरी को एक ‘रेस्टिंग इफ़ेक्ट’ बताया, जो सहयोगी प्रयासों में बाधा डालता है। उन्होंने कहा, “यह हमें कई क्षेत्रों में सहयोग करने से रोकता है, क्योंकि हम साइलो में काम कर रहे हैं। यह एक बड़ी चुनौती है, लेकिन हम इसे खोलने की दिशा में काम कर रहे हैं।”
आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम
जनरल द्विवेदी का यह बयान ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने की सरकार की नीति से पूरी तरह मेल खाता है। नई खरीद प्रक्रिया से न केवल प्रक्रिया तेज़ होगी, बल्कि स्वदेशी उद्योगों को प्रोत्साहन मिलेगा और आयात बिल में कमी आएगी।
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, नई प्रक्रिया में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने, तेज़ निर्णय प्रक्रिया और पारदर्शिता पर विशेष ध्यान दिया गया है।
यह कदम भारतीय सेना को आधुनिक, स्वदेशी और तकनीकी रूप से सशक्त बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

