NDA में बग़ावत: ‘परिवारवाद’ के आरोप में नेता दे रहें इस्तीफ़ा

NDA Alliance News: राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के अध्यक्ष और एनडीए के सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में उस समय बवाल मच गया जब उनके बेटे दीपक प्रकाश को बिहार मंत्रिमंडल में पंचायती राज मंत्री बनाया गया। इस फैसले से नाराज़ पार्टी के सात प्रमुख नेताओं ने गुरुवार (27 नवंबर 2025) को पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया और कुशवाहा पर “परिवारवाद” को बढ़ावा देने का गंभीर आरोप लगाया।

हाल ही में संपन्न बिहार विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी ने 6 सीटों में से 4 पर जीत हासिल की थी और एनडीए गठबंधन के कोटे से एक मंत्री पद मिला था। खुद उपेंद्र कुशवाहा राज्यसभा सांसद हैं और उनकी पत्नी स्नेहलता कुशवाहा सासाराम से विधायक चुनी गई हैं। लेकिन मंत्री पद अपने 36 वर्षीय बेटे दीपक प्रकाश को देने का फैसला पार्टी नेताओं को रास नहीं आया। दीपक प्रकाश अभी किसी भी सदन (विधानसभा या विधान परिषद) के सदस्य नहीं हैं, हालांकि जल्द ही उन्हें विधान परिषद भेजे जाने की संभावना है।

इस्तीफ़ा देने वाले प्रमुख नेता:
• महेंद्र कुशवाहा (प्रदेश अध्यक्ष)
• जितेंद्र नाथ (उपाध्यक्ष)
• राहुल कुमार (प्रवक्ता सह महासचिव)
• राजेश रंजन सिंह (नालंदा जिला प्रभारी)
• बिपिन कुमार चौरसिया (जमुई प्रभारी)
• प्रमोद यादव (लखीसराय प्रभारी)
• पप्पू मंडल (शेखपुरा जिला अध्यक्ष)

इस्तीफ़ा देने वाले नेताओं ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा अक्सर समाजवादी सिद्धांतों और नैतिकता की बात करते हैं, लेकिन सत्ता मिलते ही उन्होंने अपने परिवार को तरजीह दी। प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र कुशवाहा ने कहा, “जब मौक़ा आया तो वे भी परिवारवाद के शिकार हो गए। अब इनमें और दूसरे पारिवारिक दलों में क्या फ़र्क रह गया?”

उपेंद्र कुशवाहा का पक्ष:
अपने बेटे के बचाव में उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि दीपक प्रकाश कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हैं, मेहनत करके डिग्री हासिल की और नौकरी भी पाई थी। उन्होंने कहा, “मैंने पार्टी के लिए कठोर फ़ैसला लिया है। समुद्र मंथन में अमृत के साथ-साथ विष भी निकलता है, कुछ लोगों को विष पीना पड़ता है। हाँ, इस फ़ैसले से परिवारवाद के आरोप लगेंगे, लेकिन मैंने पार्टी हित में यह कदम उठाया।”

ग़ौरतलब है कि उपेंद्र कुशवाहा लंबे समय से परिवारवाद के खिलाफ़ बयानबाज़ी करते रहे हैं और ख़ुद को लोहिया-कर्पूरी ठाकुर की विचारधारा का अनुयायी बताते हैं। अब उनकी अपनी पार्टी में ही यह बग़ावत उनके लिए बड़ी राजनीतिक चुनौती बन गई है। आने वाले दिनों में देखना यह होगा कि क्या और नेता पार्टी छोड़ते हैं या कुशवाहा इस संकट को नियंत्रित कर पाते हैं।

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