Reserve Bank of India: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने शुक्रवार को अपनी मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में पॉलिसी रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट्स (बीपीएस) की कटौती की घोषणा की। रेपो रेट अब 5.25 प्रतिशत पर आ गया है, जो तीन साल से अधिक समय में सबसे कम स्तर पर है। इस फैसले के साथ ही आरबीआई ने बैंकिंग सिस्टम में लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त तरलता (लिक्विडिटी) डालने का ऐलान किया है, ताकि रुपये की रक्षा और आर्थिक विकास को गति मिल सके।
गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा, “ये कदम सिस्टम में पर्याप्त और टिकाऊ तरलता सुनिश्चित करेंगे तथा मौद्रिक संचरण (मॉनेटरी ट्रांसमिशन) को आसान बनाएंगे।” मॉनेटरी ट्रांसमिशन से तात्पर्य रेपो रेट में कटौती के फायदे को उधारकर्ताओं तक पहुंचाने से है, जैसे कि बैंकों द्वारा दिए जाने वाले लोन की ब्याज दरों में कमी।
आरबीआई के इस कदम का मुख्य कारण रुपये की लगातार गिरती वैल्यू और विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप रहा है। 2025-26 के पहले छह महीनों में आरबीआई ने रुपये की रक्षा के लिए 44 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा बेची है, जो पिछले साल की तुलना में कम है, लेकिन इसका असर घरेलू तरलता पर भारी पड़ा है। इससे बैंकों के नए लोन की औसत ब्याज दर सितंबर से अक्टूबर तक 14 बीपीएस बढ़कर 8.64 प्रतिशत हो गई।
तरलता बढ़ाने के लिए आरबीआई दो बड़े कदम उठाएगा
बाजार से केंद्र सरकार के बॉन्ड्स की 1 लाख करोड़ रुपये की खरीदारी (ओपन मार्केट ऑपरेशंस या ओएमओ के तहत), जो बैंकों को नकदी उपलब्ध कराएगी।
16 दिसंबर को तीन साल की अवधि वाले 5 अरब डॉलर के ‘यूएसडीध्आईएनआर बाय-सेल स्वैप’ का आयोजन, जो वर्तमान विनिमय दर पर करीब 45,000 करोड़ रुपये के बराबर होगा। इसमें आरबीआई पहले बैंकों से डॉलर खरीदकर उन्हें रुपये देगी, और तीन साल बाद निर्धारित दर पर डॉलर वापस बेचेगी।
ये उपाय रुपये को 90 रुपये प्रति डॉलर के पार जाने से रोकने में मदद करेंगे। 2025 में रुपये एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा रही है। अमेरिका के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) की घोषणा में देरी से बाजार का मूड खराब हुआ, जिसके चलते विदेशी निवेशक इस साल 18 अरब डॉलर से अधिक की पूंजी भारतीय शेयर बाजार से निकाल चुके हैं। हालांकि, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में थोड़ी सुधार की उम्मीद है।
अनंद राठी ग्रुप के चीफ इकोनॉमिस्ट सुजन हजरा ने कहा, “1.5 लाख करोड़ रुपये की बॉन्ड खरीदारी और स्वैप से आरबीआई को मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करने की क्षमता बढ़ेगी, बिना घरेलू तरलता को कड़ा किए।” आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की चीफ इकोनॉमिस्ट गौरा सेन गुप्ता ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि वित्त वर्ष 2025-26 (नवंबर तक) में विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप से तरलता पर 3.4 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ा है।
इसके अलावा, एमपीसी ने चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है, जबकि मुद्रास्फीति (इन्फ्लेशन) को 4.5 प्रतिशत पर नियंत्रित रखने का लक्ष्य है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे लोन और डिपॉजिट रेट्स में कमी आएगी, जिससे उपभोक्ता और कारोबारियों को राहत मिलेगी।
यह फैसला जून 2025 में हुई पिछली कटौती (25 बीपीएस से रेपो रेट 5.50 प्रतिशत) के बाद आया है। आरबीआई की ‘न्यूट्रल’ स्टांस बरकरार है, लेकिन बाजार में उम्मीद है कि अगली तिमाही में और कटौती हो सकती है। फिलहाल, ये उपाय आर्थिक स्थिरता और विकास को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।
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